पढ़ें फिल्म 'हाउसफुल 3' का FILM REVIEW
रेटिंग 2 स्टार कलाकार: अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अभिषेक बच्चन, जैकलिन फर्नानडिस, लीजा हेडन, नर्गिस फखरी, बोमन ईरानी, जैकी श्राफ, चंकी पांडे, समीर कोचर, निकेतन धीर निर्देशक-पटकथा-संवाद :...
रेटिंग 2 स्टार
कलाकार: अक्षय कुमार, रितेश देशमुख, अभिषेक बच्चन, जैकलिन फर्नानडिस, लीजा हेडन, नर्गिस फखरी, बोमन ईरानी, जैकी श्राफ, चंकी पांडे, समीर कोचर, निकेतन धीर
निर्देशक-पटकथा-संवाद : साजिद-फरहाद
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला, सुनील ए लुल्ला
संगीत : तोशी-शारिब, सोहेल सेन, मीका सिंह, तानिष्क बागची, मिलिंद गाबा
गीत : समीर सेन, संजीव चतुर्वेदी, ममता शर्मा, अराफात महमूद, मनोज यादव, रानी मलिक, दानिश साबरी
आज अमिताभ बच्चन की फिल्म 'दीवार' का एक प्रसिद्ध संवाद याद आ रहा है। आज खुश तो बहुत हुए होगे तुम...निर्देशक जोड़ी साजिद-फरहाद की फिल्म 'हाउसफुल 3' देखने के बाद इस सीरीज के जन्मदाता निर्देशक और अभिनेता साजिद खान यही संवाद गद्दे पर कूद कूदकर चिल्ला रहे होंगे। वो इसलिए क्योंकि, फिल्म 'हमशकल्स' के हश्र के बाद साजिद को 'हाउसफुल' सीरिज की तीसरी किस्त से बाहर कर दिया गया था।
बाद में साजिद-फरहाद को ये सोच कर लाया गया कि वे अगली किस्त में अपने स्टाइल का तड़का लगाएंगे। लेकिन क्या वाकई साजिद-फरहाद को लाने से कोई फर्क पड़ा? क्या 'हाउसफुल 3' अपनी पिछली किस्तों की तरह फनी है? क्या इसमें भी ठहाकों की भरमार, ठुमकों की थिरकन और बाद तक याद रहने वाले चुटीले पंच हैं? इन तमाम सवालों का जवाब जानने से पहले एक नजर जरा फिल्म की कहानी पर डाली जाए।
हमेशा की तरह फिल्म की लोकेशन वही है, लंदन। बटुक पटेल (बमन ईरानी) एक बड़ा बिजनेसमैन है, जिसकी तीन बेटियां हैं, गंगा (जैकलिन फर्नानडिस), जमुना (लीजा हेडन) और सरस्वती (नर्गिस फखरी)। अपने नाम की तरह ये तीनों बिल्कुल भी संस्कारी नहीं हैं। बटुक चाहता है कि उसकी बेटियों की शादी कभी न हो, जबकि बेटियां अपना-अपना जीवन साथी चुन चुकी हैं।
गंगा तो दीवानी है सैंडी (अक्षय कुमार) की और जमुना को पसंद है टैडी (रितेश देशमुख), जिसकी जबान हर बात में ऐसे फिसलती है जैसे केले के छिलके पर पैर...अब बची सरस्वती, जिसके सपनों का राजकुमार है बंटी (अभिषेक बच्चन)। बटुक को जब ये पता चलता है कि उसकी बेटियां शादी के लिए अपने-अपने वर चुन चुकी हैं तो वह अपने दोस्त आखिरी पास्ता (चंकी पांडे) के साथ मिल कर एक दांव खेलता है।
पास्ता, एक फर्जी ज्योतिषी बन कर बटुक की तीनों बेटियों को समझाता है कि अगर उनके पतियों ने बटुक के घर में कदम रखा, उसे देखा या उसे पुकारा तो वह मर जाएगा। जल्द ही इसका भी तोड़ निकल आता है। गंगा, सैंडी को अपाहिज बनाकर बटुक से मिलवाती है जो कि चल नहीं सकता। टैडी बन जाता है अंधा और बंटी गूंगा। इस प्रपंच से मुश्किलें कुछ समय के लिए तो टल जाती हैं, लेकिन जैसे ही कहानी में उर्जा नागरे (जैकी श्रॉफ) की एंट्री होती है तो एक बड़ा ट्विस्ट आता है। उर्जा नागरे एक जमाने में मुंबई का नामी गैंगस्टर हुआ करता था। अब वह जेल से छूट आया है। उसके बाहर आने से बटुक घबराया हुआ है। और बटुक की घबराहट का राज सिर्फ आखिरी पास्ता ही जानता है।
