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'बाइसाईकिल थीफस' देख फिल्म निर्माण का इरादा किया था सत्यजीत रे ने

भारतीय सिनेमा जगत में युगपुरूष सत्यजीत रे को एक ऐसे फिल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी निर्मित फिल्मों के जरिये भारतीय सिनेमा जगत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान...

'बाइसाईकिल थीफस' देख फिल्म निर्माण का इरादा किया था सत्यजीत रे ने
एजेंसीTue, 26 Apr 2016 10:28 AM
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भारतीय सिनेमा जगत में युगपुरूष सत्यजीत रे को एक ऐसे फिल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी निर्मित फिल्मों के जरिये भारतीय सिनेमा जगत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान दिलाई।
                
सत्यजीत रे का जन्म कोलकाता में 2 मई 1921 को एक उच्च घराने में हुआ था। उनके दादा उपेन्द्र किशोर रे वैज्ञानिक थे जबकि उनके पिता सुकुमार रे लेखक थे। सत्यजीत रे ने अपनी स्नातक की पढ़ाई कोलकाता के मशहूर प्रेसीडेंसी कॉलेज से पूरी की। इसके बाद अपनी मां के कहने पर उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगौर के शांति निकेतन में दाखिला ले लिया जहां उन्हें प्रकृति के करीब आने का मौका मिला।
         
शांति निकेतन में करीब दो वर्ष रहने के बाद सत्यजीत रे वापस कोलकाता आ गए। सत्यजीत रे ने अपने करियर की शुरुआत साल 1943 में ब्रिटिश एडवरटाइजमेंट कंपनी से बतौर 'जूनियर विजुलायजर' से की जहां उन्हें 18 रुपये महीने बतौर पारिश्रमिक मिलते थे। इस बीच वह डी.के गुप्ता की पब्लिशिंग हाउस सिगनेट प्रेस से जुड़ गए और बतौर कवर डिजायनर काम करने लगे। बतौर डिजायनर उन्होंने कई पुस्तकों का डिजायन तैयार किया इसमें जवाहर लाल नेहरू की 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' प्रमुख है।


        
साल 1949 में सत्यजीत रे की मुलाकात फ्रांसीसी निर्देशक जीन रेनोइर से हुई जो उन दिनों अपनी फिल्म 'द रिवर' के लिए शूटिंग लोकेशन की तलाश में कलकता आये थे। जीन रेनोर ने सत्यजीत रे की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें फिल्म निर्माण की सलाह दी।
 
साल 1950 में सत्यजीत रे को अपनी कंपनी के काम के कारण लंदन जाने का मौका मिला जहां उन्होंने लगभग 99 अंग्रेजी फिल्में देख डाली। इसी दौरान उन्हें एक अंग्रेजी फिल्म 'बाइसाईकिल थीफस' देखने का मौका मिला। फिल्म की कहानी से सत्यजीत रे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने फिल्मकार बनने का निश्चय कर लिया।
        

सत्यजीत रे बंग्ला साहित्यकार विभूति भूषण बंधोपाध्याय के उपन्यास 'विलडंगसरोमन' से काफी प्रभावित थे और उन्होंने उनके इस उपन्यास पर 'पाथेर पांचाली' नाम से फिल्म बनाने का निश्चय किया। फिल्म पाथेर पांचाली के निर्माण में लगभग तीन वर्ष लग गए। फिल्म निर्माण के क्रम में सत्यजीत रे की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गयी जिससे फिल्म निर्माण की गति धीमी पड़ गयी। बाद में पश्चिम बंगाल की सरकार के सहयोग से फिल्म को पूरा किया जा सका।
         
साल 1955 में प्रदर्शित फिल्म 'पाथेर पांचाली' ने कोलकाता के सिनेमाघर में लगभग 13 सप्ताह हाउसफुल दिखाई गई इस फिल्म को फ्रांस में प्रत्येक वर्ष होने वाली प्रतिष्ठित कांस फिल्म फेस्टिबल में बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट का विशेष पुरस्कार भी दिया गया।
                

