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अच्छी चिकित्सा के लिए

गोरखपुर में एक नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स का शिलान्यास वाकई अच्छी खबर है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि यह जल्दी ही बन जाएगा और पूर्वी उत्तर प्रदेश को कई बीमारियों से निजात दिलाएगा। इस...

अच्छी चिकित्सा के लिए
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 22 Jul 2016 09:49 PM
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गोरखपुर में एक नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स का शिलान्यास वाकई अच्छी खबर है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि यह जल्दी ही बन जाएगा और पूर्वी उत्तर प्रदेश को कई बीमारियों से निजात दिलाएगा। इस अखबार के पाठकों के लिए यह विशेष खुशी की बात इसलिए भी है, क्योंकि ‘हिन्दुस्तान’ ने गोरखपुर में एम्स की स्थापना के लिए अभियान चलाया था और इसके पाठकों ने प्रधानमंत्री को 1,39,139 पोस्टकार्ड एम्स की मांग करते हुए लिखे थे। हमारा अभियान रंग लाया और इससे भी ज्यादा खुशी का मौका तब होगा, जब यह एम्स जनता की सुविधा के लिए काम करने लगेगा। जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तभी यह योजना बनी थी कि हर राज्य में एक एम्स की स्थापना होगी। कई राज्यों में एम्स बन गए हैं और काम भी कर रहे हैं, कुछ को अभी एम्स का इंतजार है।

भारत जैसे विशाल देश में यह जरूरी है कि विशेषज्ञता वाला ऐसा चिकित्सा संस्थान आम लोगों की पहुंच में हो। दिल्ली में जब अकेला एम्स था, तो जाहिर है कि देश के बड़े हिस्सों से उसकी दूरी इतनी थी कि मरीज चाहकर भी वहां नहीं पहुंच सकते थे। ऐसा नहीं है कि देश के अन्य हिस्सों में ऐसे सुविधासंपन्न और विशेषज्ञता वाले अस्पताल नहीं हैं, मगर सार्वजनिक क्षेत्र में एम्स के स्तर के अस्पताल उंगलियों पर गिनने लायक ही हैं। अब भी दिल्ली के एम्स की जो प्रतिष्ठा है, वह शायद ही किसी अस्पताल या चिकित्सा की शिक्षा देने वाले संस्थान की हो। 

चिकित्सा शिक्षा के स्तर पर एम्स की वही हैसियत है, जो तकनीकी शिक्षा में आईआईटी की है। ऐसे में, हर राज्य में एम्स खोलने का विचार इस मायने में स्वागतयोग्य माना जा सकता है कि इससे उस इलाके में आम तौर पर चिकित्सा और चिकित्सकों के स्तर में बढ़ोतरी होगी। पूर्वी उत्तर प्रदेश लंबे वक्त से कई बीमारियों का घर बना हुआ है। गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और तमाम भौगोलिक-प्राकृतिक कारणों से साल-दर-साल कई महामारियों ने यहां अपनी जड़ें जमा रखी हैं। इंसेफ्लाइटिस यानी दिमागी बुखार का इस क्षेत्र में जिस तरह का आतंक दिखाई देता है, वह भी बताता है कि यहां एम्स जैसे चिकित्सा और शोध संस्थान की कितनी जरूरत है।

गोरखपुर में एम्स का बनना लाभदायक तो जरूर है, लेकिन कुछ तथ्यों पर ध्यान देना जरूरी है। एक सुपर स्पेशिएलिटी संस्थान तकनीकी रूप से तृतीय (टर्शियरी) स्तर का अस्पताल होता है। यह तभी अपनी सही भूमिका निभा सकता है, जब उसके इलाके में प्राथमिक और द्वितीय स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं अच्छी स्थिति में हों। ऐसे में, सुपर स्पेशिएलिटी संस्थान में वही मरीज आएंगे, जिनका इलाज प्राथमिक या द्वितीय स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों में नहीं हो पा रहा है। अगर ऐसा नहीं होगा, तो एम्स जैसे संस्थान में ही सभी तरह के मरीज टूट पड़ेंगे और उसका ढांचा चरमरा जाएगा। दिल्ली में जब एम्स बना था, तब भी यही परिकल्पना थी कि वहां अत्यंत जटिल बीमारियों के मरीज ही पहुंचेंगे, लेकिन देश में प्राथमिक व द्वितीय स्तर की सुविधाएं न होने से एम्स की हालत किसी जिला अस्पताल सी हो गई है और उसका ढांचा चरमरा गया है। भारत में बहुत बड़ी जरूरत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के तंत्र को व्यापक और मजबूत करने की है, फिर जिला स्तर पर अस्पतालों को बेहतर बनाने की है, ताकि वही मरीज एम्स पहुंचें, जिनका इलाज इन स्तरों पर नहीं हो पाया। दूसरे, राज्यों में बने ज्यादातर एम्स सिर्फ नाम के एम्स हैं, वे दिल्ली के एम्स के स्तर के आसपास भी नहीं हैं। उनमें सुविधाओं की बहुत कमी है और उनके इलाज का स्तर भी वैसा नहीं है, जैसा होना चाहिए। इन मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है।

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