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फकीरों की कतार में राजाओं की सेंध

लोग अचानक फकीर बनने पर उतारू हो गए हैं। क्या राजा, क्या प्रजा, सब मोह-माया त्याग रहे हैं। सब कुछ छोड़-छाड़कर लोग कतारों में खड़े हैं। खाली जेबें जीवन के प्रति वैराग्य पैदा कर रही हैं। कोहराती शाम में...

फकीरों की कतार में राजाओं की सेंध
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 09 Dec 2016 01:12 AM
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लोग अचानक फकीर बनने पर उतारू हो गए हैं। क्या राजा, क्या प्रजा, सब मोह-माया त्याग रहे हैं। सब कुछ छोड़-छाड़कर लोग कतारों में खड़े हैं। खाली जेबें जीवन के प्रति वैराग्य पैदा कर रही हैं। कोहराती शाम में मूंगफली खाने तक की लालसा नहीं रह गई है। जी चाहता है कि जंगल में जाकर धूनी रमा दें। खाली पेट और खाली थैले डिजिटल दुआओं से लबालब हो जाएंगे।

प्रजा का फकीर बनना ज्यादा बड़ी बात नहीं। वह अक्सर इसके आसपास ही रहती है। बड़े त्याग की बात तब है, जब कोई राजा एकदम से फकीर बन जाए। हमेशा वस्त्रहीन रहने वाली काया का शीत भी कुछ बिगाड़ नहीं सकती। त्याग तो उस राजा का महत्वपूर्ण है, जो वातानुकूलित भवन और राजपथ छोड़कर अचानक धुंध भरे जंगल-पथ पर चल दे। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री ने अपने परिवार के लिए पद छोड़ दिया। वह राजसी भोग करते हुए अपने निजी जीवन के लिए एक कोना नहीं तलाश पा रहे थे। यह उनकी असफलता है। उन्होंने दुनिया के इस सर्वमान्य नियम को चुनौती दी है कि कुरसी के आगे रिश्ते-नाते और संवेदनाएं शिथिल पड़ जाती हैं। यह घटना पूरी तरह दुनियावी-सिद्धांतों के विरुद्ध है। ऐसे समय में, जब संत-फकीरों में राजसी-भाव जागृत हो रहे हों, राजाओं में फकीरी के कीटाणु का आ जाना ठीक नहीं।

हमें उन नेताओं से प्रेरणा लेनी चाहिए, जो देशहित में फकीर बन गए हैं। राजपद त्यागने की नहीं, भोगने की चीज होती है। जनता भी शायद इसीलिए भोगती है। हमारे यहां किसी भी नेता को पदत्याग करने की जरूरत नहीं पड़ती। वह अपने पद और शरीर में कोई भेद नहीं करता। पद शरीर के साथ ही जाता है। जनता को भी इस बात का टेंशन नहीं रहता। जो उसे फकीर बनाता है, बदले में सही समय आने पर उसका एहसान चुका देती है। देश की जनता अपने नेता को उसके परिवार के पास आने के लिए त्यागपत्र देने जैसा पाप-कर्म नहीं करने देती, बल्कि अपने जैसा ही फकीर बनाकर उसी लंबी कतार में खड़ा कर देती है।
 


 

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