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पुतिन और यूक्रेन में किसे चुनेंगे ट्रंप

उत्तर कोरिया द्वारा बीते रविवार को किया गया बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण कई विश्लेषकों की नजर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश मोरचे पर पहली चुनौती थी या फिर ऐसी पहली, जिसकी वजह खुद ट्रंप...

पुतिन और यूक्रेन में किसे चुनेंगे ट्रंप
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 15 Feb 2017 12:38 AM
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उत्तर कोरिया द्वारा बीते रविवार को किया गया बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण कई विश्लेषकों की नजर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश मोरचे पर पहली चुनौती थी या फिर ऐसी पहली, जिसकी वजह खुद ट्रंप की कोई चूक नहीं थी। मगर यह प्योंगयांग की तरफ से दिख रहे खतरे और ह्वाइट हाउस के सामने मौजूद विकल्प, दोनों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना है। हकीकत में ऐसी कोई तस्वीर नहीं बन रही कि उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन दक्षिण कोरिया या जापान के खिलाफ युद्ध शुरू करने वाले हैं। दरअसल, ट्रंप ने कहा था कि वह दुनिया के सबसे अभिमानी नेता हैं, और किम ने मिसाइल प्रक्षेपण करके ट्रंप के इसी दावे को चुनौती दी है।

वास्तव में, अपनी पहली विदेशी चुनौती से ट्रंप प्रशासन का वास्ता तो जनवरी के अंत में ही पड़ गया था, वह भी प्योंगयांग के ठीक 7,000 किलोमीटर पश्चिम यूक्रेन में, जहां रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके छद्म लड़ाकों ने अस्थिरता और कब्जे की अपनी थमी लड़ाई फिर से शुरू कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को देखते हुए इस अभियान को रोक दिया गया था, मगर 28 जनवरी को पुतिन और ट्रंप में फोन पर हुई बातचीत के बाद अब इसका फिर आगाज हो गया है।

ह्वाइट हाउस में अपने सबसे बड़े अमेरिकी प्रशंसक ट्रंप के सुरक्षित पहुंचने के साथ ही लगता है कि पुतिन रूस की पश्चिमी सीमा के विस्तार की अपनी पुरानी योजना पर फिर से आगे बढ़ने को उत्सुक हैं। यही वजह है कि रूसी सैनिकों के साथ-साथ मॉस्को की शह पर विद्रोही लड़ाके भी यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र पर कब्जे के लिए किव की हुकूमत से दो-दो हाथ कर रहे हैं। यूरोपीय सुरक्षा व सहयोग संगठन (ओएससीई) का मानना है कि पूर्वी यूक्रेन के इस हिस्से में 26 जनवरी तक जहां 420 विस्फोट किए गए, वहीं 31 जनवरी तक यह बढ़कर 10,000 से भी ज्यादा हो गए। रूसी सैनिकों और विद्रोहियों द्वारा असैन्य इलाकों पर की गई बमबारी के कारण 13 यूक्रेनी सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, जबकि ठेठ सर्दी में अवदियिवका शहर करीब एक हफ्ते तक बिजली के बिना अंधेरे में रहा।

इस चुनौती से ट्रंप प्रशासन आखिर कैसे जूझेगा? हालांकि वहां से आई पहली प्रतिक्रिया मिली-जुली है। दो फरवरी को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने क्रीमिया प्रायद्वीप में रूस की इस विस्तारवादी नीति के जमकर मुखालफत की। हेली ने कहा, ‘अमेरिका इस कार्रवाई की पुरजोर निंदा करता है और रूस को तुरंत क्रीमिया से हटने की मांग करता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘क्रीमिया यूक्रेन का हिस्सा है। क्रीमिया को लेकर रूस पर हमारा प्रतिबंध तक तक जारी रहेगा, जब तक रूस वहां का नियंत्रण वापस यूक्रेन को नहीं सौंप देता।’

मगर उसी दिन, अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने ओबामा प्रशासन द्वारा रूस की खुफिया एजेंसी संघीय सुरक्षा सेवा पर लगाए गए प्रतिबंधों में ढील देने की एक अधिसूचना जारी कर दी। सीएनएन ने एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया कि रूस के साथ अमेरिकी कारोबार की राह में ‘अप्रत्याशित नतीजे’ से बचने के लिए यह एक तकनीकी समाधान था। जाहिर है, यह ट्रंप की तरफ से पुतिन को दिया गया कोई शांति प्रस्ताव नहीं था, मगर इसकी घोषणा का वक्त सही नहीं था। अगर यूक्रेन की नजर में यह ह्वाइट हाउस की बेपरवाही है, जो उसकी जमीन के एक टुकड़े को विरोधी द्वारा हड़पे जाने पर निश्चिंत है, तो उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता।

