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मुलाकात

उन दोनों के बीच शब्दों का ढेर था। दोनों के मुंह से कुछ देर पहले तक जो शब्द गिर रहे थे, उनमेें से थोड़े से अपने गंतव्य तक पहुंच रहे थे, बाकी सब बीच में ढेर हो रहे थे। वे दोनों दोस्त थे या नहीं, कह...

मुलाकात
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 18 Apr 2016 09:48 PM
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उन दोनों के बीच शब्दों का ढेर था। दोनों के मुंह से कुछ देर पहले तक जो शब्द गिर रहे थे, उनमेें से थोड़े से अपने गंतव्य तक पहुंच रहे थे, बाकी सब बीच में ढेर हो रहे थे। वे दोनों दोस्त थे या नहीं, कह पाना मुश्किल था। उनकी मुलाकातें अक्सर होती तो थीं, मगर तुरत-फुरत खत्म हो जातीं।

ये मुलाकातें भले ही छोटी होतीं, पर बड़ी अच्छी होती थीं। इनसे वे दोनों आपस में मिलने को उत्सुक बने रहते थे। आज भी वे एक-दूसरे को जल्दी विदा कह देते, तो यह मुलाकात भी पहले की तरह कमाल की मुलाकात होती, पर आज उनको ज्यादा देर तक एक-दूसरे के साथ रहना था। यह जगह उनमें से 'एक' का दफ्तर थी और 'दूसरा' आज उसी के दफ्तर में अपने बिजनेस पार्टनर (तीसरे) का इंतजार कर रहा था। पार्टनर को आने में देर हो रही थी।

पहले तो इस देर का पूर्वानुमान एक मौके की तरह किया गया था कि संक्षिप्त मुलाकातों वाले दोस्त से आज लंबी बातें होंगी, और हुआ भी, पर कुछ देर तक। शुरू में चाय की चुस्कियों के साथ बातों के सूत से कताई होने लगी। फिर कताई से बुनाई का सफर उबाऊ होने लगा। फिर भी वे बोलते रहे, पर उनके बीच बहुत सारा निरर्थक जमा होने लगा। फिर उनका बोलना रुक गया। अब वे दोनों एक-दूसरे के सामने नहीं देख रहे थे। कोई कैलेंडर पर बेवजह नजरें गड़ाए था, तो कोई कोने में पड़ी धूल खाई ट्रॉफी देख रहा था। वे आमने-सामने थे, पर एक-दूसरे की उपस्थिति से बेपरवाह। हद तो यह थी कि वे अब ऐसे बैठे थे, जैसे एक-दूसरे से अनजान हों।
अपने ब्लॉग में संजय व्यास

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