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MOVIE REVIEW: फिल्म देखने से पहले पढ़ें 'वजीर' का रिव्यू

कुछ दिन पहले ऑफिस में एक साथी ने पूछा- 'ये फरहान अख्तर की फिल्म वजीर क्या किसी शतरंज खिलाड़ी के जीवन पर है? या ये शतरंज खेल को प्रोत्साहन देने के लिए है? क्योंकि फिल्म के पोस्टर तो कुछ ऐसा ही दर्शा...

MOVIE REVIEW: फिल्म देखने से पहले पढ़ें 'वजीर' का रिव्यू
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 09 Jan 2016 09:57 AM
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कुछ दिन पहले ऑफिस में एक साथी ने पूछा- 'ये फरहान अख्तर की फिल्म वजीर क्या किसी शतरंज खिलाड़ी के जीवन पर है? या ये शतरंज खेल को प्रोत्साहन देने के लिए है? क्योंकि फिल्म के पोस्टर तो कुछ ऐसा ही दर्शा रहे हैं।' साथी की बात में दम था, लेकिन अगर आप फिल्म का ट्रेलर देखें तो साफ पता चलता है कि यह एक थ्रिलर फिल्म है। लेकिन जब आप फिल्म देखेंगे तो लगेगा कि यह एक मर्डर मिस्ट्री है, जिसमें सीन दर सीन किसी राज से धीरे-धीरे परदा उठता है और क्लाईमैक्स में इंसान अपनी सीट से हिल नहीं सकता। 

ये कहानी है दिल्ली पुलिस के एक एटीएस अफसर दानिश अली (फरहान अख्तर) की, जिसकी छह साल की बेटी नूरी की एक हादसे में मौत हो जाती है। इस हादसे के लिए दानिश की पत्नी रुहाना (अदिति राव हैदरी) उसे ही जिम्मेदार मानती है और उससे दूर चली जाती है। अकेला पड़ गया दानिश अपने एक साथी सरताज (अंजुम शर्मा) के घर रहने लगता है। तमाम कोशिशों के बावजूद वह नूरी की मौत को नहीं भुला पाता और एक दिन उसकी कब्र पर जा कर आत्महत्या करने की कोशिश करता है, लेकिन ऐन मौके पर उसे कोई परेशान करता है।

दानिश को वहां एक किसी का पर्स मिलता। वो पर्स लौटाने जिस पते पर जाता है वहां उसकी मुलाकात होती है पंडित जी (अमिताभ बच्चन), जिनका पूरा नाम है ओंकार नाथ धर। पंडित जी शतरंज के खिलाड़ी हैं और वो दानिश को बताते हैं कि नूरी उनके यहां शतरंज सीखने आती थी। दानिश और पंडित की दोस्ती हो जाती है। एक दिन पंडित, दानिश को बताता है कि उसकी एक जवान बेटी नीना की भी एक हादसे में मौत हो गयी थी। दुनिया के लिे यह एक हादसा था, लेकिन पंडित के अनुसार उसकी बेटी की हत्या हुई थी, जिसका जिम्मेवार वह यजाद कुरेशी को मानता है। यजाद एक मंत्री है और जम्मू-कश्मीर का एक चर्चित नेता भी। यजाद की अपनी एक अलग कहानी है, जो उसके रहस्यमयी राजनीतिक करियर के स्याह-सफेद पहलुओं के बीच घिरी है।

दानिश और पंडित की यारी रंग पकड़ने लगती है और एक दिन पंडित को पता चलता है कि नीना की केस फाइल बंद कर दी गयी है। दानिश के लाख समजाने पर भी वह वह गुस्से में यजाद से बदला लेने निकल पड़ता है। तभी पंडित पर यजाद का एक प्यादा वजीर (नील नितिन मुकेश) हमला कर देता है। ऐसे हमले और भी होते हैं, जिनसे बचने की सलाह दानिश पंडित को देता है। वजीर, दानिश को भी इस मामले में लपेट लेता है और धमकीभरे फोन करता करता रहता है। वह दानिश को कहता है कि वह पंडित को कश्मीर जाने से रोक ले। दानिश जब तक पंडित को रोक पाता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। उसे एक पेन ड्राइव मिलती है, जो सारे राज खोल देती है।

