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शराबबंदी के बहाने

पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के शराबबंदी कानून की कुछ व्यवस्थाओं को असांविधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना है कि बिहार सरकार का पांच अप्रैल का वह फैसला असांविधानिक है, जिसके अंतर्गत...

शराबबंदी के बहाने
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 30 Sep 2016 10:01 PM
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पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के शराबबंदी कानून की कुछ व्यवस्थाओं को असांविधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना है कि बिहार सरकार का पांच अप्रैल का वह फैसला असांविधानिक है, जिसके अंतर्गत राज्य में अंग्रेजी शराब बेचना, खरीदना और पीना अवैध व दंडनीय करार दिया गया था। कोर्ट ने माना है कि कानून को लागू करने में कहीं न कहीं कुछ गलत हुआ है। यह फैसला उन याचिकाओं पर आया है, जिनमें कहा गया कि शराबबंदी से चंद रोज पहले अंग्रेजी शराब के ठेके नीलाम किए गए और ठेके लेने वालों की खासी पूंजी फंस गई।

कुछ याचिकाएं ऐसी भी थीं, जिनमें शराबबंदी को निजता का हनन बताया गया था। कोर्ट ने मूल रूप से शराबबंदी लागू करने के ठीक पहले नीलामी को असांविधानिक माना है। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद नीतीश सरकार के सामने अब दो ही विकल्प हैं- वह कोर्ट के फैसले का सम्मान करे और शराबबंदी खत्म करने की अधिसूचना लागू करे, या दो अक्तूबर को गांधी जयंती के दिन प्रस्तावित नया शराबबंदी कानून (संशोधित) लागू करने की नई अधिसूचना जारी करे। इस नए कानून के बारे में माना जा रहा है कि यह पहले के कानून से भी ज्यादा सख्त प्रावधान वाला होगा।

किसी राज्य में शराबबंदी लागू करना एक बड़ा फैसला है और इसमें खासी चुनौतियां भी हैं। यह फैसला लागू करना इतना आसान नहीं होगा, इसे नीतीश कुमार भी जानते होंगे। उन्हें व्यवस्थागत और व्यावहारिक, दोनों तरह की मुश्किलों का भी अंदाजा रहा होगा। शराब के अभिशाप के खिलाफ जनहित में यह फैसला करने से पहले थोड़े और सोच-विचार की जरूरत थी। जिस तरह चंद रोज पहले अंग्रेजी शराब के ठेके नीलाम हुए, उनका लाइसेंस शुल्क जमा कराया गया और बड़ी पूंजी लगाकर शराब स्टोर की गई, उसके चंद रोज के अंदर ही अचानक उन पर ताला लगाने की स्थिति किसी को असहज करने वाली थी। व्यापक जनहित के एक फैसले को लागू करने में यह चूक साबित हुई। फैसला कुछ अन्य अर्थों में भी दूर तक असर करने वाला था। शराब के निषेध का विरोध शायद ही कोई करे, पर इसके कुछ प्रावधान या उनका असर ऐसा था, जहां असहमति की गुंजाइश बनी। सबसे ज्यादा असहमति बंद कमरों के अंदर से हुई गिरफ्तारियों से बनी या फिर बहुत ज्यादा सख्ती के कई उदाहरणों से।

शराबखोरी जब लत बन जाए, तो उसका अंतिम असर घर-परिवार पर ही होता है, लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि घर-परिवार-शुभेच्छु कभी नहीं चाहते कि उनका कोई अपना शराब पीकर उस हद तक बिगड़े। ऐसे में, पूरे परिवार को इस बुराई का जिम्मेदार मान लेना उचित नहीं था। यह सच है कि राज्य में पूर्ण शराबबंदी बिहार सरकार, खासकर मुख्यमंत्री का बहुत महत्वाकांक्षी फैसला था। यह उस वायदे का प्रतिफल था, जो नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य की स्त्री शक्ति से किया था और सत्ता में आने के बाद सबसे पहले उन्होंने यही वायदा पूरा भी किया।

बिहार में इसकी सफलता से उत्साहित नीतीश कुमार और उनका ‘थिंक टैंक’ इसी सूत्र के सहारे पूरे देश में नीतीश कुमार की स्वीकार्यता का रास्ता बनाने की सोच रहा है। ऐसे में, हाईकोर्ट का यह फैसला किसी को सरकार के लिए फौरी झटका भले ही लगे, लेकिन यह माना जाना चाहिए कि सरकार अपनी मंशा के अनुरूप दो अक्तूबर को नया संशोधित कानून लागू करेगी। हां, देखने की बात होगी कि इस बार के प्रावधान और कितने सख्त होते हैं, क्योंकि अदालत ने पांच अप्रैल के प्रावधान रद्द किए हैं, उसने शराबबंदी के इरादे पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

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