'गुड्डू रंगीला' देखने जा रहे हैं? पहले रिव्यू तो पढ़ लीजिए
मात्र दो फिल्मों की वजह से आज निर्देशक सुभाष कपूर एक ब्रांड की तरह जाने जाते हैं। यही वजह है कि ‘जौली एलएलबी’ के बाद उनकी फिल्म ‘गुड्डू रंगीला’ का बेसब्री से इंतजार हो रहा है।...
मात्र दो फिल्मों की वजह से आज निर्देशक सुभाष कपूर एक ब्रांड की तरह जाने जाते हैं। यही वजह है कि ‘जौली एलएलबी’ के बाद उनकी फिल्म ‘गुड्डू रंगीला’ का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। तो क्या इस बार सुभाष हैटट्रिक बनाने जा रहे हैं? आइये बताते हैं।
ये कहानी है आक्रेस्ट्रा पार्टी चलाने वाले हरियाणा के दो अक्खड़ बंदो की, गुड्डू (अमित साध) और रंगीला (अरशद वारसी), जिनका साइड बिजनेस मुखबरी भी है। एक दिन दोनों पुलिस के हत्थे चढ़ जाते हैं। पुलिस से बचने के लिए इन्हें दस लाख का इंतजाम करना है। इनका एक पुराना दोस्त गोरा बंगाली (दिब्येन्दु भट्टाचार्य) इनके पास एक प्लान लेकर आता है। प्लान के अनुसार गुड्डू-रंगीला को चंढीगढ़ से एक युवती बेबी (अदिति राव हैदरी) को लेकर दिल्ली में एक सेठ को सौंपना है। काफी ना-नुकुर के बाद किसी तरह से रंगीला इस काम के लिए मान जाता है, लेकिन प्लान में आये अचानक एक ट्विस्ट से ये दोनों बेबी को लेकर पहुंच जाते हैं शिमला।
रंगीला को शक होता है कि गोरा बंगाली कुछ छिपा रहा है। बाद में पता चलता है कि ये सारा मामला दस करोडम् रुपये की उगाही है, जिसका मकसद है बिल्लू पहलवान (रोनित रॉय) के पर कतरना। बिल्लू हरियाणा के ही एक गांव मीरपुर का दबंग है, जो खाप के हुक्म को अपनी ताकत समझता है और राज्य में प्रेम (गैर बिरादरी वाले जोड़े) करने वालों को अपने हाथों से सजा देता है। गुड्डू-रंगीला और बिल्लू की पुरानी दुश्मनी है। बिल्लू ने ही खाप के फरमान के बाद रंगीले की पत्नी बबली (श्रीस्वरा) को गोली मारी थी और गुड्डू के पिता को जिंदा जला दिया था।
सुभाष कपूर ने बड़ी चतुराई से खाप और ऑनर किलिंग को परिदृश्य में रख कर एक मसाला फिल्म का निर्माण किया है। वह बेशक कहें कि खाप और ऑनर किलिंग फिल्म का बैकड्रॉप है, लेकिन सच यह है कि फिल्म के हर दूसरे सीन में इन बातों को पुरजोर ढंग से उठाया गया है। किसी मसाला फिल्म में कोई मुद्दा उठाना गलत नहीं है, लेकिन उससे किनारा करने की वजह साफ होनी चाहिये। शायद इसी वजह से उन्होंने गुड्डू-रंगीला के किरदारों को काफी रोचक बना दिया है।
रंगीला केवल नाम का रंगीला है, क्योंकि छोटी-छोटी बात में उसे सही-गलत, अच्छे-बुरे, नैतिक-अनैतिक के अंतर को जांचना पड़ता है। वह कोई पैदाइशी मुजरिम नहीं है। गाने-बजाने की आड़ में मुखबरी या गैर-कानूनी काम करना उसकी मजबूरी है, क्योंकि उसे अपने ऊपर लगे एक केस के लिए वकील को और आये दिन पुलिस को मोटी रिश्वत देनी पड़ती है। सुभाष कपूर ने इस किरदार को काफी गहराई से लिखा है। रंगीले के मुकाबले गुड्डू कहीं अधिक रंगीला है। बात-बात में बिना फराइश के जोक सुनाता है। खिलंदड़े गुड्डू के साथ सनकी-संजीदा रंगीला अपील करता है।
दूसरी ओर बिल्लू पहलवान के रूप में निर्देशक ने दहलाने की पूरी तैयारी की है। ये किरदार पूरी तरह से फार्मूलों-मसालों में डूबा हुआ है। पाश्र्व संगीत से यह किरदार काफी लाउड हो गया है और असर करता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि रोनित राय ने इस किरदार कद बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अदिति राव हैदरी में नियंत्रण में दिखी हैं। बेबी का किरदार बहुत आशाएं जगाने वाला नहीं है तो निराश भी नहीं करता। अब बात उन किरदारों की जो पल-पल में पानी के छिड़काव का-सा काम करते हैं। बेबी के संग मुनीम का किरदार निभाने वाले ब्रिजेन्द्र काला, हरियाणा पुलिस के एक सिपाही गुलाब सिंह का किरदार निभाने वाले कलाकार राजीव गुप्ता तथा गोरा बंगाली का किरदार निभाने वाले दिब्येन्दु भट्टाचार्य ने फिल्म में ह्यूमर टच बनाए रखा है।
अमित त्रिवेदी का संगीत अच्छा है। खासतौर से माता का ई-मेल..और सुईयां.. गीत सुनने-देखने में अच्छे लगते हैं। लेकिन फिल्म का क्लाईमैक्स अस्सी-नब्बे के दशक की मसाला फिल्मों सरीखा है। वही पुराना घिसा-पिटा क्लाईमैक्स। विलेन, हीरो-हीरोइन को बंधक बना कर अड्डे पर ले गया और मार-धाड़ शुरू। हद तो तब हो जाती है जब बेबी और बबली बिल्लू को गोली मार देती है। गुड्डू को गोली लगने वाला सीन हंसा देता है। अचिंत कौर का किरदार ऐसे करवट लेगा उम्मीद नहीं थी। निर्देशक इस तरह की चीजों से बचते तो शायद यह फिल्म और अच्छी बन जाती।
फिर भी निर्देशक ने कोशिश की है कि वह सांकेतिक रूप से कई बातों को समझा सकें। फिल्म के एक सीन में रावण के पुतलों के मुखौटे रख बिल्लू की तुलना राक्षस से करना और डकैती डालने आये तीन अलग-अलग गुटों के लोगों में से एक गुट के सरगना को ट्रैक सूट में दिखाना, जिस पर हरियाणा लिखा है, ये दर्शाता है कि निर्देशक एक ही समय में बहुत कुछ कहना चाहते हैं। ये कुछ बातें ऐसी हैं, जो इस फिल्म को रुटीन मसाला फिल्मों से दूर ले जाती हैं।
रेटिंग : 3 स्टार
कलाकार : अरशद वारसी, अमित साध, रोनित रॉय, अदिति राव हैदरी, ब्रिजेन्द्र काला, दिब्येन्दु भट्टाचार्य, राजीव गुप्ता, श्रीस्वरा
निर्देशन-कहानी : सुभाष कपूर
निर्माता : संगीता अहिर
संगीत : अमित त्रिवेदी, सुभाष कपूर
गीत : इरशाद कामिल, सुभाष कपूर