बिजॉय नाम्बियार युवा निर्देशकों की उस खेप में से हैं, जो अपनी अलग शैली और न्यू ऐज सिनेमा के लिए जाने जाते हैं। 'शैतान' और 'डेविड' जैसी फिल्मों से उन्होंने खासा ध्यान खींचा है। नामचीज कलाकारों और बजट के लिहाज से 'वजीर' उनकी अब तक की सबसे बड़ी फिल्म कही जा सकती है।

फिल्म की कहानी-कथानक में विधु विनोद चोपड़ा जैसे फिल्मकार का स्पर्श है, जो परिंदा जैसे डार्क थ्रिलर के लिए जाने जाते हैं। इन तमाम बातों से उम्मीद तो यही बंधी थी कि 'वजीर' एक चौंकाने वाली सनसनीखेज फिल्म होगी। लेकिन तमाम उत्सुकताओं के बावजूद यह फिल्म बहुत ज्यादा चौंकाती तो नहीं है, पर बांधे रखती है। इसकी एकमात्र वजह है कि फिल्म के दो शीर्ष कलाकार। अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की जोड़ी में दम लगता है। दोनों में शुरुआत से अंत तक बांधे रखा है। संवादों से, अपनी अभिनय अदायगी से और कथानक के रोमांच से यह पौने दो घंटे की फिल्म निराश तो नहीं करती।
पूरी फिल्म दिल्ली में फिल्माई गयी है। इसकी पृष्ठभूमि भी दिल्ली ही है।

सर्दी और बरसात के दिन, दिल्ली पुलिस का कामकाज, यहां के अफसर और बोलचाल, सांस्कृतिक गतिविधियां, सूफी-शास्त्रीय संगीत की बानगी आदि से फिल्म में एक अलग-सा माहौल बन जाता है, जो परदे पर सुखद अनुभव देता है। लेकिन जब अंत में जब पंडि़त और वजीर के किरदार के परते उतरनी शुरू होती हैं तो ऐसा लगता है कि यह सब कितने 'सुविधाजनक' ढंग से हो गया है। जैसे निर्देशक में यह बिल्कुल ही नहीं सोचा कि ऐसा फिल्म में दर्शक भी अपना खूब दिमाग लड़ाते हैं।

अदिति राव हैदरी काफी नियंत्रण में लगी हैं। उनकी बोल्ड इमेज रूहाना के किरदार से कोसों दूर रही है। फरहान ने एक दुखी पिता और एक जाबांज अफसर की भूमिका खूब निभाई है। बिग बी के लिए अब ऐसे रोल करना बेहद सहज हो गया है। उन पर हर अंदाज सूट करता है। फिर भी एक कमी लगती है कि एक अपाहित इंसान एक तेज तर्रार अफसर को अपने मकसद के लिे इतनी आसानी से अपना प्यादा कैसे बना सकता है। शायद जब लेखन में 'सुविधाजनक' कोण-त्रिकोण होते हैं तो ऐसा ही होता है।
सितारे : अमिताभ बच्चन, फरहान अख्तर, अदिति राव हैदरी, नील नितिन मुकेश, जॉन अब्राहम, अंजुम शर्मा, नासिर हुसैन, मानव कौल, अवतार गिल 
निर्देशक : बिजॉय नाम्बियार
निर्माता : विधु विनोद चोपड़ा,
लेखक : विधु विनोद चोपड़ा, अभिजात जोशी
संगीत : शांतनु मोइत्रा, अंकित तिवारी, प्रशांति पिल्लई
गीत : मनोज मुंतशिर, स्वानंद किरकिरे, तुराज
रेटिंग 3 स्टार

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