लेखक से निर्देशक बनी साजिद-फरहाद की जोड़ी ने एक कॉमेडी फिल्म के लिहाज से कहानी का सुर तो ठीक ही लगाया है। लेकिन कहानी की ताल के मामले में वह चूक गये हैं। ये फिल्म अपनी पिछली किस्तों की वजह से महज एक आकर्षण पैदा करती है, जिसकी वजह से एक बार को तो दर्शक सिनेमाघर का रुख कर ही लेंगे, लेकिन जल्द ही फिल्म देख कर उकताने लगेंगे। इसकी वजह है किरदारों को जबरदस्ती फनी बनाने की कोशिश।
फिल्म का सबसे कमजोर पहलू है बटुक और उसकी बेटियां। तीनों बेटियां अंग्रेजी की उलट-सुलट लाइनें बोलती हैं और फिर उनका हिंदी तर्जुमा करती हैं। कॉमेडी के इस पंच को कागज पर चटखारे लेकर पढ़ा-कहा तो जा सकता है, तो कहीं-कहीं मजा भी देता है। लेकिन प्रस्तुतिकरण अच्छे ढंग से न होने की वजह से यह तमाम चीजें कई जगह फूहड़ लगती हैं और उकताहट भी पैदा करती हैं। बटुक के कॉमेडी पंच फिल्म 'इट्स एंटरटेन्मेंट' के किरदार जुगनू (कृष्णा अभिषेक) की कॉपी है। जैसे गंभीर होने का क्या फायदा, वो तो गौतम भी है। या वफादार होने का क्या फायदा वो तो कुत्ता भी है। दोहराव और कुछ नया न होने की वजह से यह किरदार भी असर पैदा नहीं कर पाता।
हालांकि दूसरे छोर पर कॉमेडी की कमान संभाले अक्षय, रितेश और अभिषेक की जुगलबंदी कई जगह असर दिखाती है। इन तीनों के कुछेक कॉमेडी सीन्स काफी अच्छे बन पड़े हैं। लेकिन अलग-अलग सीन्स में यह असरदार नहीं दिखते। रितेश के खाते आये कॉमेडी पंच कुछ देर के लिए राहत देते हैं, लेकिन अभिषेक के पंचेज पर मेहनत नहीं की गयी है।
इसी तरह से अक्षय में समाये दो अलग-अलग मिजाज के किरदार बस एक-दो जगह ही ठीक लगे हैं। हालांकि अक्षय कुमार ने ही पूरी फिल्म को किसी तरह से संभाले भी रखा है। वह कॉमेडी तो अच्छी करते हैं, लेकिन इस बार उनके पास भी लगता है कि कुछ नया करने को था ही नहीं। जैकी श्राफ को देख कर लगता है कि आखिर वो इस फिल्म में क्यों हैं और कर क्या रहे हैं। चंकी पांडे हमेशा की तरह ही लगे हैं, शॉर्ट एंड स्वीट...
एक बड़ी कमीं इस फिल्म का कमजोर संगीत भी है। स्थिति के हिसाब से गीत नहीं हैं। जो हैं वो माहौल नहीं बना पाते। इस सीरिज की पिछली किस्तों का संगीत फिर भी काफी बेहतर था। दरअसल साजिद-फरहाद ने अपने उसी स्टाइल से फिल्म का निर्देशन किया है, जिसके लिए वह जाने जाते हैं। वह कॉमेडी फिल्में लिखते भी रहे हैं। लेकिन 'इट्स एंटरटेन्मेंट' के बाद ये दूसरा मौका है जब वह कॉमेडी के मामले में अतिवाद का शिकार हो गये हैं।
इस बार न तो वह फिल्म 'ऑल दि बेस्ट' जैसा असर जगा पाए हैं और न ही 'गोलमाल' जैसा जादू। बस कुछ हिस्सों में ही वजह हंसा पाते हैं। अपनी कहानी में हंसाने के लिए उन्होंने वॉट्सएप्प जोक्स की मदद ली है, जो हर दिन नए आते हैं और कुछ ही घंटों में पुराने भी पड़ जाते हैं। इस बार उनके कलम से ढोंढू (संजय मिश्रा फिल्म ऑल दि बेस्ट में) जैसा कोई किरदार नहीं निकला। निकला है तो उर्जा नागरे जैसा किरदार, जो बर्दाश्त नहीं होता।
डर है कि कहीं साजिद-फरहाद की 'हाउसफुल 3' उनकी पिछली कहानी 'दिलवाले' जैसी न साबित हो। अंत में एक बार फिर साजिद खान याद आ रहे हैं। आज खुश तो बहुत हुए होगे तुम...हैं....
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