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सिर्फ चिंता करने से न होगा विज्ञान का भला

देश में विज्ञान और अनुसंधान पर चर्चा तभी होती है, जब मंत्री या प्रधानमंत्री उसकी बदहाली पर बोलते हैं। देश में विज्ञान की बदहाली का रोना किसी से छिपा नहीं है। इसे कई स्तरों पर देखा जा सकता है। अध्ययन...

सिर्फ चिंता करने से न होगा विज्ञान का भला
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 27 Feb 2014 11:02 PM
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देश में विज्ञान और अनुसंधान पर चर्चा तभी होती है, जब मंत्री या प्रधानमंत्री उसकी बदहाली पर बोलते हैं। देश में विज्ञान की बदहाली का रोना किसी से छिपा नहीं है। इसे कई स्तरों पर देखा जा सकता है। अध्ययन बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर शोधपत्रों के प्रकाशन के मामले में भी भारत, चीन और अमेरिका से काफी पीछे है। अमेरिका में हर वर्ष भारत से दस गुना ज्यादा और चीन में सात गुना ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित होते हैं और ब्राजील में भी हमसे तीन गुना अधिक शोध पत्र प्रकाशित होते हैं। शोध पत्रों के प्रकाशन में वैश्विक स्तर पर हमारी हिस्सेदारी महज 2.11 प्रतिशत है। वज्ञानिक शोधों का आलम यह है कि देश में विज्ञान में पीएचडी करने वाले लोगों में से 60 फीसदी या तो बेरोजगार हैं, या कुछ अध्ययनों के हिसाब से रोजगार के योग्य ही नहीं हैं। यही वजह है कि विज्ञान के प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएं अब प्रबंधन वगैरह से जुड़े पाठ्यक्रमों को प्राथमिकता देने लगे हैं। इन क्षेत्रों में रोजगार पाना भी आसान है और भारी-भरकम पैकेज के साथ सामाजिक मान पाना भी। इसीलिए विश्वविद्यालयों के विज्ञान संकाय में छात्रों के दाखिले में कमी आई है।

दिलचस्प बात यह है कि आजादी के समय जब देश में संसाधन कम थे, तब हमारे यहां कई ऐसे महान वज्ञानिक हुए, जिन्होंने देश ही नहीं, विदेश में भी अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़े। इनमें वे वज्ञानिक भी शामिल हैं, जिन्हें सुविधाएं न मिलने के कारण देश छोड़ना पड़ा और विदेश जाकर वे अपने क्षेत्र के शिखर तक पहुंचे। कई को नोबेल पुरस्कार तक मिला। आज भले ही हम आर्थिक तरक्की की बहुत सारी बातें करते हैं, लेकिन वज्ञानिकों को सुविधाएं देने के मामले में हम पहले से भी ज्यादा खराब स्थिति में पहुंच गए हैं। बाकी कसर इस क्षेत्र में फैली नौकरशाही ने निकाल दी है, जो योग्य वज्ञानिकों को आगे बढ़ने ही नहीं देती। किसी भी संस्थान के वज्ञानिकों से बात कीजिए, आपको इसके कई उदाहरण मिल जाएंगे।

ये सारी स्थितियां विज्ञान के लिए ही नहीं, विज्ञान की उच्च शिक्षा के लिए भी बहुत घातक हैं। एक तरफ तो हम अपने योग्य शोधार्थियों को नकार रहे हैं, वही दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मानना है कि देश में सुयोग्य शिक्षकों की भारी कमी है। अगर हम दुनिया भर के नए-पुराने उदाहरणों को देखें, तो तमाम बड़े वैज्ञानिक सबसे योग्य शिक्षक रहे हैं। ऐसे कई नाम हैं, जिनका योगदान न सिर्फ विज्ञान में है, बल्कि उन्होंने बहुत अच्छे वैज्ञानिक भी दिए हैं।
विज्ञान के क्षेत्र में हमारा देश आगे बढ़ सके, इसके लिए तीन प्राथमिकताओं पर ध्यान देना होगा। एक तो नए वैज्ञानिकों के लिए संभावनाएं पैदा करके प्रतिभाओं को फिर एक बार इस ओर आकर्षित करना होगा। दूसरी, नौकरशाही की दखलंदाजी को खत्म करके शोध के माहौल को प्रोत्साहित करना होगा। तीसरी, इसके लिए धन के प्रावधान को लगातार बढ़ाना भी जरूरी है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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