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आग के सबक

अभी इस बात का खुलासा नहीं हुआ है कि पुलगांव के आयुध डिपो में आग लगने के कारण क्या थे, लेकिन अगर भारतीय सेना के सबसे बडे़ जखीरे में ऐसी भयंकर आग लगती है, जो जल्द नियंत्रण में नहीं आ पाती और इस बीच कई...

आग के सबक
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 31 May 2016 09:48 PM
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अभी इस बात का खुलासा नहीं हुआ है कि पुलगांव के आयुध डिपो में आग लगने के कारण क्या थे, लेकिन अगर भारतीय सेना के सबसे बडे़ जखीरे में ऐसी भयंकर आग लगती है, जो जल्द नियंत्रण में नहीं आ पाती और इस बीच कई जवानों व अफसरों की जान ले लेती है, तो इसका अर्थ है कि इस व्यवस्था में कहीं तो चूक हुई ही है। सार्वजनिक इमारतों, मॉल या सिनेमा हॉल जैसी जगहों पर आग लगने के हादसे न हो सकें, इसके लिए कई तरह के नियम-कायदे बनते हैं, कई तरह की व्यवस्थाएं होती हैं।

इसके मुकाबले हम अगर देखें, तो सेना के हथियार और गोला-बारूद रखने की जगह कई गुना संवेदनशील हैं। जाहिर है कि ऐसी जगहों की व्यवस्थाएं भी उतनी ही पक्की और अचूक होनी चाहिए। महाराष्ट्र के पुलगांव में आज जो हुआ, उससे लगता है कि इसमें कहीं-न-कहीं कसर रह गई। अभी पता नहीं चला है कि आग की शुरुआत कैसे हुई, लेकिन खबरों से यह पता चला है कि आग हथियारों के एक शेड से शुरू हुई और दूसरे कई शेड तक फैलती चली गई। जाहिर है कि ऐसी जगह एक चिनगारी भी उठे, इसकी आशंका शून्य होनी चाहिए, लेकिन अगर किसी एक जगह आग लग जाए, तो वह किसी दूसरे शेड तक पहुंचने न पाए, इसकी भी पक्की व्यवस्था होनी चाहिए।

जिस तरह से यह आग लगी, वह बताता है कि असफलता इन दोनों ही स्तरों पर थी। अभी तक आई खबरों में दहला देने वाला एक तथ्य यह भी है कि कई जवानों की जान आग को काबू करने के प्रयास में गई। जाहिर है कि वहां इस व्यवस्था में भी कसर रह गई। न तो आग बुझाने की कोशिश अपने पहले ही प्रयास में सफल हो सकी, और न ही ऐसी व्यवस्थाएं दिखीं, जो किसी भी कीमत पर आग बुझाने वालों को बचा पाएं।

ऐसा नहीं है कि किसी भारतीय आयुध डिपो में पहली बार आग लगी है। छोटी-मोटी खबरें तो अक्सर ही आती रहती हैं। अगस्त 2001 की तमिलनाडु की वह घटना अब भी कई लोगों को याद होगी, जब वहां आयुध फैक्टरी में लगी भीषण आग ने 25 लोगों की जान ले ली थी। आग लगने की ऐसी घटनाएं अक्सर दुर्घटना होती हैं, लेकिन अगर दुर्घटना का दोहराव होता रहे, तो वह दोहराव सतर्कता के अभाव और लापरवाही की ओर ही इशारा करता है। बेशक अभी इस अग्निकांड की जांच होगी और शायद इससे बहुत सारे तथ्य निकलकर सामने आएंगे, जो भविष्य के लिए नई सतर्कता का रास्ता भी खोलेंगे, बशर्ते ऐसी जांच सिर्फ खानापूरी न हो और उसका इस्तेमाल मामले पर परदा डालने की बजाय भविष्य के लिए सबक सीखने के मकसद से किया जाए।

जाहिर है, ऐसी संवेदनशील जगहों को सुरक्षित बनाने की व्यवस्थाएं ज्यादा पेशेवर और ज्यादा कुशल बनानी होंगी। पुलगांव का आयुध डिपो सेना का ऐसा डिपो है, जो एक साथ कई तरह के काम करता है। एक तो यह केंद्रीय आयुध डिपो है और सारे हथियार गोला-बारूद सबसे पहले यहां आते हैं, फिर यहां से जरूरत के अनुसार देश भर के दूसरे डिपो में जाते हैं। इसके अलावा सेना के पुराने हथियारों और गोला-बारूद को नष्ट करने का काम भी यहीं होता है। एक सुझाव यह भी दिया जा रहा है कि अब इसका विकेंद्रीकरण करना चाहिए, ताकि किसी हादसे की सूरत में नुकसान एक हद से ज्यादा न हो। पिछले कुछ समय में आतंकवादियों ने जिस तरह सेना के ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिशें की हैं, उस लिहाज से भी यह जरूरी हो सकता है। कुछ भी हो, हमें अपने आयुध भंडारों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी, यह काम उतना ही महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है, जितना कि देश की सीमाओं की सुरक्षा का काम।

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