Hindi Newsओपिनियन रिश्तों को मिला नया फलक

रिश्तों को मिला नया फलक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पड़ोसी देश चीन की यात्रा को समग्रता से लेने के पहले उनके कार्यक्रमों और उनसे निकले परिणामों को देखना जरूरी है,  क्योंकि इतिहास इस यात्रा को भारत-चीन संबंधों का एक...

Admin Fri, 15 May 2015 09:28 PM
share Share
Follow Us on
रिश्तों को मिला नया फलक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पड़ोसी देश चीन की यात्रा को समग्रता से लेने के पहले उनके कार्यक्रमों और उनसे निकले परिणामों को देखना जरूरी है,  क्योंकि इतिहास इस यात्रा को भारत-चीन संबंधों का एक महत्वपूर्ण और निर्णायक बिंदु मानेगा। प्रधानमंत्री की यात्रा चीन के शियान शहर से शुरू होती है, जो कि दो अर्थों में महत्वपूर्ण है। पहला, यह राष्ट्रपति शी जिनपिंग का घर है और दूसरा, शियान चीनी इतिहास और उसकी सभ्यता में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां के कुछ प्रसिद्ध स्थलों का प्रधानमंत्री ने दौरा किया और खुद उनके ही शब्दों में ‘यह संसार का धरोहर-स्थल है.. शियान हमारे बीच के पुरातन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव का एक प्रतीक भी है.. मेरा खुद शियान से व्यक्तिगत लगाव है,  क्योंकि बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग हमारे यहां आए थे।’ इससे ठोस बात यह निकलती है कि विश्व को बताया गया कि भारत-चीन संबंधों में सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक रिश्ते महत्वपूर्ण स्तंभ के तौर पर हैं, भले ही आज के समय में राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक रिश्ते को अधिक प्रमुखता दी जाती रही हो।

प्रधानमंत्री ने अपने इस बयान से दोनों देशों के रिश्तों की बुनियाद पर रोशनी डालने और उसको मजबूत करने का काम किया। वैसे, यह अपनी जगह सच है कि चीन और भारत उभरती हुई शक्तियां हैं, एशिया में भारत अपनी जगह को पुख्ता करना चाहता है और इन सबके लिए आपस के राजनीतिक, आर्थिक व सामरिक मुद्दे 21वीं सदी का रुख तय करते हैं। लेकिन इनके बीच नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि भारत-चीन रिश्तों को दोनों जगह प्राथमिकता मिले। साम्राज्यवादियों के कब्जे से पहले एशिया में चीन और भारत की जो स्थिति थी और दोनों के बीच के जो सौहार्दपूर्ण रिश्ते थे, उनको इससे बल मिलता है।

दूसरी बात, नरेंद्र मोदी जब चीन के राष्ट्रपति के गृहनगर पहुंचे, तो उनका शी ने उसी तरह से गर्मजोशी भरा स्वागत किया, जैसा स्वागत शी जिनपिंग को वडनगर में मिला था। चीनी राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल की परवाह नहीं की, जिसे चीनी मीडिया ने भारत के प्रति चीन का ‘विशिष्ट व्यवहार’ बताया है। इसे कूटनीति में ‘पारस्परिक व्यवहार’ कहा जाता है और इससे कूटनीतिक वार्ताओं के लिए एक सहज वातावरण तैयार होता है। शुक्रवार को बीजिंग में प्रधानमंत्री ने भारत की उन समस्याओं को सामने रखने का काम किया, जो चीन से जुड़ी हैं। गौरतलब है कि मोदी आम चुनाव से पहले कहते थे कि पड़ोसी देशों के साथ उनकी विदेश नीति स्पष्ट रहेगी और इसे उन्होंने यहां साबित किया है। उन्होंने सारे मुद्दे उठाए- सीमा विवाद से लेकर ब्रह्मपुत्र जल विवाद तक। जब कोई शासनाध्यक्ष अपने विदेश दौरे में उस देश से        जुड़े अपने विवादों को गिनाए, तो यह विदेश नीति में बड़ी बात मानी जाती है।