फिल्म पथेर पांचाली के बाद सत्यजीत रे ने फिल्म अपराजितो का निर्माण किया। इस फिल्म में युवा अप्पू की महत्वाकांक्षा और उसे प्यार वाली एक मां की भावना को दिखाया गया है। फिल्म जब प्रदर्शित हुई तो इसे सभी ने पसंद किया लेकिन मशहूर समीक्षक मृणाल सेन और तिविक घटक ने इसे पाथेर पांचाली से बेहतर माना। फिल्म वीनस फेस्टिबल में गोल्डेन लायन अवॉर्ड से सम्मानित की गयी।
 

साल 1962 में सत्यजीत रे अपने दादा की पत्रिका 'संदेश' की एक बार फिर से स्थापना की। सत्यजीत रे की पहली रंगीन फिल्म 'महानगर' साल 1963 में प्रदर्शित हुई। कम लोगों को पता होगा कि जया भादुड़ी ने इसी फिल्म से अपने सिने करियर की शुरुआत की थी।
               
साल 1966 में सत्यजीत रे की एक और सुपरहिट फिल्म 'नायक' प्रदर्शित हुई। फिल्म में उत्तम कुमार ने अरिन्दम मुखर्जी नामक नायक की भूमिका निभाई। बहुत लोगों का मानना था कि फिल्म की कहानी अभिनेता उत्तम कुमार की जीवनी पर आधारित थी। फिल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किये। फिल्म के प्रदर्शन के बाद सत्यजीत रे ने कहा था यदि उत्तम कुमार इस फिल्म में काम करने से मना करते तो वह फिल्म का निर्माण नहीं करते।
        
साल 1969 में अपने दादा की रचित लघु कथा पर सत्यजीत रे ने 'गूपी गायन बाघा बायन' का निर्माण किया। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई साथ ही बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुई।
         

साल 1977 में सत्यजीत रे के सिने करियर की पहली हिंदी फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' प्रदर्शित हुई। संजीव कुमार सईद जाफरी और अमजद खान की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म हालांकि टिकट खिड़की पर अपेक्षित सफलता नही अर्जित कर सकी लेकिन समीक्षकों के बीच यह काफी सराही गयी। साल 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल की संचालक समिति ने सत्यजीत रे को विश्व के तीन ऑल टाइम डाइरेक्टर में एक के रूप में सम्मानित किया।
 
अस्सी के दशक में स्वास्क्य खराब रहने के कारण सत्यजीत रे ने फिल्मों का निर्माण करना काफी हद तक कम कर दिया। फिल्म 'घरे बाइरे' के निर्माण के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। इसके बाद डॉक्टर ने सत्यजीत रे को फिल्म में काम करने से मना कर दिया।
 
लगभग पांच वर्ष तक फिल्म निर्माण से दूर रहने के बाद साल 1987 में सत्यजीत रे अपने पिता सुकुमार रे पर एक वृतचित्र का निर्माण किया।
                
सत्यजीत रे को अपने चार दशक लंबे सिने करियर में मान-सम्मान खूब मिला। उन्हें भारत सरकार की ओर से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं के लिए 32 बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सत्यजीत रे वह दूसरे फिल्म कलाकार थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
       
साल 1985 में सत्यजीत रे को हिंदी फिल्म उधोग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावे उन्हें भारत रत्न की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। उनके चमकदार करियर में एक गौरवपूर्ण नया अध्याय तब जुड़ गया जब 1992 में उनके उल्लेखनीय करियर को देखते हुए उन्हें ऑस्कर सम्मान से सम्मानित किया गया।
                
सत्यजीत रे ने अपने सिने करियर में 37 फिल्मों का निर्देशन किया। साल 1991 में प्रदर्शित फिल्म 'आंगतुक' सत्यजीत रे के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुई। अपनी निर्मित फिल्मों से अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार सत्यजीत रे ने 23 अप्रैल 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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