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इन्हें भी सराहिए

साल 2007 में मैं घर गया, पिताजी ने कहा कि अब नौकरी में लग गए हो, जाओ जरा पासबुक अपडेट करा लाओ, और इंटरनेट बैंकिंग का फॉर्म भी भर आओ। इसी के साथ उनके चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई। हमने कहा कि इसमें...

इन्हें भी सराहिए
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 11 Nov 2016 12:45 AM
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साल 2007 में मैं घर गया, पिताजी ने कहा कि अब नौकरी में लग गए हो, जाओ जरा पासबुक अपडेट करा लाओ, और इंटरनेट बैंकिंग का फॉर्म भी भर आओ। इसी के साथ उनके चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई। हमने कहा कि इसमें क्या बड़ी बात हो गई? बैंक गया, तो वहां भारी भीड़ थी। इतनी, जितनी दिवाली के दिनों में चंडीगढ़ बस अड्डे पर होती है। जब मैं लाइन में लगा, तो मेरे दोनों हाथ जेब में और कान में हरे रंग का स्कलकैंडी हेडफोन था। जब आधी लाइन तक पहुंचा, तो हेडफोन का हेड मेरे पांव में था और मेरे हाथ घुटने पर। जब काउंटर पर गया, तो खुफिया सूत्रों ने जानकारी दी कि बेटे फॉर्म तो आपने गलत भर दिया। कसम से, आंखों के आगे नरक की कड़ाही दिख गई। फिर भी काउंटर के ‘बाबू’ ने मेरी मदद की। मुझ पर पूरे दो मिनट लगाए, यह जानते हुए कि मेरे पीछे भी भाप-इंजन के माफिक धुआं छोड़ते हुए कई लोग खड़े हैं। तब मैं समझ गया कि बैंक तो अपने बस का न है।...
कल बैंक में भीड़ लगेगी, हर ब्रांच, जो हर रोज दिल्ली मेट्रो का डिब्बा होता है, कल मुंबई लोकल रेल का डिब्बा होगा। लेकिन फिर भी गाड़ी चलेगी। शनिवार को भी, और रविवार को भी। वही लोग, जो ‘बैंक में लंच ब्रेक है, बाद में आएं’ टाइप के जोक मारते हैं, बैंक में जल बिन मछली  की तरह तड़पते हुए दिखेंगे। इसलिए सिर्फ फौजी ही नहीं देशभक्त होते, आपके पैसे गिनने वाला क्लर्क भी कई कुर्बानियां देकर आपके पैसों का हिसाब रखता है।
तरुण गोयल की फेसबुक वॉल से

 

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