हालांकि, ये समस्याएं हैं और इनको हम आगे नहीं आने देंगे, इस सोच को भी प्रधानमंत्री ने दर्शाया और काफी हद तक इसमें उन्हें सफलता मिली है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी प्रधानमंत्री केकियांग का साझा बयान और समझौते इसी सफलता का नतीजा हैं। इसमें यह भरोसा दिलाया गया है कि सभी विवादास्पद मुद्दों को उठाया जाएगा और साथ ही, द्विपक्षीय बातचीत से उनका हल निकाला जाएगा। खुद प्रधानमंत्री कहते हैं कि ‘हाल के दशकों में हमारे रिश्ते जटिल रहे हैं। लेकिन इस रिश्ते को एक-दूसरे की मजबूती और विश्व की भलाई के लिए बदलने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी हमारी है।’ प्रधानमंत्री ने यह साफ किया कि उन मुद्दों पर चीन अपने नजरिये पर फिर से गौर करे, जो हमारी बड़ी साझीदारी की राह में अड़चन बने हुए हैं। इसके बाद उन्होंने जमीन विवाद से लेकर वास्तविक नियंत्रण रेखा, वीजा नीति आदि को रखा और यह भी बताया कि हम इस पर सहमत हैं कि इन मुद्दों के बावजूद हम रिश्तों में आगे बढ़ेंगे, एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील रहेंगे और आपसी भरोसे को बढ़ाने का काम करेंगे व विवादित मुद्दों को सुलझाएंगे।

दोनों तरफ से एक तरह का भरोसा दिखा कि वे इन मुद्दों को भारत-चीन रिश्तों पर हावी नहीं होने देंगे। नतीजतन, भारत-चीन के बीच 20 से ऊपर समझौते हो पाए, जो अपने आप में कीर्तिमान है और इस तरह संधि-पत्र का दायरा बहुत बड़ा हो जाता है। इसमें प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, कौशल निर्माण के लिए बहुत कुछ है। जैसे, गुजरात में महात्मा गांधी नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्किल डेवलपमेंट ऐंड एंटरप्रिन्योरशिप स्थापित करने में सहयोग, व्यावसायिक शिक्षा व कौशल निर्माण के लिए दोनों देशों के संबंधित मंत्रलयों के बीच समझौता, शैक्षणिक आदान-प्रदान कार्यक्रम वगैरह हैं। भारत और चीन के बीच नए वाणिज्य दूतावास खोलने पर भी सहमति बनी है और पर्यटन, मीडिया, अंतरिक्ष, रेल, खनिज-खनन जैसे अहम क्षेत्र में भी समझौते हुए हैं।

यहां पर यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि चीन को निवेश के अनुकूल माहौल मिले, क्योंकि कई परियोजनाओं में चीन का अहम योगदान रहेगा। ये साझेदारियां बताती हैं कि आज दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है और ऐसी स्थिति में, भू-राजनीतिक पहलू को अलग रखकर आपसी कारोबार को बढ़ावा देना ही तर्कसंगत है। हालांकि, द्विपक्षीय कारोबार हमारे लिए असंतुलित है, लेकिन जैसे-जैसे चीजें सुधरेंगी, इसमें संतुलन बनता जाएगा। दूसरी तरफ, इन समझौतों का यह मतलब नहीं कि हम अपनी रक्षा चिंताओं को नजरअंदाज कर दें, बल्कि अपनी चिंताएं व कारोबार, दोनों पहलू साथ-साथ रखे जा सकते हैं। वैसे दो बातें साफ हैं। पहली, भारत को अपनी उत्पादक क्षमता बढ़ाने पर बल देना होगा, तभी मेक इन इंडिया के लिए चीन जैसे देश आएंगे। दूसरी, आने वाले छह-आठ महीने में किसी तरह के चमत्कार की उम्मीद बेमानी है। इन साझेदारियों के लाभ भी लंबे समय में दिखेंगे।

नरेंद्र मोदी की इस सफल यात्रा का तीसरा चरण आज है, जिसे बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। शंघाई में इंडिया-चाइना बिजनेस फोरम में दस अरब अमेरिकी डॉलर के कारोबारी समझौते का अनुमान है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि दो देशों के बीच के आर्थिक समझौते अमूमन कई मुद्दे पाट देते हैं। अगर दुनिया में अपनी आवाज बुलंद रखनी है,  तो हमें एक आर्थिक ताकत के तौर पर उभरना होगा। इस अर्थ में चीन और भारत के बीच मजबूत आर्थिक संबंध जरूरी है। इतिहास में यह दौरा भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा चीन के समक्ष अपने सामरिक हितों का ख्याल रखते हुए आर्थिक संबंधों को मजबूती से बढ़ाने के रूप में दर्ज होगा।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें