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मुकाबला खुद से

रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली भारतीय बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु कहती हैं, ‘जब मैं ओलंपिक खेलने गई थी, तो मेरा लक्ष्य गोल्ड या सिल्वर नहीं था। मेरा लक्ष्य अपना बेस्ट देने का था, गेम के...

मुकाबला खुद से
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 09 Nov 2016 12:23 AM
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रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली भारतीय बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु कहती हैं, ‘जब मैं ओलंपिक खेलने गई थी, तो मेरा लक्ष्य गोल्ड या सिल्वर नहीं था। मेरा लक्ष्य अपना बेस्ट देने का था, गेम के दौरान खुद को पूरी तरह से झोंक देने का था, फिर रिजल्ट चाहे कुछ भी हो।’ नतीजों की परवाह न करते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ देना ही वह रास्ता होता है, जो हमें देर-सवेर कामयाबी की ओर ले जाता है।

हमारा मुकाबला दूसरों से नहीं, खुद से ही होता है। यह पूछने की बजाय कि हम दूसरों के मुकाबले कैसा कर रहे हैं, हमें खुद से ही यह पूछना होता है कि हम कल के मुकाबले आज कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं? हमने अपने लिए जो मानक तय किया है, उसे पूरा कर पा रहे हैं या नहीं? कहीं हम ‘बहानों के जाल’ में तो नहीं फंस रहे हैं? मसलन, हमारे यहां उतनी सुविधाएं और साधन तो हैं ही नहीं, बिना सिफारिश के तो चयन मुमकिन नहीं, बस से जाने तक के पैसे नहीं वगैरह-वगैरह। कुछ पाने के लिए हमें हर दिन खुद में सुधार लाना होता है।

‘नकारात्मक जोन’ से निकालकर खुद को ‘सकारात्मक जोन’ में ले जाना होता है। अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने कहा था कि उन लोगों की कतार में, जिन्हें न तो हार का मतलब पता है और न जीत का, दर्जा हासिल करने से कहीं ज्यादा अच्छा है, बड़े और शक्तिशाली काम करना और गौरवपूर्ण विजय प्राप्त करना। फिर इसकी राह में असफलताएं कितनी भी रुकावटें क्यों न पैदा करें, हमें हर हाल में अपना ‘बेस्ट’ देना होता है। ब्रिटिश एथलीट रोजर बैनिस्टर कहते हैं कि हमें खुद से अपना श्रेष्ठ निकालने के लिए संघर्ष करना आनंद देता है। यह संघर्ष एक गहरी संतुष्टि देता है, शायद जिंदगी में वास्तविक संतोष। सचमुच जिंदगी दूसरों से नहीं, खुद से ही मुकाबला करने का नाम है।
भारत भूषण आर्य

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