उम्मीद जगाती है पर्यावरण संरक्षण की यह सतर्कता
अब जब साल खत्म होने को है, सामान्य सी बात है कि हम अतीत पर नजर डालें, सोचें कि क्या अच्छा हुआ, क्या नहीं। बेहतर तो यही होगा कि हम यह देखें कि पर्यावरण और हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए क्या पहल हुई?...
अब जब साल खत्म होने को है, सामान्य सी बात है कि हम अतीत पर नजर डालें, सोचें कि क्या अच्छा हुआ, क्या नहीं। बेहतर तो यही होगा कि हम यह देखें कि पर्यावरण और हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए क्या पहल हुई? पर्यावरण सूचकांक भले ही मंदा दिखे, लेकिन इस एक साल में कुछ ऐसा भी हुआ, जो उम्मीद जगाता है।
यह उदाहरण उत्साहित करने वाला है- अमेरिकी मूल की कई जनजातियों के लोग बक्कन ऑयल फील्ड्स से उत्तरी डकोटा और मोंटाना तक तेल पहुंचाने वाली भूमिगत पाइपलाइन का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि यह उनकी जमीन, उनके जलस्रोतों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगी और किसी भी रूप में आर्थिक विकास में मददगार नहीं साबित होगी। इनके लिए वह दिन बहुत सुखद था, जब सैन्य विभाग ने इस पाइपलाइन के लिए मिसौरी नदी के नीचे प्रस्तावित खुदाई पर मिली अनापत्ति पर रोक लगा दी। यह स्थान अब पर्यावरण की लड़ाई लड़ने वालों के लिए उम्मीद का पर्याय बन चुका है।
जब देश के लगभग सभी शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरे के सबसे ऊपरी स्तर पर हो यह पहल भी अच्छी है। जिस संकट पर वर्षों से चिंता जताई जा रही थी, उस पर्यावरण के मुद्दे पर राजनेताओं सहित सभी का ध्यान गया और यह बहसों के केंद्र में आया। भले ही वैज्ञानिक अब भी दिल्ली की सड़कों पर वाहनों के लिए सम-विषम फॉर्मूले के नफे-नुकसान पर बहस कर रहे हों, लेकिन इस एक प्रयोग ने यह तो साबित कर ही दिया कि वायु प्रदूषण की चिंता पहली बार इस स्तर तक महसूस की गई। ऐसा शहर, जो महंगी गाड़ियों और रसूख के लिए जाना जाता हो, लोगों ने सम-विषम से उपजी थोड़ी सी असुविधा को खुशी-खुशी अपनाकर यह उम्मीद जगा ही दी कि वायु प्रदूषण से भी जीता जा सकता है। 2017 में भी यह जज्बा बरकरार रखना होगा।
ऐसे वक्त में, जब पर्यावरण कानूनों को शिथिल करने की कोशिशें हो रही हों, तब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के कुछ आदेश आश्वस्त करते हैं। ट्रिब्यूनल उस वक्त सक्रिय हुआ, जब सारी उम्मीदें खत्म दिख रही थीं। अरुणाचल के तवांग में हाइड्रो-पावर प्रोजेक्ट का पर्यावरण क्लीयरेंस सर्टिफिकेट इस आधार पर रद्द कर देना कि संबद्ध लोगों ने इलाके में एक लुप्तप्राय चिड़िया (काली गर्दन वाला सारस) के बसे होने का तथ्य छिपा लिया था। दिल्ली का वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए समयबद्ध कार्ययोजना बनाने का निर्देश भी महत्वपूर्ण माना जाएगा, जिसने केंद्र और राज्य के परस्पर दोषारोपण के माहौल में दोनों की अलग-अलग जिम्मेदारी तय कर दी। बेंगलुरु में आठ सौ पेड़ों और कई ऐतिहासिक इमारतों की कीमत पर स्टील फ्लाईओवर निर्माण पर रोक भी बड़ी घटना है।
विश्व मानचित्र पर एक बड़ी घटना हवाई में भी हुई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हवाई स्थित राष्ट्रीय मरीन स्मारक का आकार पांच लाख वर्गमील से भी ज्यादा करने की घोषणा की। अब समूचे विश्व में पर्यावरण संतुलन के दृष्टिकोण से यह सबसे विशाल पर्यावरण संरक्षित क्षेत्र बन गया है।
हर साल नई-नई प्रजातियों की खोज यह एहसास कराती है कि हम अपनी प्रकृति के बारे में क्या और कितना जानते हैं। इस साल भी अफ्रीका का दुर्लभ पक्षी, ऑस्ट्रेलिया में पाई गई समुद्री मछली, इक्वाडोर के गालापागोस में नई प्रजाति का कछुआ और ब्राजील के एक पहाड़ पर पाया गया एक ऐसा पौधा, जिससे निकलने वाला म्यूकस कीड़ो-मकोड़ों को पकड़ने में सहायक है, ऐसी ही कुछ दुर्लभ खोज हैं।
जाहिर है, इस फेहरिस्त का मतलब यह कतई नहीं कि हम अपने समय की कोई रंगीन तस्वीर उभारें, बल्कि सच यह है कि इससे पहले न तो हमने इतनी ज्यादा प्रजातियों से हाथ धोया, न ही हमारे जल और आकाश में इस हद तक जहरीले रसायनों की मौजूदगी देखी गई। ऐसे में, क्या यह जरूरी नहीं कि हम अपनी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर इतराएं, उनका जश्न मनाएं? वर्षांत में यह ख्याल ही सुखद है कि लोग वायु प्रदूषण से लड़ने, वन और वन्य जीवों की रक्षा पर सोचने लगे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2017 में हमारा आकाश और साफ होगा और हम पर्यावरण संरक्षण के लिए ज्यादा वक्त दे पाएंगे।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)