ऊर्जा के दोस्त
वह ऑफिस में हों या घर में, कुछ ज्यादा ही थकान महसूस करते। डॉक्टर को दिखाया, कोई शारीरिक परेशानी नजर नहीं आई। आखिर समस्या कहां थी? दरअसल, वह हर काम के पहले उसकी अड़चनों पर सोचने लगते थे। उनमें काम के...
वह ऑफिस में हों या घर में, कुछ ज्यादा ही थकान महसूस करते। डॉक्टर को दिखाया, कोई शारीरिक परेशानी नजर नहीं आई। आखिर समस्या कहां थी? दरअसल, वह हर काम के पहले उसकी अड़चनों पर सोचने लगते थे। उनमें काम के नतीजों को लेकर या तो नकारात्मक रवैया होता या फिर निरपेक्षता वाला। मनोवैज्ञानिक स्टेनले कॉब कहते हैं, हम जो सोचते हैं, उसका इस बात पर निश्चित प्रभाव पड़ता है कि हम वास्तव में शारीरिक-मानसिक रूप से कैसा महसूस करेंगे? उनका कहना है कि हमारा रिचार्ज स्टेशन हमारे मस्तिष्क में है। अगर हम सिर्फ इतना सोचें कि हम जो कर रहे हैं, वह महत्वपूर्ण है, वह हमारे अस्तित्व का हिस्सा है, यही वह चीज है, जिसके लिए उस खास जगह पर हम हैं, तो हमारे नर्व, हमारी मांसपेशियां, हमारा शरीर सभी इस बात को स्वीकार कर लेता है और काम कितना भी जटिल क्यों न हो, हमें थकने नहीं देता। लिंकन की व्यस्त दिनचर्या देखकर उनके एक सहयोगी ने उनसे पूछा कि आप थकते नहीं? उनका जवाब था- नहीं, क्योंकि मैं जो करता हूं, उसमें विश्वास करता हूं। लिंकन गलत नहीं थे, इस बात की तस्दीक दुनिया के महानतम फुटबॉल कोच में एक क्यूट रॉक्ने भी करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी खिलाड़ी में तब तक पर्याप्त ऊर्जा नहीं रह सकती, जब तक वह अपनी भावनाओं को आध्यात्मिक नियंत्रण में रखना न सीख ले। रॉक्ने ने कहा कि इसका सरल अर्थ है कि खिलाड़ी सच्चाई से प्रेरित हो और उनमें अपने बाकी साथियों के प्रति मित्रता और प्रेम का भाव हो। उनकी बातें कॉरपोरेट जगत के लिए भी मायने रखती हैं। उन्होंने कहा कि टीम तब तक ऊर्जावान और कामयाब नहीं हो सकती, जब तक कि उनके बीच दोस्ताना रवैया नहीं हो। कहा भी जाता है, जो अपने मस्तिष्क का दोस्त है, उसकी दुनिया में किसी अवरोध के लिए जगह नहीं है। ऐसे व्यक्ति ऊर्जा के खेल से खेलना जानते हैं।