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सावन उतरे चित्त में

सावन की ही तरह हर दिन जिंदगी में नया रूप, नया रंग चढ़ता है। नए संकल्प, नई आशा के साथ अपने जीवन को नई चेतना प्रदान करते हैं। भविष्य की अनिश्चितता के साथ जो बात हमें परेशान करती है, वह है भावनाओं के...

सावन उतरे चित्त में
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 27 Jul 2016 09:24 PM
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सावन की ही तरह हर दिन जिंदगी में नया रूप, नया रंग चढ़ता है। नए संकल्प, नई आशा के साथ अपने जीवन को नई चेतना प्रदान करते हैं। भविष्य की अनिश्चितता के साथ जो बात हमें परेशान करती है, वह है भावनाओं के असंतोष से उठने वाली पीड़ा। अमेरिकी लेखक जैक वेल्स ने इमोशनल इंटेलिजेंस को एक चुनौती माना है।

उनका कहना है कि जेब से हम भले ही संपन्न हुए हों, पर भावनात्मक संतुलन बिठाए रखने में बहुत विपन्न हुए हैं। हम अपने व्यक्तित्व में जरा भी बदलाव नहीं चाहते हैं। किसी की आलोचना लाभकारी भी हो सकती है, पर इसे सदा नकारात्मक रूप में ही लिया जाता है। पाब्लो नेरुदा को अपनी पहली ही कविता में अपने माता-पिता से आलोचना सुननी पड़ी, जिसे उन्होंने एक सीख की भांति लिया। उनके मन में यह बात बैठ गई कि केवल काम करते जाओ, आलोचनाएं तो होती रहेंगी। किसी भी सफल व्यक्ति की जीवनी पढ़ें, ऐसे लोग आलोचनाओं से ही आगे बढ़ने की राह निकालते हैं और अपनी सृजनात्मकता की धार पैनी करते हैं।

फ्रीडा काहलो ने कहा भी है कि जो काम मजबूरी में किया जाए, वह बोझिल होता है और जो खुशी से किया जाए, वह कला है। बिना खुशी के सृजन संभव नहीं। वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान  में कवि दुख के अथाह सागर में भी उमंग की लहर महसूस करता है, इसलिए उसकी कलात्मकता अंतरतम तक पहुंच जाती है। इनसे मिली संतुष्टि अपार होती है।

इसलिए प्रकृति से प्राणी का मौलिक संबंध माना गया है। प्रकृति का तप मानव को जीवन राग की साधना का पथ दिखलाता है। प्रकृति को नियंता ने विविध रंगों से संपन्न किया है। धूल जाने दें, सावन की फुहार में चित्त की सारी बुराइयों को बहाकर मन को इतना रिक्त कर लें कि वह उमंग-उत्साह के रंग से भर जाए। सावन की जरूरत कुदरत को ही नहीं, मन को भी है।
कविता विकास

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