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मन के गीत

वे सुबह-शाम कैरोल गुनगुनाते रहते हैं। दफ्तर में भी। पता चला ये उनके लिए खुश रहने के साथ-साथ तनाव घटाने का भी एक जरिया है। देखादेखी किसी और ने भी यह तरीका अपनाया और पाया कि वे उन कामों पहले की तुलना...

मन के गीत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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वे सुबह-शाम कैरोल गुनगुनाते रहते हैं। दफ्तर में भी। पता चला ये उनके लिए खुश रहने के साथ-साथ तनाव घटाने का भी एक जरिया है। देखादेखी किसी और ने भी यह तरीका अपनाया और पाया कि वे उन कामों पहले की तुलना में आसानी और तय समय सीमा में कर पा रहे हैं।

रॉबर्ट बर्टन ने करीब चार सौ साल पहले एक किताब लिखी  थी- द एनाटोमी ऑफ मिलेनकोली, उसमें भी पूरी उत्सवधर्मिता के साथ काम में डूबने की वकालत की गई। बर्टन लिखते हैं कि मानव एक यंत्र है जिसे अवसाद से बचाने के लिए गायन और नृत्य की खुराक चाहिए। यह खुराब तब मिल सकती है जब हम जीवन की अहमियत समझें। इसकी सत्ता को जानें और इसकी क्षणभंगुरता को भी। जैसे ही यह जान लेते हैं हम भीतर से उत्सवप्रिय हो जाते हैं। मन पर लगाम नहीं कसते। नाचने-गाने में कोई रोक नहीं लगाते। एडम स्मिथ जैसे महान अर्थशास्त्री भी उत्सवधर्मिता और कलाओं की वकालत करते थे। वे कहते थे कि पूंजी अर्जन अवसाद दे सकता है और उत्सवधर्मिता इससे राहत। मन को पूंजी की दुनिया में रमाएं, पर यह नहीं भूलें कि पैर पूरी आजादी के साथ थिरक सकें, जुबां से गीत झर सके यह साथ-साथ संभव हो।

जाहिर है सुबह-शाम काम की गहराई में डूबने के बावजूद खुश रहना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यह धन से नहीं, मुक्त मन से पाई जाती है। केएल सहगल जहां भी होते खुद को गुनगुनाने से नहीं रोक पाते। कहते ये मेरे पेशे की पहचान नहीं, जीवंतता की पहचान है। इससे मेरा मन खुश रहता है और मुझे दोस्त मिलते हैं, घोर अनजानी जगहों पर भी।
 

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