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सुनेंगे, तभी तो सीखेंगे

बिरजू महाराज कहते हैं कि पिताजी जब अपने शिष्यों को सिखाते रहते थे, तो मैं वहीं बैठकर उन्हें देखा करता था। गिरिजा देवी बताती हैं कि पिताजी को गायकी का शौक था। उन्हें देख-देखकर हम भी गाने लगे। पंडित...

सुनेंगे, तभी तो सीखेंगे
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 28 Apr 2016 09:22 PM
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बिरजू महाराज कहते हैं कि पिताजी जब अपने शिष्यों को सिखाते रहते थे, तो मैं वहीं बैठकर उन्हें देखा करता था। गिरिजा देवी बताती हैं कि पिताजी को गायकी का शौक था। उन्हें देख-देखकर हम भी गाने लगे। पंडित राजन-साजन मिश्र को तो बाकायदा हर नई चीज सीखने पर पिताजी से ईनाम मिलता था। फिर क्यों रोकते हैं, हम छोटे बच्चों को शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में आने से? ज्यादातर कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्र पर लिखा रहता है कि आठ साल से छोटे बच्चों का आना मना है।

शुभा मुद्गल जी कहती हैं कि कलाकार कभी मना नहीं करते। यह रोक तो आयोजकों व ऑडिटोरियम की तरफ से होती है। यह रोक हटनी चाहिए। क्यों न हम बच्चों को भी शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में ले चलें? वे सुनेंगे, तभी तो सीखेंगे। ज्यादा-से-ज्यादा यह हो सकता है कि हॉल में दो-चार बार खूब जोर से आवाज आए- मम्मी...पापा। हद-से-हद कुछ बच्चे कुर्सियों के बीच से भागदौड़ करते दिख जाएं। कलाकारों के लिए यह असहज हो सकता है, लेकिन इसका असर कितना बड़ा होगा, यह समझना जरूरी है। छोटे-छोटे बच्चों के कानों में सुर और ताल जाएगी, तो कुछ अच्छा ही होगा। वरना अगर आठ साल के बाद बच्चे को शास्त्रीय संगीत सुनाने के लिए ले गए, तो अव्वल तो वह जाएगा नहीं, और चला भी गया, तो मोबाइल पर उंगलियां फेरता रहेगा, क्योंकि तब तक वह सीख चुका होगा- चार बोतल वोडका, काम मेरा रोज का  या फिर लड़की ब्यूटीफुल, कर गई चुल...।
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