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मंत्री की गिरफ्तारी

जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तभी से केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है और इस युद्ध की वजह से दिल्ली में कायदे से प्रशासन नहीं चल पा रहा है। इसी युद्ध की एक कड़ी...

मंत्री की गिरफ्तारी
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 09 Jun 2015 09:50 PM
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जब से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तभी से केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है और इस युद्ध की वजह से दिल्ली में कायदे से प्रशासन नहीं चल पा रहा है। इसी युद्ध की एक कड़ी दिल्ली के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी है। इस युद्ध के अन्य मुद्दों की तरह इस मुद्दे पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह पक्ष सही है या दूसरा पक्ष सही है। तोमर की गिरफ्तारी इस आरोप में हुई है कि उनकी स्नातक की और कानून की डिग्री फर्जी है। यह मामला हाईकोर्ट में भी चल रहा है। न्याय का यह सामान्य नियम है कि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी तभी होनी चाहिए, जब बिल्कुल जरूरी हो। पहली नजर में तोमर को गिरफ्तार किए जाने की कोई फौरी वजह नजर नहीं आती। अगर हाईकोर्ट की जांच में वह दोषी पाए गए, तो उन्हें न्यायोचित सजा मिलेगी ही। ऐसा भी नहीं है कि उनके आजाद रहने से कोई बड़ी कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा हो जाती या इस बात का भी कोई संदेह नहीं था कि वह कानूनी सजा से बचने के लिए फरार हो जाते।

यहां यह भी कहना होगा कि ऐसी परिस्थिति पैदा करने में 'आप' की भी भूमिका है। जिस वक्त तोमर पर फर्जी डिग्री रखने का आरोप लगा था और हाईकोर्ट ने इसकी जांच के आदेश दिए थे, तभी उनका इस्तीफा ले लिया जाना चाहिए था। 'आप' नेताओं का कहना है कि उन पर लगे आरोप झूठे हैं और इसके बारे में प्रमाण हाईकोर्ट को दिए गए हैं। 'आप' यह मानती है कि लोकतंत्र में आम जनता का काम सिर्फ चुनावों में वोट देने तक नहीं है, बल्कि हर वक्त उससे संवाद बनाए रखना और उसे निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना जरूरी है। संवाद का इस्तेमाल 'आप' ने बखूबी किया है और इसकी वजह से कम साधनों के बावजूद पार्टी अपना प्रचार करने में कामयाब रही। 'आप' ने कम से कम चुनावों के पहले लगातार मीडिया के सामने तमाम आरोप-प्रत्यारोप लगाए, चुनावों के बाद भी बजट के लिए उसने जगह-जगह लोगों की सभाएं करके आम जनता की राय ली। अगर पार्टी पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी में इतना विश्वास करती है, तो जितेंद्र सिंह तोमर को निर्दोष साबित करने वाले सबूत उसने जनता के सामने क्यों नहीं प्रस्तुत किए? सिर्फ केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री पर सवाल उठाने से काम नहीं चलेगा, जवाबदेही और पारदर्शिता के जिन मानदंडों की यह पार्टी बात करती आई है, यह आचरण इसके एकदम विपरीत है। ऐसे में, इस मुद्दे पर भले ही पार्टी बहुत आक्रामक रुख अपनाए, लेकिन उसकी नैतिक स्थिति कमजोर है।

'आप' के विरोधियों को पूरा हक है, बल्कि यह उनका कर्तव्य भी है कि वे तोमर के मामले में 'आप' के दोहरे मानदंडों का सार्वजनिक विरोध करें। लेकिन अगर यह मामला सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने का हो गया, तो इसका नैतिक असर नहीं बचेगा। अतिरिक्त आक्रामकता का नुकसान भाजपा को विधानसभा चुनावों में हो चुका है। तब 'आप' पर बेतहाशा आक्रमण की वजह से 'आप' के प्रति जनता में सहानुभूति पैदा हो गई थी और यही स्थिति अब भी होती हुई लग रही है। आम जनता को यह लग सकता है कि 'आप' को तंग करने की कोशिश केंद्र सरकार कर रही है, और फर्जी डिग्री का या तोमर के पद पर बने रहने का मूल मुद्दा खो जाएगा। दिल्ली में एक बाकायदा चुनी हुई सरकार है और इसके जनादेश का सम्मान होना चाहिए, अगर इस सरकार का विरोध भी किया जाए, तो वह लोकतंत्र की मर्यादाओं और मान्यताओं के अंदर ही हो। दोनों ही पक्ष बुनियादी लोकतांत्रिक मर्यादाओं का सम्मान करें, यह जरूरी है।

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