वय में, भय में, सुबह की लय में, यूं ही नहीं टहलता कोई
आज सुबह टहलकर वापस आने पर बोध हो रहा है कि सुबह टहलने की भी वजहें होती हैं। आंकड़ा सहेजने वाले शास्त्रियों के मुताबिक, 60 परसेंट टहलने वाले बड़े-बूढ़े रिटायर्ड, 30 प्रतिशत चुस्ती-फुर्ती के लिए...
आज सुबह टहलकर वापस आने पर बोध हो रहा है कि सुबह टहलने की भी वजहें होती हैं। आंकड़ा सहेजने वाले शास्त्रियों के मुताबिक, 60 परसेंट टहलने वाले बड़े-बूढ़े रिटायर्ड, 30 प्रतिशत चुस्ती-फुर्ती के लिए और नौ प्रतिशत डॉक्टर की सलाह वाले लोग होते हैं। बचे हुए एक प्रतिशत मजबूरी में टहलते हैं। यह मजबूरी उनका श्वानानुराग है, क्योंकि घर में पशुओं के लिए अटैच टॉयलेट नहीं होते। इन दिनों स्मार्ट दिखने की चाहत में मॉर्निंग वॉक वाली पीढ़ी ने सुबह टहलने के विशेष परिधान में शृंगार किट का नया आइटम शामिल कर लिया है। उनकी बाजुओं में बाजूबंद सरीखा स्लेटनुमा यंत्र दर्शाता रहता है कि अब तक आप कितना 'रास्ता नाप' चुके हैं।
टहलने की प्राथमिक अवस्था में भले ही लोग परस्पर घूरते हों, अंतत: एक रिश्ता बनने की पूरी गुंजाइश रहती है। बंदे का अनुभव है कि टहलने में साथी का चयन यदि विवेक से किया जाए, तो चिंतन स्तर सुधरने के साथ-साथ सामजिक प्रतिष्ठा में भी लाभ होता है। जहां एक ओर अध्यापक, व्यवसायी सरीखे लोगों की सोहबत उनकी व्यथाओं से मन नीरस करती है, वहीं दूसरी तरफ साहित्यिक और पत्रकार टाइप के लोगों की कथाओं से दीन-दुनिया की जानकारी मिलती है। सबसे घातक है कवि के साथ टहलना। आशंका रहती है कि गत रात लिखी 'बासी' कविता को ताजा बता उड़ेल दिया जाएगा आपके कानों में।
साठ फीसदी की श्रेणी में फिट होने वाले 'इन पंक्तियों के लेखक' को उस दिन एक एडवोकेट साथी से मुफ्त सलाह मिली- ये कुरता-पैजामा छोड़ 'ट्रैक-सूट' पहन मॉडर्न बनिए। एक 'फीलिंग' आएगी मॉडर्न होने की। 'फीलिंग' में 'बाजूबंद' बांधे छोटे कद का अजीब-सा कुत्ता लेकर टहलने वाले वकील साहब एक परसेंट वाली कैटेगरी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
सलीके से किया गया 'मॉर्निंग-वॉक' है फायदे का सौदा। वापस आकर बिस्तर पर ऐसे पसरना, जैसे अखाड़़े से लौटे हों, फिर क्या फायदा? तो देवियो और सज्जनो, डॉक्टर की सलाह का इंतजार किए बगैर टहलिए और स्वस्थ रहिये। बस सुबह का साथी जरा ध्यान से चुनिए।
अशोक संड