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दान की सूरत

पश्चिमी देशों में क्रिसमस से लेकर नए साल तक का समय जश्न का समय होता है। साथ ही यह दान का समय भी होता है। क्रिसमस की बहुत सारी कहानियां खुशी मनाने से ज्यादा इस मौके पर गरीबों से खुशी बांटने की बात...

दान की सूरत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 25 Dec 2016 11:01 PM
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पश्चिमी देशों में क्रिसमस से लेकर नए साल तक का समय जश्न का समय होता है। साथ ही यह दान का समय भी होता है। क्रिसमस की बहुत सारी कहानियां खुशी मनाने से ज्यादा इस मौके पर गरीबों से खुशी बांटने की बात करती हैं। इसके लिए अखबारों, पत्रिकाओं और वेबसाइटों पर कई दिनों पहले से ही दान की अपील करते इश्तिहार छपने शुरू हो जाते हैं। दान देने वालों के पैसे पर सामाजिक व मानव कल्याण के कार्य करने वाले तमाम संगठन सक्रिय हो जाते हैं। वैसे देखा जाए, तो दुनिया के हर मजहब, हर संस्कृति में दान की महिमा के बारे में बहुत कुछ कहा गया है। इस्लाम में इसके लिए जकात की बात की जाती है, जिसे इस्लाम का एक प्रमुख स्तंभ माना जाता है। हिंदू धर्म में भी दान सबसे बड़ा पुण्य कार्य है, साथ ही यह भी माना जाता है कि आप जिसे दान दें, उसका सम्मान भी करें, उसे अपने से ऊंचा दर्जा दें। मान्यता यह भी है कि दान का ढिंढोरा नहीं पीटा जाना चाहिए, अगर एक हाथ दान दे रहा है, तो दूसरे को उसका पता नहीं चलना चाहिए। सिख, बौद्ध, जैन आदि भारत के सभी धर्मों में दान की महिमा का जिक्र है। लेकिन दान दिया किसे जाए? सभी कहते हैं कि दान उसे दिया जाए, जिसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। दूसरे शब्दों में दान सुपात्र को ही दिया जाना चाहिए। लेकिन क्या लोग हमेशा सुपात्र को दान देते हैं?

इसे समझने की कोशिश की वाशिंगटन विश्वविद्यालय की एसोशिएट प्रोफेसर सिंथिया क्राइडर ने। उन्होंने इसका बाकायदा अध्ययन किया कि लोग जब दान देते हैं, तो किन चीजों का ख्याल रखते हैं। और वे इस दिलचस्प नतीजे पर पहुंचीं कि दान के लिए पात्र का चुनाव अक्सर हम तार्किक ढंग से नहीं करते हैं। ऐसे फैसलों में हमारी कमजोरियां और हमारे पूर्वाग्रह भी शामिल रहते हैं। लोग यह मानते जरूर हैं कि दान उसे दिया जाना चाहिए, जिसे उसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो, लेकिन अक्सर वे दान उसे देते हैं, जो देखने में सबसे बेहतर होता है। हालांकि जो देखने में सबसे बेहतर है, जरूरी नहीं है कि वह सबसे जरूरतमंद भी हो। उन्होंने इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया कि लुप्त हो रहे वन्य जीवों की रक्षा के लिए सबसे ज्यादा दान पांडा के लिए दिया जाता है, क्योंकि वह सबसे खूबसूरत होता है, जबकि पिग्मी स्लॉथ नाम के पेड़ों पर रहने वाले छोटे से स्तनधारी के लिए बहुत ज्यादा दान नहीं मिल पाता, क्योंकि वह उतना सुंदर नहीं है। इसी तरह, उन्होंने पाया कि सुंदर दिखने वालों बच्चों के नाम पर दूसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा दान मिल जाता है। दान से चलने वाले संगठन बहुत हद तक इसे समझते भी हैं, इसलिए उनके ज्यादातर इश्तिहारों में सुंदर गरीब और अनाथ बच्चों की तस्वीरें ही छपा करती हैं।
हमारी दोस्ती, हमारे अपनेपन और हमारे प्यार की तरह ही हमारी दान-वृत्ति को भी हमारी मानसिकता ही अंजाम तक पहुंचाती है। अक्सर इन चीजों में तर्क कम काम आते हैं, हमारी पसंद-नापसंद और हमारे पूर्वाग्रहों की भूमिका ज्यादा होती है। अच्छी या बुरी, जैसी भी हो, यह शायद हमारी सीमा है, जिससे हम अक्सर नहीं उबर पाते। पर यहां सवाल यह है कि जो वाकई जरूरतमंद हैं, उन तक मदद पहुंचे कैसे? कल्याणकारी राज्य की स्थापना के वक्त यह सोचा गया था कि जरूरतमंदों की मदद का काम राज्य करेगा और उन्हें लोगों की पसंद-नापसंद पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन दिक्कत यह है कि राज्य के भी पूर्वाग्रह होते हैं और वह सब तक मदद पहुंचा भी नहीं पाता। न ही हम ऐसा समाज बना पाए हैं, जहां किसी को किसी की मेहरबानी की जरूरत ही न रहे। दान का सवाल आज भी उतना ही उलझा है, जितना पहले था।


 

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