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खेल-खेल में सीखना, सीखने का खेल

सुबह के पौने आठ बज रहे हैं। बहुत सारे बच्चे दिल्ली के एक विद्यालय के मैदान में बड़े से पेड़ के नीचे योग कर रहे हैं।  साथ में दो टीचर भी हैं। मई का महीना है। स्कूल की छुट्टियां तो शुरू हो गई हैं।...

खेल-खेल में सीखना, सीखने का खेल
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 27 May 2016 09:04 PM
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सुबह के पौने आठ बज रहे हैं। बहुत सारे बच्चे दिल्ली के एक विद्यालय के मैदान में बड़े से पेड़ के नीचे योग कर रहे हैं।  साथ में दो टीचर भी हैं। मई का महीना है। स्कूल की छुट्टियां तो शुरू हो गई हैं। इन छुट्टियों में दिल्ली में कुछ नया हो रहा  है।

कक्षा छह के बच्चों के लिए समर कैंप आयोजित किया गया है। समर कैंप का पूरा वातावरण कुछ अलग है। बच्चों के बैठने का तरीका, टीचर का रवैया, हो रही गतिविधियां, सभी अलग हैं। बच्चे ग्रुप में बंटे हुए हैं। पांच-पांच बच्चों का ग्रुप बनाया गया है। बच्चे अपने ग्रुप की उपस्थिति का रिकॉर्ड खुद ही रख रहे हैं।

आज यहां एक कहानी पर काम हो रहा है। कहानी अदिति नाम की एक लड़की के बारे में है। अदिति को हमेशा भूख लगी रहती है। जब स्कूल से आती है, पेट भरकर नाश्ता करती है। इसके बाद दोस्तों के साथ खेलकर आती है, तो उसे फिर भूख लग जाती है। उसे हरदम लगता है की गोलगप्पे, आलू टिक्की वगैरह खाने चलते हैं। आज अदिति को उसकी सहेली अपनी दादी के पास लेकर गई। खेल के बाद दादी ने अदिति को चटपटा नाश्ता बनाना सिखा दिया। अब अदिति अच्छी-अच्छी चीजें बनाती है। खुद खाती है, औरों को भी खिलाती है।

कहानी पढ़ने के बाद बच्चे उस पर बात करते हैं। वे कहानी में से कुछ शब्द चुनकर उनका अर्थ लिखते हैं और उन्हें वाक्यों में सजाते हैं। शब्द चुनकर अर्थ बताने का काम इन बच्चों के लिए इतना आसान भी नहीं है। एक ग्रुप ने तंग शब्द निकाला। अब आप ही बताइए कि तंग को और कौन से नाम से बुला सकते हैं? सोच-विचार के बाद बच्चों ने तय किया कि शायद परेशान भी कह सकते हैं। दूसरा ग्रुप गहरी सोच में फंसा हुआ था। उन्होंने खत्म शब्द चुना था। पहले तो इस ग्रुप के सदस्यों में सहमति बनी कि खत्म का मतलब है- द एंड। लेकिन तब एक छोटे लड़के ने धीरे से कहा, पर खत्म तो दो तरीके का होता है। एक- जैसे गोलगप्पे खत्म। बाद में और भी गोलगप्पे आ सकते हैं। दूसरा खत्म है, जब लोग मर जाते हैं, वे कभी वापस नहीं आ सकते।

हर एक गतिविधि के बाद बच्चे कोई खेल खेलते हैं। उस दिन का खेल बड़ा मजेदार था। टीचर बोलीं- नागपुर, सब बच्चों ने नाक पर हाथ लगाया। टीचर बोलीं- कानपुर, तो सभी ने कान पकड़ा। अब टीचर ने कहा सिंगापुर, तुरंत बच्चों ने अपनी उंगली से सिर पर सींग लगाए। उन्होंने कहा- जयपुर। जय करने की तरह बच्चों के अपना हाथ आगे किया। इसमें लोग गड़बड़ा रहे थे। सभी को बहुत हंंसी भी आ रही थी। टीचर की आवाज पर ध्यान लगाना जरूरी है। एक गलत कदम, और खेल से बाहर।  
बच्चे आगे की तैयारी करने लगे और मैं स्कूल से बाहर निकल आई। बाहर सड़क के उस पार एक बड़ा गेट है- जेएनयू विश्वविद्यालय का गेट। जेएनयू में क्या होता है, सबको पता है। पर किसी को नहीं पता कि पास के स्कूल में छठी के बच्चों को कितना मजा आ रहा है?
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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