राजधानी का नया मुखौटा उद्योग
कभी चोर-उचक्के लूटपाट की वारदात को अंजाम देते वक्त मुंह इस अदा से ढकते थे कि पहचाने न जा सकें। अब उन्हें पहचान छिपाने की दरकार नहीं है। वरदी उनसे खौफ खाती है। किसी ने शिकायत कर दी, तो लाइन हाजिर न...
कभी चोर-उचक्के लूटपाट की वारदात को अंजाम देते वक्त मुंह इस अदा से ढकते थे कि पहचाने न जा सकें। अब उन्हें पहचान छिपाने की दरकार नहीं है। वरदी उनसे खौफ खाती है। किसी ने शिकायत कर दी, तो लाइन हाजिर न होना पड़े? राजधानी के प्रसिद्ध पार्क में कल सवेरे एक मास्कधारी को देखकर हमें हैरत हुई। यहां तो सत्ता की संपर्क-सैर को महानुभाव पधारते हैं। थोड़ा चले, ज्यादा संपर्क-सूत्रों से मिले। कल की खबर की चाय पर चर्चा की। सबके अपने चहेते पैनल व रिपोर्टर हैं। तभी यह पार्क बिना बात का बतंगड़ व बिना तिल के ताड़ का निर्माण-केंद्र है। ऐसों के बीच यह कौन अजूबा है? गौर किया, तो पाया कि उसकी पीठ पर कुछ सिलिंडर जैसा सवार है। जब सत्ता-संपर्कियों ने उसका स्वागत किया, तो हम चौंके। कहीं यह आज की सियासत की मुखौटा-संस्कृति का कोई गणमान्य प्रतिनिधि तो नहीं? ऐसे होते कुछ और हैं और दिखते कुछ और हैं।
इनके पास नैतिकता, पारदर्शिता, सदाचार, निर्धन-उद्धार, किसान-कल्याण के मुखौटे ही मुखौटे हैं, सुविधानुसार प्रयोग के लिए। हमें संदेह है कि उनके पत्नी-बच्चों ने भी कभी उनकी असली शक्ल देखी है कि नहीं। ताकझांक के राष्ट्रीय रोग के अपन जन्मजात शिकार हैं। हमने पेड़ की आड़ से सुना, तो राज खुला कि ‘मास्कधारी’ एक कामयाब उद्यमी है। महानगर की जहरीली हवा से बचने को सुवास (सुरक्षित वायु संयंत्र) उसका ताजातरीन प्रोडक्ट है। सुवास सबका सहारा है। आम आदमी इसे पीठ पर लाद सकता है। वह कीमतों और धनाभाव के भार का आदी है, उस पर कुछ और भी लदे, तो क्या फर्क पड़ता है? समृद्ध व अफसर, मिनिस्टर आदि के मास्क के सिलिंडर को ढोने के लिए कोई न कोई सहायक मिल ही जाएगा। मुखौटा-उद्योग की प्रगति तय है। इससे खास व आम सांस ले पाएंगे। दवा-दारू का खर्चा घटेगा। उद्यमी की पेशकश है कि गरीबों को सुवास फ्री में मिले। इसके लिए उसे थोक सरकारी खरीद की उम्मीद है। उसकी मनौती है। सांसों का संकट बढ़े, करोड़ों की कमाई हो। निजी फायदे का स्वार्थ ही बाजार-व्यवस्था का परमार्थ है।