सुख की आदत
हम में से अधिकांश लोग सुख को दिल से गले लगाते हैं, परंतु शायद ही कोई ऐसा होगा, जो दुख का सामने से स्वागत करे। जी हां! यह एक हकीकत है कि हम सब दुख से डरकर बड़ी परेशानी का अनुभव करते हैं, क्योंकि हम...
हम में से अधिकांश लोग सुख को दिल से गले लगाते हैं, परंतु शायद ही कोई ऐसा होगा, जो दुख का सामने से स्वागत करे। जी हां! यह एक हकीकत है कि हम सब दुख से डरकर बड़ी परेशानी का अनुभव करते हैं, क्योंकि हम वास्तविक रूप से दुख क्या है, यह जानते ही नहीं। तभी तो हमारे ऋषियों ने कहा है कि ‘दुख को शुद्ध रूप में पहचानना ही सुख है।’ अत: जो आत्माएं दुख में भी सुख ढूंढ़ लेती हैं, वही परिस्थितियों से पार जाती हैं और उन्हें ही बलवान, महावीर, अंगद आदि नाम दिए जाते हैं। जो अज्ञानी है, वह दुखी ही रहता है। इसीलिए कहा गया है कि दुख का दूसरा नाम है अज्ञान। जब मानव दुखी रहता है और उसे सुख में जाने के उपाय बताए जाते हैं, जैसे कहें कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का त्याग करो, तो अज्ञानता के इस आवरण को हटाने में उसे बहुत कष्ट होता है, क्योंकि वास्तव में वह इन विकारों को छोड़ना ही नहीं चाहता। और यदि किसी कारण से मोटे रूप से छोड़ भी देता है, तब भी उन विकारों के अंश अपने पास रख लेता है।
आज के मानव को एक विचित्र-सी बीमारी ने ग्रस लिया है। वह अपने दुख से तो दुखी होता ही रहता है, दूसरों के सुख से भी उसे अत्यंत पीड़ा होती है। हम सभी को इस भाव की अनुभूति कभी-न-कभी होती ही है। परंतु सुख-दुख के इस खेल में हम सभी यह भूल जाते हैं कि सुख या खुशी बाहरी जगत में नहीं है, अपितु बाहरी जगत से मन के नेत्र मूंदकर आंतरिक जगत में विचरण करने से प्राप्त होती है। और यह मानसिक आदत व्यक्ति को अपने भीतर स्वयं निर्मित करनी पड़ती है। खुश रहने की आदत हमें बार-बार खुशी की ओर अग्रसर करती है। इसीलिए यह कहा गया है कि ‘सुख का निर्माण करने की शक्ति हमारे अपने ऊपर निर्भर करती है, न कि किसी और पर।’ यदि हम दूसरों को सुख देने की आदत डाल लें, तो एक लंबा जीवन खुशी में जी सकते हैं। तो आज से सभी को सुख दें और सभी से सुख प्राप्त करें।