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रवींद्रनाथ की प्रासंगिकता

आवारा पूंजी मनुष्यता के हर मूल्य को बाजार में बेच रही है। लगभग 200 वर्ष पहले कार्ल मार्क्स ने पूंजी के दानवीय रूप के बारे में कहा था- ‘यदि लाभ समुचित हो, तो पूंजी बहुत साहसी होती है। 10...

रवींद्रनाथ की प्रासंगिकता
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 09 Aug 2016 11:07 PM
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आवारा पूंजी मनुष्यता के हर मूल्य को बाजार में बेच रही है। लगभग 200 वर्ष पहले कार्ल मार्क्स ने पूंजी के दानवीय रूप के बारे में कहा था- ‘यदि लाभ समुचित हो, तो पूंजी बहुत साहसी होती है। 10 प्रतिशत निश्चित लाभ उसकी व्यग्रता सुनिश्चित करेगा और 50 प्रतिशत उसकी अति साहसिकता; 100 प्रतिशत लाभ के लिए यह सभी कानूनों को पैरों तले रौंदने को तैयार हो जाएगी; लाभ 300 प्रतिशत हो, तो ऐसा कोई अपराध नहीं है, जिसे करने में यह हिचकिचाएगी...।’ इस चमत्कारी पूंजी ने अपने मुनाफे के लिए पूरी मानवता को खतरे में डाल दिया, एक ओर मुट्ठी भर लोगों के वैभव का सुखी संसार और दूसरी ओर अभावों व असुरक्षा का दुखी संसार। पूंजी का इतना कुत्सित रूप देख खुद पूंजीवाद के प्रवक्ता शर्मसार हो गए और इसे मानवीच चेहरा देने की बातें होने लगीं, ताकि किसी तरह इस डूबते जहाज को बचाया जा सके। यहां रवींद्रनाथ याद आते हैं, ‘मानव इतिहास में आतिशबाजी के कुछ ऐसे युग भी आते हैं, जो अपनी शक्ति और गति से हमें चकित कर देते हैं। ये न केवल हमारे साधारण घरेलू दीपकों की हंसी उड़ाते हैं, बल्कि अनंत नक्षत्रों का भी मजाक उड़ाते हैं। लेकिन इस भड़काऊ दिखावे के आगे हममें अपने दीपकों को निरस्त करने की इच्छा मन में नहीं आनी चाहिए। हमें इस अपमान को धैर्यपूर्वक सहना होगा और यह समझना होगा कि इस आतिशबाजी में आकर्षण तो है, पर यह स्थायी नहीं है।’ मनुष्य की आत्मा के दीपक को बुझाकर कोई भी सभ्यता जिंदा नहीं रह सकती।
सरला महेश्वरी के ब्लॉग से


 

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