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मौसम का मिजाज

पिछले साल की अपर्याप्त मानसूनी बारिश से जो दिक्कतें पैदा हुईं, वे बीते दिनों की बेमौसम बारिश और ओलों की बौछार से और बढ़ गई हैं। अब मौसम विभाग ने कहा है कि इस साल भी मानसून के सामान्य से कम होने की...

मौसम का मिजाज
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Apr 2015 09:56 PM
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पिछले साल की अपर्याप्त मानसूनी बारिश से जो दिक्कतें पैदा हुईं, वे बीते दिनों की बेमौसम बारिश और ओलों की बौछार से और बढ़ गई हैं। अब मौसम विभाग ने कहा है कि इस साल भी मानसून के सामान्य से कम होने की आशंका है। मौसम विभाग का कहना है कि हो सकता है कि मानसूनी बारिश सामान्य की 93 प्रतिशत तक ही रहे। इसकी मुख्य वजह प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव की मौजूदगी है। अल नीनो की वजह से प्रशांत महासागर का पानी सामान्य से ज्यादा गरम हो जाता है, जिससे मानसून के बादलों का बनना और भारत की ओर इनकी गति कमजोर हो जाती है। अगर मौसम विभाग का आकलन ठीक रहा, तो हो सकता है कि भारत के मध्य और उत्तर-पूर्वी इलाकों में बारिश सामान्य से कम हो।

अगर दो साल लगातार मानसून कमजोर रहा, तो खेती पर उसका काफी खराब असर देखने में आएगा। पिछले साल के कमजोर मानसून की वजह से महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के क्षेत्रों में सूखे की स्थितियां पैदा हो गई थीं, जिनका असर अब तक दिखाई देता है। हो सकता है कि अगले साल भी इन्हीं इलाकों में कुछ पर फिर सूखे की छाया पड़ जाए और किसानों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाए। किसानों की जिंदगी तो खेती पर सीधे-सीधे निर्भर रहती है, लेकिन देश की बाकी आबादी की खुशहाली भी खेती से जुड़ी है। फसल के कम होने का अंदेशा हो, तो महंगाई फिर बढ़ सकती है, जिससे रिजर्व बैंक ब्याज दरों को घटाना मुल्तवी कर सकता है और अर्थव्यवस्था के विकास की गति कम हो सकती है। किसानों की आय घटने से ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता वस्तुओं की खपत घटी है और इसका खराब असर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। उम्मीद की एक किरण यह है कि निजी संस्थान स्काईनेट ने मानसून के सामान्य रहने का आकलन किया है। हम यह भी उम्मीद कर सकते हैं कि मौसम विभाग का यह आकलन उसके अगले आकलन में गलत साबित हो। ज्यादा विश्वसनीय भविष्यवाणी मौसम विभाग जून में कर पाएगा और तब इस बात का भी ज्यादा साफ अंदाजा लग सकेगा कि अगर बारिश कम हुई, तो कौन-कौन से क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। तब तक अल नीनो का भी प्रभाव बेहतर ढंग से पता चल पाएगा। इसके साथ ही मौसम विभाग का कहना है कि अल नीनो के प्रभाव वाले पिछले 14 मानसूनों में से आठ में बारिश कम हुई थी, यानी अल नीनो से मानसून कम होने की आशंका 60 प्रतिशत से कुछ कम होती है। फिलहाल 68 प्रतिशत आशंका है कि मानसून सामान्य से कम रहेगा।
गणित के नजरिये से 93 प्रतिशत को बहुत बुरा नहीं कहा जा सकता, लेकिन मानसून के लिहाज से यह खराब इसलिए माना जाता है, क्योंकि देश के बहुत बड़े हिस्से में सिंचाई की सुविधाएं नहीं हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में, जहां सिंचाई की सुविधाएं अच्छी हैं, एकाध साल बारिश के कम होने से खास फर्क नहीं पड़ता। हमारी समस्या मानसून नहीं है, मौसम में उतार-चढ़ाव तो स्वाभाविक बात है। अब भी देश में सिंचाई की सुविधाओं से किसान वंचित हैं। इनमें ऐसे भी इलाके हैं, जहां भौगोलिक वजहों से अक्सर बारिश कम होती है, जैसे महाराष्ट्र के मराठवाड़ा या विदर्भ। ऐसा नहीं है कि यहां पानी का प्रबंधन और सिंचाई का इंतजाम कोई बहुत मुश्किल काम हो, लेकिन गंभीरता से इस काम को किया नहीं गया, इसलिए लगभग सामान्य बारिश होने पर भी कुछ इलाके सूखे रह जाते हैं। अगर देश को मौसम के उतार-चढ़ाव के थपेड़ों से बचाना है, तो बारिश के पानी को सहेजने और लोगों तक पहुंचाने को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा।

 

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