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मैरी कोम की कहानी के आगे का खेल

ओलंपिक कांस्य पदक विजेता मैरी कोम हिंदी फिल्मों के गीत बड़े चाव से गाती हैं। उनके पसंदीदा गानों में से एक है- अजीब दास्तां है ये कहां शुरू कहां खतम..। आज मैरी कोम का खुद का करियर भी ऐसे ही मोड़ पर...

मैरी कोम की कहानी  के आगे का खेल
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 21 Aug 2012 08:06 PM
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ओलंपिक कांस्य पदक विजेता मैरी कोम हिंदी फिल्मों के गीत बड़े चाव से गाती हैं। उनके पसंदीदा गानों में से एक है- अजीब दास्तां है ये कहां शुरू कहां खतम..। आज मैरी कोम का खुद का करियर भी ऐसे ही मोड़ पर है। वह एक ‘ब्रांड’ बन गई हैं। हाल ही में जाने-माने निर्माता-निर्देशक संजय लीला भंसाली ने कहा है कि वह महिला मुक्केबाज एमसी मैरी कोम पर फिल्म बनाएंगे।

सवाल यह है कि मैरी कोम जैसी चैंपियन पर उनकी नजर इतनी देर से क्यों गई? जबकि मैरी कोम के असली कारनामे तो पुरानी बात हैं। एक महिला बॉक्सर के तौर पर, एक पत्नी के तौर पर और जुड़वा बच्चों की मां के तौर पर, तीनों ही स्थितियों में वह विश्व चैंपियन बन चुकी हैं। मैरी कोम का ओलंपिक कांस्य पदक अब हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। हर कोई अलग-अलग तरीके से इसे भुनाने की कोशिश में लगा हुआ है।

मैरी ने तो ओलंपिक पदक जीत लिया, लेकिन क्या उनके बाद कोई ऐसी महिला मुक्केबाज दिख रही है, जो इस मुकाम तक पहुंच सकती हो? इस सवाल का जवाब है- नहीं। सरिता देवी अगले ओलंपिक तक 31 साल की हो जाएंगी, इसलिए उनसे बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती। पिंकी झांगरा उम्र के लिहाज से तो ठीक हैं, लेकिन उनमें फिलहाल ओलंपिक मेडल जीतने का दमखम नहीं दिखता। मुक्केबाजी की श्रेणी में ‘सेकेंड लाइनअप’ की महिला खिलाड़ी हैं ही नहीं। जाहिर है, इसकी सबसे बड़ी वजह है बुनियादी सुविधाओं का अभाव, जो खिलाड़ियों व संभावनाओं को सीमित कर देता है। यह सच है कि मैरी कोम को अब पैसों की किल्लत नहीं है, लेकिन इसी खेल से जुड़ी दूसरी महिला खिलाड़ियों की हालत अब भी खराब है। उनकी सुध लेने वाले होते, तो शायद आज यह संकट नहीं होता।

बाजार के तमाम जाने-माने और बड़े नाम उस समय मैरी कोम के आस-पास भी नहीं आए थे, जब उन्होंने इस खेल में कदम रखा था। पूवरेत्तर भारत के एक पिछड़े जिले से आई मैरी कोम ने जब पुरुषों के खेल बॉक्सिंग को चुना, तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया गया। शादी हो गई, तो लोगों ने कहा- अब हो चुकी बॉक्सिंग। मैरी कोम मां बनीं, तो ऐसी ही बातें कही गईं, लेकिन मैरी कोम ने हर बार इस तरह की टिप्पणियों को गलत साबित किया।

यकीनन, उनकी कहानी ऐसी है, जिससे काफी लोगों को प्रेरणा मिल सकती है। लोग महिला मुक्केबाजों और इस खेल को संजीदगी से ले सकते हैं। ऐसे में, अगर संजय लीला भंसाली मैरी कोम को लेकर आने वाले दिनों में कोई फिल्म बनाते हैं, तो उससे किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। लेकिन उस फिल्म से थोड़ा-बहुत फायदा उस खेल को भी होना चाहिए, जिससे मैरी कोम जुड़ी रही हैं। फिल्म के लिए मंजूरी से पहले आर्थिक फायदे के लिहाज से मैरी कोम को इस खेल के लिए भी सोचना चाहिए। इससे उनका कद और बढ़ेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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