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पुराने सिल्क रूट का निर्माण और नई चिंताएं

चीन में हमेशा से उम्दा किस्म का रेशम तैयार होता था। सैकड़ों वर्ष पहले ऊंट और घोड़ों पर रेशम से भरी गठरियां लाद चीन के व्यापारी हिमालय के दर्रे से गोबी के विशालकाय रेगिस्तान होकर व्यापार के लिए मध्य...

पुराने सिल्क रूट का निर्माण और नई चिंताएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 12 Apr 2015 07:35 PM
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चीन में हमेशा से उम्दा किस्म का रेशम तैयार होता था। सैकड़ों वर्ष पहले ऊंट और घोड़ों पर रेशम से भरी गठरियां लाद चीन के व्यापारी हिमालय के दर्रे से गोबी के विशालकाय रेगिस्तान होकर व्यापार के लिए मध्य एशिया के उन देशों से गुजरकर यूरोप ले जाते, जो कछ दशक पहले तक सोवियत संघ के भाग हुआ करते थे। महीनों तक चीनी व्यापारी गोबी रेगिस्तान में चलते रहते थे,  जिसकी आबोहवा बड़ी कष्टदायक होती थी। जाड़े के दिनों में गोबी रेगिस्तान का तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे चला जाता था और गरमियों में 50 डिग्री से ऊपर। मध्य एशिया में तो चीनी रेशम की मांग थी ही,  सबसे अधिक मांग यूरोप में थी। जिस रास्ते से ऊंटों और घोड़ों से चीनी व्यापारी यूरोप जाते थे, उसको इतिहासकारों ने ‘सिल्क रोड’ नाम दिया। पर जब पानी के जहाज से व्यापार शुरू हुआ, तो यह सिल्क रूट धीरे-धीरे समाप्त हो गया।

इस लिहाज से देखें,  तो इस सिल्क मार्ग को फिर से शुरू करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन अब जब चीन इस मार्ग को फिर से बहाल करने की कोशिश कर रहा है,  तो इसके निहितार्थ खोजे जा रहे हैं। खासकर इसलिए कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग खुद इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। चीन जानता है कि यह रास्ता उसके लिए सामरिक और व्यापारिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। इस रास्ते में पड़ने वाले उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देश अपने व्यापार और आर्थिक विकास के लिए रूस पर निर्भर हैं। सिल्क रूट की बहाली इस समीकरण को बदल सकती है। साथ ही, इन देशों में तेल व गैस के बड़े भंडार हैं, जो चीन को आसानी से सस्ते में उपलब्ध हो सकते हैं।

इस काम के लिए चीन ने 40 अरब डॉलर की रकम झोंक दी है। इसके तहत शंघाई के पास चीन के ‘ईयू’ शहर से स्पेन के मैड्रिड तक 13,000 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाई जाएगी। दुर्गम पहाड़ियों को काटते हुए तिब्बत तक रेल लाइन बिछाने का कारनामा चीन पहले ही दिखा चुका है। खबर यह भी है कि चीन, नेपाल तक के लिए भी रेल लाइल बिछाने जा रहा है, जिसके लिए ठीक एवरेस्ट के नीचे सुरंग बिछाई जाएगी। ऐसे मामलों में चीन न तो पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की चिंता करता है और न ही पड़ोसी देशों की प्रतिक्रिया की।

पिछले कुछ समय से यह काम कुछ ज्यादा ही तेज हो गया है। जब से शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बने हैं, उनका पूरा जोर चीन में हवा की रफ्तार से इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास करना है। जाहिर-सी बात है कि अगर चीन की ये सारी योजनाएं कामयाब हो जाती हैं,  तो पूरी दुनिया उसकी क्षमता का लोहा मान लेगी। लेकिन यहां सवाल सिर्फ चीन के आर्थिक और तकनीकी पराक्रम का नहीं है,  बड़ी समस्या यह है कि चीन इसके जरिये अपने सामरिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है। और यही चिंता की सबसे बड़ी बात है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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