हालांकि रूसी प्रतिबंध पर वाशिंगटन की मंशा पांच फरवरी तक भी साफ नहीं हो सकी। उप-राष्ट्रपति माइक पेंस ने संकेत दिया कि अगर पुतिन इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण साझेदार बनते हैं, तो अमेरिका प्रतिबंधों पर विचार कर सकता है। मगर उसी दिन ट्रंप ने खुद यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेन को से बात की और कीव व मॉस्को के बीच शांति समझौते के लिए मध्यस्थ बनने का वायदा किया।

यह कहना मुश्किल है कि ऐसी बातचीत में ट्रंप किस कदर एक ईमानदार मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं? मगर यूक्रेनवासियों की इस उलझन को गलत नहीं बताया जा सकता कि अमेरिकी राष्ट्रपति के पुतिन को लेकर पूर्वाग्रह हैं। यूक्रेन ही नहीं, अमेरिकी खुफिया एजेंसी के भी कई  अधिकारियों की यही चिंता है कि रूसी मुखिया की  प्रशंसा करना खुद ट्रंप के प्रति अविश्वास पैदा करता है। अविश्वास इतना है कि रूस से संबंधित कुछ संवेदनशील सूचनाओं को उनसे साझा करने से बचने के लिए इन अधिकारियों को कहा गया है, क्योंकि अगली फोन कॉल में ट्रंप वे राज कहीं पुतिन को न बता दें।

मगर ट्रंप को अंधेरे में रखने से रूस को किनारे नहीं रखा जा सकता। यूक्रेनवासी चाहते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति वास्तविकता समझें। और जल्दी समझें, क्योंकि पूर्वी यूक्रेन में युद्ध एक डरावना सच है, जिसमें 2014 से अब तक 10,000 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं।

यूक्रेन को बचाना आखिर अमेरिका के हित में क्यों है? जवाब कई हैं- राजनीतिक, सैनिक और आर्थिक। सबसे आसान जवाब यह है कि अमेरिका यूक्रेन का एहसानमंद है। नहीं भूलना चाहिए कि सोवियत संघ के विघटन के बाद यह वाशिंगटन ही था, जिसने यूक्रेन को इस बात के लिए राजी किया कि वह अपना परमाणु हथियारों का जखीरा सौंप दे और बदले में अमेरिका उसे रूस से बचाने की गारंटी लेगा। ऐसे में, यह राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए शर्म की बात रही कि उन्होंने 2014 में यूक्रेन को धोखा दिया और रूस को क्रीमिया पर कब्जा जमाने का मौका मिल गया। ट्रंप के पास न सिर्फ अमेरिकी प्रतिष्ठा पर लगे इस दाग को धोने का मौका है, बल्कि पूर्व सोवियत संघ के करीबी देशों को यह चेताने का भी समय है कि वाशिंगटन उन्हें क्रीमिया में घुसने नहीं देगा।

बेशक ट्रंप के लिए उस नुकसान को दुरुस्त करना कठिन होगा, जो ओबामा ने किया। मुश्किल क्रीमिया को तत्काल यूक्रेन के हवाले करने में भी आएगी, क्योंकि इस बातचीत में लंबा वक्त लग सकता है। मगर अमेरिकी मुखिया चाहें, तो पुतिन को तत्काल यह संकेत दे सकते हैं कि रूस अपनी विस्तारवादी नीति पर तुरंत विराम लगाए, नहीं तो वह ओबामा के कार्यकाल से भी कठिन प्रतिबंधों को झेलने के लिए तैयार रहे। वह यह मांग भी कर सकते हैं कि मॉस्को की सेना अपनी सीमा में वापस लौट जाए और कीव के साथ शांति समझौता हो। अगर ऐसा संभव नहीं हो पाता है, तो यूक्रेन को अमेरिका और नाटो भरपूर सैन्य मदद दे, ताकि वह अपनी रक्षा कर सके। पुतिन को खरी-खरी सुनाने के साथ ही ट्रंप को पोरोशेनको पर भी दबाव बनाना चाहिए कि वह न सिर्फ डोनबास अलगाववादियों को माफी दें, बल्कि राजनीति में उनकी उचित भागीदारी भी सुनिश्चित करें।
ट्रंप की विदेश-नीति की यही असल चुनौती है।

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