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सवाल दौड़ का

'यहां मरने तक की फुरसत नहीं है और तुम्हें पार्टी की पड़ी है।' उन्होंने गुस्से में तमतमाते हुए कहा। हममें से ज्यादातर लोग इसी भ्रम में अपनी तमाम उम्र गुजार देते हैं कि अगर कहीं वे भूले से भी...

सवाल दौड़ का
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 07 Jun 2016 09:12 PM
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'यहां मरने तक की फुरसत नहीं है और तुम्हें पार्टी की पड़ी है।' उन्होंने गुस्से में तमतमाते हुए कहा। हममें से ज्यादातर लोग इसी भ्रम में अपनी तमाम उम्र गुजार देते हैं कि अगर कहीं वे भूले से भी पल भर को रुक गए, तो जिंदगी की दौड़ में बहुत पिछड़ जाएंगे। वक्त कई सदी आगे हो जाएगा। वे अपना सब कुछ खो देंगे। इसी सोच का नतीजा होता है कि हम दिन-रात तेज, और तेज दौड़ते रहते हैं। परिणाम में हाथ लगता है तो एक प्रकार का आवेश, उबाल और अवसाद। जिंदगी की झोली में रहती है, तो सिर्फ उत्तेजना, चिंता, निराशा और अशांति। तो शांत जिंदगी जीने के लिए क्या करें?

मशहूर लेखक नॉर्मन विन्सेंट पील अपनी किताब द पॉवर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग  में कहते हैं कि भावनात्मक उत्तेजना, मानसिक अशांति और आवेश को नियंत्रित करने के लिए सबसे जरूरी है कि किसी चीज पर प्रतिक्रिया देते समय हम शारीरिक तौर पर अनुशासित व सचेत रहें। आपको यह देखकर स्वयं आश्चर्य होगा कि हमारा शारीरिक अनुशासन कितनी तीव्रता से हमारे भावनात्मक आवेग को कम करता है।

जब एक बार भावनात्मक आवेग कम हो जाता है, तो आवेश, बात-बात पर उबाल और चिड़चिड़ापन अपने आप ही कम होता चला जाता है। जब ऐसा होता है, तब जिंदगी खुद-ब-खुद बेहतर होने लग जाती है। पील आगे कहते हैं, शांतिपूर्ण जिंदगी व्यतीत करने के लिए अपने दौड़ने की रफ्तार को कम करो। तेज चाल न केवल हमें शारीरिक रूप से बर्बाद करती है, बल्कि हमारे मन-मस्तिष्क को चीरती हुई हमारी आत्मा के भी टुकड़े करती है। हमारे विचारों का चरित्र हमारी रफ्तार का निर्धारण करता है। यह मनुष्य के लिए संभव है कि शारीरिक रूप से शांत अस्तित्व में रहते हुए भी अपनी मानसिक और भावनात्मक रफ्तार को बनाए रखे। जरूरत है, तो सिर्फ और सिर्फ अंधी दौड़ से बचने और अपना 'आपा' न खोने की।      
भारत भूषण आर्य

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