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जो पहले था अब वह नहीं है

पहले सियासत और विमर्श, सब कुछ अमीर-गरीब से ही चलता था। कहते हैं कि प्राचीन काल में यह सब सुरों-असुरों के बीच ही चलता था। पर जब से आदमी विमर्श में आया, तब से बंटवारा अमीर-गरीब का हो गया। एक अमीरों का...

जो पहले था अब वह नहीं है
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 04 Mar 2016 12:04 AM
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पहले सियासत और विमर्श, सब कुछ अमीर-गरीब से ही चलता था। कहते हैं कि प्राचीन काल में यह सब सुरों-असुरों के बीच ही चलता था। पर जब से आदमी विमर्श में आया, तब से बंटवारा अमीर-गरीब का हो गया। एक अमीरों का पक्ष था, दूसरा गरीबों का। अमीर कम थे और गरीब ज्यादा थे। अमीर कम थे, फिर भी प्रभावी थे, गरीब ज्यादा थे, फिर भी प्रभावहीन। पर अब सब देशभक्तों और देशद्रोहियों के बीच ही चलता है। एक देशभक्तों का पक्ष है, दूसरा देशद्रोहियों का। कई बार लगता है कि देशभक्त कम हैं, लेकिन वे प्रभावी बहुत हैं। देशद्रोही कुछ ज्यादा ही हो गए हैं। पर देशभक्त जब देशद्रोहियों को पीटने लगते हैं, उन्हें गरियाने लगते हैं, उन पर मुकदमे ठोकने लगते हैं, तब लगता है कि वे काफी हैं। और ज्यादा हो गए, तो फिर कहीं उनमें ही विभाजन न हो जाए- कम देशभक्त और ज्यादा देशभक्त। यह विभाजन वैसा भी हो सकता है, जैसे कभी कांग्रेस में हुआ- नरम दल और गरम दल। अच्छी बात यह है कि अब न तो कांग्रेस में नरम-गरम दल रहे और न ही अमीर-गरीब का विमर्श बचा।
पहले देशभक्त सूली पर चढ़ने के लिए तैयार रहते थे, लेकिन अब वे सूली पर चढ़ाने को तैयार रहते हैं। पहले कुछ लोग शाकाहारी होते थे और कुछ मांसाहारी। लेकिन अब कुछ लोग बीफ खाने वाले होते हैं और कुछ बीफ न खाने वाले होते हैं। पहले जिन्हें हम पसंद नहीं करते थे, उन्हें झल्लाकर कह देते थे- भाड़ में जा, चूल्हे में जा या फिर जहन्नुम में जा। अब जो लोग हमें पसंद नहीं होते, उन्हें हम साफ कहते हैं- पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते? उन्हें पाकिस्तान भेजने के लिए हम ऐसे उतावले रहते हैं कि कई बार हम उनके टिकट का खर्च उठाने तक को तैयार हो जाते हैं। बल्कि अब तो नारे भी बदल गए हैं। पहले सबसे क्रांतिकारी नारा था- इंकलाब जिंदाबाद। अब सबसे क्रांतिकारी नारा है- पाकिस्तान मुर्दाबाद। पहले विश्वविद्यालय ज्ञान-विज्ञान के केंद्र, राजनीति की नर्सरी हुआ करते थे, अब वे देशद्रोही गतिविधियों के केंद्र और आतंकवाद की नर्सरी हो गए हैं। जो पहले था,  वह अब नहीं है।
 

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