बाप बड़ा न भइया, सबसे बड़ा रुपैया
अब हमें ये दिन भी देखने थे कि हफ्ता भर से ज्यादा हो गया, और कोई मंत्री, अफसर या पुलिस वाला रिश्वत ले ही नहीं रहा। रिश्वत के बाजार बंद हैं, मगर बैंक खुले हैं। तड़पती मछलियां बेहोशी में लाइन में लगी...
अब हमें ये दिन भी देखने थे कि हफ्ता भर से ज्यादा हो गया, और कोई मंत्री, अफसर या पुलिस वाला रिश्वत ले ही नहीं रहा। रिश्वत के बाजार बंद हैं, मगर बैंक खुले हैं। तड़पती मछलियां बेहोशी में लाइन में लगी हैं, और मगरमच्छ पकड़ने के लिए सरकार ने सारे तालाब सुखा दिए हैं। जिसके पास काला धन नहीं है, वही लाइनों में लगा है।
सरकार कह रही है कि भइया, अच्छे दिनों ने जूते पहन लिए हैं, बस आते होंगे। चारों तरफ यही सुनाई दे रहा है कि ‘बाप बड़ा न भइया, सबसे बड़ा रुपैया’। यह सब दिसंबर तक चलेगा। सुना है कि उसके बाद पूरा देश स्वर्ग हो जाएगा और जनता स्वर्गवासी। मैं सयाना था, तो हजार-पांच सौ के पुराने नोट मंदिर में चढ़ा आया। सुना है, भगवान नोट बदलने के लिए लाइन लगाए खड़े हैं। काले धन वाले कंगाल हो जाएंगे, यह सुनने में अच्छा लगता है। यह भी अफवाह है कि मोदीजी के आंसू उनके पालतू घडि़यालों के हैं।
सुना तो यह भी है कि महंगाई अपना बिस्तर बांधने में लगी है, अपराध भाग रहे हैं, पुलिस वाले आदर से ‘आज्ञा करें श्रीमानजी’ कहने लगे हैं, नमक की इतनी चोर-बाजारी कर ली गई है कि किसी भी महिला में नमक नहीं रहा। नोटबंदी तो सारे समाचार चाट गई। न कहीं भारत-पाक, न कोई आतंकी घटना, कहीं भी कश्मीरी पत्थर नहीं। लगता है कि सब लाइन में लगे हैं फ्री सिम लेने के लिए। इन लाइनों में एक-दूसरे को लंगड़ी मारी जा रही है और काले धन के धन्नासेठ मंद-मंद मुस्करा रहे हैं। हो सकता है कि उनके भाड़े के टट्टू लाइन में लगे हों। परेशानी के कारण सारी शादियां कोर्ट मैरिज में बदल रही हैं। यह भी सुना जा रहा है कि डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छर हैरान हैं कि किसे काटें। हर कोई लाइन में है। परिवार के रिटायर्ड बूढ़ों के मुंह लटके हुए हैं, जैसे वे हजार-पांच सौ के पुराने नोट हों।
एक लंतरानी पेश है- मैंने हलकान-परेशान लाइन में लगे लोगों से पूछा- आप कौन? वे मरगिल्ली आवाज में बोले- मक्खियां। मैंने फिर पूछा- और मोदी कौन? उन्होंने चीखकर नारा लगाया- मोगांबो।
उर्मिल कुमार थपलियाल