यह बदलाव बुरा तो नहीं
सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। अचानक यह दिक्कत चली आई। उनके हाथ-पांव फूल गए। उन्हें लगा कि यह बदलाव बर्बादी की ओर ले जाएगा। 'हमें यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि हम जो बदलाव नहीं चाहते, वह खराब...
सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। अचानक यह दिक्कत चली आई। उनके हाथ-पांव फूल गए। उन्हें लगा कि यह बदलाव बर्बादी की ओर ले जाएगा।
'हमें यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि हम जो बदलाव नहीं चाहते, वह खराब है।' यह मानना है डॉ जेनिस विलहायर का। वह मशहूर साइकोथिरेपिस्ट हैं। एमोरी हेल्थकेयर में साइकोथिरेपी ट्रीटमेंट प्रोग्राम की डायरेक्टर हैं। उनकी खूब सराही गई किताब है, थिंक फॉरवर्ड टु थ्राइव: हाउ टु यूज द माइंड्स पावर ऑफ एंटीसिपेशन टु ट्रांसेन्ड योर पास्ट ऐंड ट्रांसफॉर्म योर लाइफ।
हम बहुत जल्द एक किस्म की जिंदगी के आदी हो जाते हैं। तब हम यह भी नहीं सोचते कि पिछली बार किसी बदलाव की वजह से ही हमें यह जिंदगी मिली है। उस वक्त भी हमें वह बदलाव अच्छा नहीं लगा था, लेकिन धीरे-धीरे हम उसमें ढलने लगे। फिर वही जिंदगी हमें अच्छी लगने लगी। उस पर ठीक से सोचा, तो लगा कि यह तो पहले से बेहतर है।
मजेदार बात यह है कि इस तजुर्बे के बावजूद जब कोई नया बदलाव हमारी जिंदगी में आता है, तो हम उसे ठीक से नहीं लेते। हमारी प्रतिक्रिया अक्सर अच्छी नहीं होती। हम खट से मान लेते हैं कि यह बदलाव हमारे लिए अच्छा नहीं है। थोड़ा ज्यादा सोच लेते हैं, तो उसे बर्बादी की ओर ले जाने वाला मान लेते हैं।
असल में, कोई भी बदलाव हमें कहीं रोक तो देता ही है। एक चौराहे पर अचानक हम अपने को खड़ा पाते हैं। लेकिन हम कैसे दावे के साथ कह सकते हैं कि अब जो रास्ता हमें मिला है, वह खराब ही है। यह भी तो हो सकता है कि हम जिस पर चल रहे हों, उससे बेहतर हो यह रास्ता। उस रास्ते पर थोड़ा-सा चलकर तो देख लो।बदलाव पर परेशान होना तो जायज है, लेकिन बिना कोई कदम उठाए उसे खराब मान लेना ठीक नहीं है।
राजीव कटारा