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एक दर्द भरा वाकया

हमारे पुश्तैनी मोहल्ले के आसपास यमुना किनारे बंगाली घाट से विश्राम घाट तक के बीसियों मोहल्ले के नौजवानों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन 'श्यामा- श्याम संघ' की...

एक दर्द भरा वाकया
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 04 May 2016 09:50 PM
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हमारे पुश्तैनी मोहल्ले के आसपास यमुना किनारे बंगाली घाट से विश्राम घाट तक के बीसियों मोहल्ले के नौजवानों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन 'श्यामा- श्याम संघ' की स्थापना की, जिसका मुख्य ध्येय समाज सेवा के साये तले ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ माहौल बनाना था।

इस माहौल में सभी मोहल्लों के परिवारों के मध्य प्रगाढ़ संबंधों का विकास हुआ। उस समय घरों में नल नहीं हुआ करते थे। दाल यमुना के जल से पकती थी। पीने के पानी के लिए हर मोहल्ले में दो-चार कुएं थे और नहाने के लिए यमुना में हर सुबह कुंभ से माहौल में पूरा शहर उमड़ता। यमुना किनारे के युवा सहज ही तैराकी में माहिर हो हर वर्ष पचासों लोगों की जान बचा लेते थे।

हमारे पास के मोहल्ले गोलपाड़ा का एक बड़ा सुगठित युवक नरेश मोहल्लेदार, जो नरेशा के नाम से प्रसिद्ध था, बड़ा जीवट वाला था। अपनी जान जोखिम में डालकर भी डूबतों को बचाना उसने जैसे अपना ध्येय बना लिया था। गरमी में जब भीड़ बढ़ती, तो वह यमुना में तैरते हुए निगाह रखता। बाद के वर्षों में यमुना में लगने वाले मेलों में प्रशासन द्वारा गोताखोर दल के साथ मोटरबोट में नरेशा की नियुक्ति अनिवार्य हो गई थी।

पिछले सप्ताह नरेश गलती से या जल्दबाजी में किसी मालगाड़ी के डिब्बे में चढ़ अंदर जा सोया। डिब्बा बंद हो गया। जब पंजाब के किसी स्टेशन पर डिब्बा खुला, तो नरेशा के नाक-मुंह से खून बह रहा था। जीवन में अनगिनत लोगों की जान बचाने वाला नरेशा बहुत दूर जा चुका था।
 उपेंद्र नाथ चतुर्वेदी की फेसबुक वॉल से

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