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एक और निर्भया कांड

पंजाब के मोगा की घटना से दिल्ली के निर्भया कांड की याद आना स्वाभाविक है। दोनों में यौन हिंसा की वजह से युवा स्त्रियों की मृत्यु हुई है और दोनों ही घटनाएं बसों में हुई हैं। ये घटनाएं हमें बताती हैं कि...

एक और निर्भया कांड
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 30 Apr 2015 10:08 PM
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पंजाब के मोगा की घटना से दिल्ली के निर्भया कांड की याद आना स्वाभाविक है। दोनों में यौन हिंसा की वजह से युवा स्त्रियों की मृत्यु हुई है और दोनों ही घटनाएं बसों में हुई हैं। ये घटनाएं हमें बताती हैं कि देश के सार्वजनिक स्थल महिलाओं के लिए कितने खतरनाक हैं। मोगा में एक मां अपनी किशोरी बेटी और छोटे बेटे के साथ एक बस में सवार हुई, जिसमें मौजूद कुछ गुंडों ने, जिनमें बस के कर्मचारी भी शामिल थे, उन मां बेटी के साथ छेड़खानी की। इस दौरान या तो वे मां-बेटी बस से कूद गईं या उन्हें धकेल दिया गया, जिससे बेटी की मौत हो गई और मां गंभीर रूप से घायल है। बताया जाता है कि उप-मुख्यमंत्री सुखबीर बादल की पंजाब में सैकड़ों बसें चलती हैं, यह बस भी उन्हीं में से एक थी। अगर सत्तारूढ़ परिवार की बसों में ऐसे आपराधिक तत्व नौकरी करते हैं, तो इससे यह पता चलता है कि लोगों की सुरक्षा के प्रति सत्तारूढ़ लोगों का क्या नजरिया है।

महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को लेकर हमारे देश में इतने ज्यादा शोर के बावजूद जमीनी स्तर पर अगर कुछ भी सुधार नहीं दिख रहा है, तो इसकी एक बड़ी वजह यह है कि समाज की सोच में महिलाओं की बराबरी और सम्मान के मूल्य गहराई तक नहीं गए हैं। समाज के प्रभावशाली लोग और समूह अक्सर ऐसा व्यवहार और बयानबाजी करते हैं, जिससे पता चलता है कि जिनके जिम्मे समाज और प्रशासन का रवैया बदलना है, वे खुद कितने महिला विरोधी हैं। इससे महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों की हिम्मत बढ़ती है कि समाज का नेतृत्व करने वाले लोग भी उनकी तरह सोचते हैं। दूसरी समस्या यह है कि भारतीय समाज में कानून का डर शरीफ लोगों को होता है, आपराधिक तत्वों को नहीं। उन्हें यह लगता है कि कानून का पालन करवाने वाली संस्थाएं और लोग सचमुच कानून का पालन करवाने में या खुद कानून का पालन करने में दिलचस्पी नहीं रखते। चाहे राजनीतिक नेतृत्व हो, पुलिस-प्रशासन हो या न्यायपालिका हो, अपनी-अपनी वजहों से कानून तोड़ने वाले को निष्पक्ष और तुरंत सजा नहीं दे पाते। ऐसे अराजक माहौल में अपराधी अपने को सुरक्षित समझते हैं और कानून का पालन करने वाले लोग असुरक्षित होते हैं। तीसरी बड़ी समस्या यह है कि हमने देश की सार्वजनिक व्यवस्थाओं को सुरक्षित, भरोसेमंद और कार्यकुशल बनाने की कोशिश नहीं की। ऐसे में, उनका इस्तेमाल करना खतरे और असुविधा को न्योता देना है। जो संपन्न हैं, वे इसीलिए यथासंभव अपने लिए निजी स्तर पर बेहतर सुविधाएं जुटाने की कोशिश करते हैं, वे बोतलबंद पानी पीते हैं, अपने यहां बिजली के जेनरेटर लगाते हैं, निजी सुरक्षा गार्ड रखते हैं, निजी वाहन से यात्रा करते हैं। गरीब, असुविधाजनक व असुरक्षित सार्वजनिक सेवाएं भुगतने को बाध्य होते हैं।

अगर राज्य के उप-मुख्यमंत्री की बसें चल रही हैं, तो यह उम्मीद बेकार है कि उनके कर्मचारी कानून का पालन करते होंगे, क्योंकि कोई पुलिस वाला या सरकारी कर्मचारी उन्हें छूने की हिम्मत नहीं करेगा। ऐसे में, यह उम्मीद भी नहीं हो सकती कि दूसरे लोग भी कानून का पालन करें। यह सिर्फ पंजाब में नहीं है, बल्कि सारे देश में सार्वजनिक परिवहन जैसे क्षेत्र आपराधिक तत्वों के लिए सुरक्षित रख दिए गए हैं। महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ भाषणबाजी से नहीं हो सकती, उसके लिए जरूरी है कि समाज में न्यायसम्मत और सभ्यतापूर्ण आचरण का माहौल बने। जब आपराधिकता और आक्रामकता को समाज में सम्मानजनक जगह मिल रही हो, तो न महिलाएं और न समाज के कमजोर समूह सुरक्षित रह सकते हैं। हम ऐसा समाज बना रहे हैं, जिसमें अपराधी सुरक्षित हैं और महिलाएं असुरक्षित।

 

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