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जहर दवा की बोतल में भी हो सकता है

सरकारी प्रयोगशालाओं के एक ताजा अध्ययन में पता लगा है कि सॉफ्ट ड्रिंक व शराब की बिक्री में जिन प्लास्टिक यानी पीईटी बोतलों का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें घातक केमिकल मिले होते हैं। यह रिपोर्ट अभी तक...

जहर दवा की बोतल में भी हो सकता है
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Jun 2016 09:12 PM
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सरकारी प्रयोगशालाओं के एक ताजा अध्ययन में पता लगा है कि सॉफ्ट ड्रिंक व शराब की बिक्री में जिन प्लास्टिक यानी पीईटी बोतलों का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें घातक केमिकल मिले होते हैं। यह रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है। इसके पहले, एक अंग्रेजी अखबार ने खुलासा किया था कि दवाओं के लिए इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक की बोतलों में जहरीले रसायन हैं।

बहरहाल, सरकारी प्रयोगशालाओं का यह अध्ययन उत्तराखंड के 'हिम जागृति मंच' नामक एनजीओ की पहल पर हुआ है। इसी संगठन ने जूस, शीतल पेय, शराब व तेल की प्लास्टिक-बोतलों की जांच के लिए सरकारी प्रयोगशालाओं में भेजा था। और अब इसने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर कर अपील की है कि इन बोतलों के इस्तेमाल पर फौरन रोक लगाई जाए। दरअसल, इन बोतलों में एंटीमनी, सीसा और कैडमियम जैसे घातक तत्व मिले हैं, जो नियत मात्रा से काफी ज्यादा हैं।

यही नहीं, इनमें मौजूद कई धातुएं व डाई-इथाइलहेक्साइल पीएचथेलेट (डीईएचपी) धीरे-धीरे पेय पदार्थों में भी घुल जाती हैं। उधर स्वास्थ्य मंत्रालय के कहने पर दवाओं की प्लास्टिक बोतलों की जांच अखिल भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान एवं जन स्वास्थ्य संस्थान ने की थी। उसके पांच सैंपलों में सीसा, एंटीमनी, डीईएचपी और क्रोमियम जैसे तत्व थे। डीईएचपी ऐसा रसायन है, जो हॉर्मोन के तंत्र को प्रभावित करता है। इससे कैंसर होने की आशंका भी बढ़ जाती है। यह कई देशों में प्रतिबंधित है। एंटीमनी भी कम खतरनाक नहीं है। यह रक्तचाप बढ़ाता है और दिल को कमजोर करता है। सीसा किडनी खराब करता है, जबकि कैडमियम के कारण सांस की समस्याएं बढ़ती हैं।

आखिर सरकार इस मामले में क्यों नहीं कुछ कर रही है? पहली वजह तो अपने देश में मानकों का न होना है। जिन प्लास्टिक की बोतलों में कार्बोनेटेड ड्रिंक या टोमैटो कैचअप या शराब बेचे जाते हैं, उन पर एंटीमनी और डीईएचपी के सुरक्षित उपयोग की सीमा नहीं दर्ज होती। भारतीय मानक ब्यूरो खाद्य पदार्थों में इन रसायनों की उपस्थिति पर गौर ही नहीं करता।
दो साल पहले भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने बताया था कि प्लास्टिक की बोतलों से रसायन दवाओं में घुलते हैं, लिहाजा इन बोतलों को, खासकर बच्चों व गर्भवती महिलाओं की दवाओं के लिए प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। मगर दवा और प्लास्टिक लॉबी इसके विरोध में उतर गई।

उनका तर्क है कि यह निष्कर्ष ठोस नहीं है। फिलहाल तनातनी जारी है। ऐसे में, इस मसले पर फैसला एनजीटी लेगा। मगर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की एक नई योजना से सरकार का दोहरा रवैया उजागर होता है। मंत्री महोदय ने 10 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की मौजूदा खपत को बढ़ाकर 2022 तक दोगुना करने की बात कही है। क्या यह अच्छा न होगा कि पर्यावरण दिवस पर हम इन्हीं बोतलों पर चर्चा करें?
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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