फोटो गैलरी

Hindi Newsग्राम और गांव

ग्राम और गांव

गुड़गांव उत्तर भारत में आधुनिकता का प्रतीक है। यहां बड़ी-बड़ी इमारतों में तमाम बहुराष्ट्रीय निगमों और आईटी कंपनियों के दफ्तर हैं। दिल्ली के दक्षिण में यह उपनगर आधुनिक भारत की कई समस्याओं का भी केंद्र...

ग्राम और गांव
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 13 Apr 2016 10:04 PM
ऐप पर पढ़ें

गुड़गांव उत्तर भारत में आधुनिकता का प्रतीक है। यहां बड़ी-बड़ी इमारतों में तमाम बहुराष्ट्रीय निगमों और आईटी कंपनियों के दफ्तर हैं। दिल्ली के दक्षिण में यह उपनगर आधुनिक भारत की कई समस्याओं का भी केंद्र है। अंधाधुंध विकास के साथ इसकी बुनियादी सुविधाएं विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए यहां सड़कों पर लगभग पूरे दिन भारी जाम लगा रहता है। यहां पर सार्वजनिक परिवहन की बुरी स्थिति है, बिजली-पानी का संकट हमेशा बना रहता है और कानून-व्यवस्था की स्थिति भी डांवांडोल है। असमान विकास की वजह यहां की आबादी में बड़े स्तर पर आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक असमानताएं हैं, जिनसे तरह-तरह की समस्याएं पैदा होती हैं।

गुड़गांव का नाम गुड़गांव होना इन समस्याओं में से एक नहीं है, लेकिन हरियाणा सरकार की नजर में गुड़गांव का नाम बदलना ज्यादा बड़ी प्राथमिकता थी, इसलिए उसने इस शहर का नाम बदलकर गुरुग्राम कर दिया। खट्टर सरकार का कहना है कि गुड़गांव नगर निगम की यह पुरानी मांग थी कि गुड़गांव का नाम बदल दिया जाए, यानी गुड़गांव नगर निगम की प्राथमिकता भी नाम बदलना ही थी। इस शहर के निवासियों की समस्याएं शायद दोनों के एजेंडे में नहीं हैं।

गुड़गांव का नाम गुरुग्राम करने के पीछे कारण यह बताया जाता है कि महाभारत काल में यह गांव कुरुवंशियों द्वारा कौरव-पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य को दिया गया था। ऐसी मान्यता है। जाहिर है, इसके पीछे कोई ठोस ऐतिहासिक सबूत नहीं है, लेकिन लोक मान्यता का भी अपना महत्व होता है। फिर भी इस लोक मान्यता के आधार पर गुड़गांव का नाम बदलना तार्किक नहीं लगता। इसकी एक वजह तो यह है कि अगर सचमुच कभी यह गुरुग्राम रहा होगा, तो भी लोक में घिसते-घिसते इसका गुड़गांव नाम प्रचलित हो गया। 'गुरुग्राम' संस्कृत के दो शुद्ध शब्दों से मिलकर बना है, इसलिए इसे संस्कृत नाम माना जाएगा और गुड़गांव आज की प्रचलित हिंदी का नाम कहा जा सकता है।

गुड़गांव नाम किसी शासक ने नहीं दिया है, यह समाज के आम लोगों के बीच से विकसित हुआ नाम है। अगर हम गुड़गांव को गुरुग्राम करते हैं, तो यह मानते हैं कि संस्कृत के नाम शुद्ध और श्रेष्ठ हैं और लोक ने हिंदी में या हिंदी की स्थानीय बोलियों में जो नाम गढ़े हैं, वे अशुद्ध और खराब नाम हैं। यह प्रकारांतर से हिंदी या हिंदी की बोलियों और उनसे जुड़ी संस्कृति को अशुद्ध व कमतर मानना है। यह शुद्धतावादी और पुरातनपंथी सोच है कि जो पहले था, वह शुद्ध व श्रेष्ठ था और जो बाद में आया, वह अशुद्ध और कमतर है। महान संत कवियों ने स्थानीय भाषाओं में महान कविताएं और ग्रंथ रचकर यह साबित किया कि लोक की भाषाएं और बोलियां संस्कृत से कमतर नहीं हैं, इन्हीं भाषाओं और बोलियों में आजादी के आंदोलन को अभिव्यक्ति मिली। हमें अपनी भाषाओं और इन्हें रचने-बरतने वाले लोक का सम्मान करना चाहिए।

कहा जाता है कि अक्सर सरकारें किसी तात्कालिक राजनीतिक समस्या से ध्यान हटाने के लिए नाम बदलने जैसे अनुष्ठान करती हैं। हो सकता है कि इस मामले में भी यही हुआ हो। हो सकता है कि सरकार के नेताओं की ईमानदार राय यह हो कि गुड़गांव के गुरुग्राम बनने से उसकी गरिमा बढ़ जाएगी। अगर किसी जगह का नाम फूहड़ या अभद्र है या उससे कोई अप्रिय स्मृति जुड़ी है, तो उसे बदल देना चाहिए, वरना लोगों में जो नाम प्रिय है, उसी को चलने देना अच्छा है। यह मान्यता कि जो कुछ अंग्रेजी या संस्कृत में है, वही श्रेष्ठ है और जो हमारी अपनी भाषा या बोली में है, वह  कमतर है, गुड़गांव के नाम में बदलाव इसी का उदाहरण लगता है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें