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कड़वाहट का सत्य

मैं एक सेमिनार में थी। एक महिला ने प्रश्न पूछा कि वह एक कंपनी में अधिकारी है, लेकिन जब भी वह लोगों को सच बताती है, तो लोग नाराज हो जाते हैं, उसके खिलाफ हो जाते हैं। ऐसे में, क्या सच नहीं बोलना चाहिए?...

कड़वाहट का सत्य
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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मैं एक सेमिनार में थी। एक महिला ने प्रश्न पूछा कि वह एक कंपनी में अधिकारी है, लेकिन जब भी वह लोगों को सच बताती है, तो लोग नाराज हो जाते हैं, उसके खिलाफ हो जाते हैं। ऐसे में, क्या सच नहीं बोलना चाहिए? उसने एक श्लोक कहा- सत्यम ब्रूयात, प्रियम ब्रूयात...।  यह श्लोक काफी प्रसिद्ध है, लेकिन इस पर कोई अमल नहीं करता। हर कोई अपने हिसाब से अर्थ निकालता है।

सच से चोट क्यों लगती है? कई कारण हैं। अक्सर आप सच तभी बोलते हैं, जब किसी को चोट पहुंचाना चाहते हैं। फिर कहते हैं, ‘मैं तो स्पष्ट वक्ता हूं।’ आपका बोला हुआ सच अप्रिय नहीं लगेगा, अगर आप कभी-कभी लोगों की सच्ची प्रशंसा भी करेंगे। लोग प्रशंसा तो झूठी करते हैं, लेकिन कड़वा बोलना हो, तो सच बोलते हैं। अगर आपके दुर्भाव से सच निकलता है, तो वह अप्रिय ही लगेगा। लेकिन प्रेम से भी सत्य बोला जा सकता है। तब आपके सच का अंदाज अलग होगा। तब किसी को बुरा नहीं लगेगा। लोग जानेंगे कि उनकी भलाई के लिए बोला जा रहा है।

सच से चोट लगती है, क्योंकि लोगों ने बहुत सा झूठ ओढ़ रखा है, इसलिए सत्य को बहुत कुशलता से कहना पड़ता है। बर्नार्ड शॉ का सुझाव है- ‘आप लोगों को सच बताना चाहते हैं, तो इस तरह बताएं कि लोग हंसे, वरना वे आपको मार डालेंगे।’ कहते हैं मुल्ला नसरुद्दीन को यह कला हासिल थी। मुल्ला हमेशा दूसरों की कमियां दिखाने के लिए खुद पर व्यंग्य करते थे, खुद को बेवकूफ दिखाते थे। उन्होंने अपनी कब्र पर एक दरवाजा बनाने के लिए कहा, जिस पर ताला लगा हो। सिर्फ दरवाजा, कोई दीवार नहीं। वह दिखाना चाहते थे कि मौत में भी आदमी की पकड़ छूटती नहीं। कब्रों को भी ताले में बंद रखना चाहते हैं। जो खुद पर हंसना सीख लेते हैं, उन्हें दूसरों को कोई कड़वाहट नहीं देनी पड़ती।
 

 

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