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Hindi NewsAmrish Puri, the most effective villain of Hindi cinema

अमरीश पुरी हिंदी सिनेमा के सबसे असरदार खलनायक

अमरीश पुरी की अदायगी बेमिसाल है। मोगैंबों का डरावना अंदाज हो अथवा सिमरन के प्यार के आगे झुकने वाला नरमदिल पिता का किरदार, हर जगह उन्होंने अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी। उनके समकालीन अभिनेता रजा मुराद...

अमरीश पुरी हिंदी सिनेमा के सबसे असरदार खलनायक
एजेंसीTue, 21 Jun 2011 05:41 PM
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अमरीश पुरी की अदायगी बेमिसाल है। मोगैंबों का डरावना अंदाज हो अथवा सिमरन के प्यार के आगे झुकने वाला नरमदिल पिता का किरदार, हर जगह उन्होंने अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी। उनके समकालीन अभिनेता रजा मुराद उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे असरदार खलनायक करार देते हैं।
    
मुराद ने बातचीत में कहा कि मैंने उनके साथ 21 फिल्मों में काम किया। हमेशा उनसे कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। जैसे एक अमिताभ बच्चन है तो उसी तरह से एक ही अमरीश पुरी है। मेरा मानना है कि वह हिंदी सिनेमा के वह सबसे असरदार खलनायक रहे।
    
उन्होंने कहा कि वह बच्चों की तरह थे, जिनमें अभिनय को लेकर हमेशा सीखने की ललक थी। वह किसी से कोई दुर्भावना नहीं रखते थे। पेशेवर होने के साथ ही वह एक सच्चे इंसान थे।
    
अमरीश पुरी का जन्म 22 मई, 1932 को पंजाब के जालंधर में हुआ था। शिमला के बी एम कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। शुरुआत में वह रंगमंच से जुड़े और बाद में फिल्मों का रुख किया।
    
पुरी सबसे पहले फिल्म प्रेम पुजारी में नजर आए। फिल्म में उनकी भूमिका काफी छोटी थी, जिसकी वजह से उनकी प्रतिभा को नहीं पहचाना जा सका। वह फिल्म रेशमा और शेरा में पहली बार बड़ी भूमिका में नजर आए। खास बात रही कि यहीं पहली बार पुरी और अमिताभ ने एक साथ काम किया।

पुरी का सफर 1980 के दशक में यादगार साबित हुआ। इस पूरे दशक में उन्होंने बतौर खलनायक कई बड़ी फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी। 1987 में शेखर कपूर की फिल्म मिस्टर इंडिया में मोगैंबे की भूमिका के जरिए सभी जेहन में छा गए। इस फिल्म का एक संवाद मोगैंबो खुश हुआ आज भी सिनेमा प्रेमियों के जेहन में ताजा है।
    
उन्होंने नकारात्मक और सकारात्मक दोनों भूमिकाओं में अपनी छाप छोड़ी। 1990 के दशक में उन्होंने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, घायल और विरासत में अपनी सकारात्मक भूमिका के जरिए सभी का दिल जीता। मुराद कहते हैं कि अमरीश पुरी एक ऐसे कलाकार रहे, जिन्होंने कई यादगार भूमिकाएं की। हम जैसे कलाकार जीवन में अपने चार या पांच किरदारों को यादगार कह सकते हैं, लेकिन उनकी अधिकतर भूमिका यादगार रही।
    
पुरी ने हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया। उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। 12 जनवरी, 2005 को मुंबई में यह मोगैंबो (पुरी) हमेशा के लिए खामोश हो गया।

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