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'वेलकम टू कराची' देखने से पहले रिव्यू तो पढ़ लीजिए

किसी फिल्म में यह डायलॉग शायद आपने भी सुना हो। ...अच्छा हुआ बेटा, आज तेरी मां जिंदा नहीं। वरना ये सब देखते ही फिर मर जाती। इस फिल्म में जैकी भगनानी वाला रोल पहले इरफान खान करने वाले थे,  लेकिन...

'वेलकम टू कराची' देखने से पहले रिव्यू तो पढ़ लीजिए
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 30 May 2015 09:29 AM
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किसी फिल्म में यह डायलॉग शायद आपने भी सुना हो। ...अच्छा हुआ बेटा, आज तेरी मां जिंदा नहीं। वरना ये सब देखते ही फिर मर जाती। इस फिल्म में जैकी भगनानी वाला रोल पहले इरफान खान करने वाले थे,  लेकिन ऐन वक्त पर उन्होंने  मना कर दिया था। जैकी ने इस रोल का वो हश्र किया है कि इरफान अगर यह फिल्म देखें तो शायद वही हो जो...  संयोग देखिए, ये डायलॉग भगनानी द्वारा प्रोड्यूस 1997 में आई फिल्म 'हीरो नं 1' में भी है। खैर, सवा-डेढ़ महीने पहले जारी फिल्म के ट्रेलर से कहानी का मोटा-मोटा अंदाजा पहले ही लग गया था।

नेवी से कोर्ट मार्शल कर निकाले गये शम्मी ठाकुर (अरशद वारसी) को हैरत इस बात की है कि आखिर उसने एक पनडुब्बी ही तो डुबाई है। और पनडुब्बी तो खुद पानी में डूबी ही रहती है। उसका एक गुजराती दोस्त है केदार (जैकी भगनानी), जो अपने पप्पा मितेश पटेल (दिलीप ताहिल) की बातों को सुनता कम, समझता ज्यादा है। केदार को अमेरिका जाना है और जब वो इस काम के लिए शम्मी की मदद लेता है तो दोनों अमेरिका की जगह सीधे पहुंच जाते हैं कराची, पाकिस्तान। एक बम धमाके के साथ कराची में लैंड करने वाले शम्मी-केदार के यहां पहुंचने के मामले की पड़ताल एक एजेंट जमीला (लॉरेन गॉटलिब) को सौंपी जाती है, जिसे चकमा दे कर ये भाग जाते हैं और हत्थे चढ़ जाते हैं तालिबान के। रातो-रात इन दोनों को किसी आतंकवादी कैंप में पहुंचा दिया जाता है, जहां हास्यास्पद परिस्थितियों में दोनों को आतंकी बनने की ट्रेनिंग दिलाई जाती है।

वहां से भी किसी तरह से ये बच निकलते हैं, लेकिन फिर अमेरिकी सेना की गिरफ्त में आ जाते हैं। और इसके बाद कहानी इतने बल खाती है, इतने बल खाती है कि नागिन की चाल फेल। बानगी देखिए, पाकिस्तान के मौकापरस्त नेता इन दोनों को नेशनल हीरो बना देते है। तो क्या शम्मी-केदार भारत वापस आ पाते हैं? इस बात का जवाब निर्देशक के पास भी नहीं है। इस साल 'बदलापुर', 'दम लगा के हईशा', 'एनएच 10', 'पीकू' और पिछले हफ्ते रिलीज हुई फिल्म 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' जैसी फिल्में देख कर लगा कि हमारे यहां अच्छी कहानियों पर उसी शिद्दत से फिल्म बनाने वालों की कोई कमी नहीं है, लेकिन 'वेलकम 2 कराची' दर्शाती है कि हम किसी भी हाल में हॉलीवुड फिल्मों की नकल करना नहीं छोड़ेंगे। वर्ष 2004 में आई डैनी लिनर की फिल्म 'हेरॉल्ड एंड कुमार गो टू ह्वाइट कैसल' को आप देखेंगे तो इस बात का आसानी से अंदाजा लगा सकेंगे कि शम्मी-केदार जैसे किरदार किस 'ओरिजिनेलिटी' के साथ गढ़े गए हैं। दो बेरोजगार युवक, घर-समाज से ठुकराए हुए, तिरस्कृत, भारत-पाकिस्तान, गलती से मिस्टेक हो जाना, बार-बार होना, वन लाइनर जोक्स वो भी रेडियो जॉकी स्टाइल में, आइटम नंबर, फनी से दिखने वाले खुफिया एजेंट, हंसोड़ नेता और न जाने क्या क्या...

हां, फिल्म में कुछ पल हैं ऐसे, जिन पर हंसी आती है, लेकिन ये वही सीन्स हैं, जो आप ट्रेलर में देख चुके हैं। और इस बेचारी लॉरेन गॉटलिब को डांस ही कर लेने देते तो बेहतर था। मतलब, एजेंट ही बना दिया। फिर भी अगर आप दिलीप ताहिल को एक गुजराती पिता के रोल में सफेद बालों के साथ, लाल रंग के बड़े-बड़े फूलों वाली प्रिंटेड शर्ट में हास्यास्पद गुजराती बोलते देखना चाहते हैं तो वेलकम 2 दिस जोक लैंड...।

कलाकार:  अरशद वारसी, जैकी भगनानी, लॉरेन गॉटलिब, दिलीप ताहिल, इमरान हस्नी, अदनान शाह, अय्यूब खोसो निर्देशन-पटकथा: आशीष आर. मोहन
निर्माता:  वाशु भगनानी
संवाद: व्रिजेश हिरजी
संगीत: जीत गांगुली, रोचक कोहली, अमजद नदीम 
गीत:  कौसर मुनीर, रोचक कोहली, समीर

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