भगत सिंह, जिन्ना और कुरैशी
मुहम्मद अली जिन्ना उस सेंट्रल असेंबली में मौजूद थे, जिसमें भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने 'बहरों को सुनाने के लिए' बम फेंका था। बहरों के कानों पर बम बेकार साबित हुआ। जेल में भगत सिंह व उनके...
मुहम्मद अली जिन्ना उस सेंट्रल असेंबली में मौजूद थे, जिसमें भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने 'बहरों को सुनाने के लिए' बम फेंका था। बहरों के कानों पर बम बेकार साबित हुआ। जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने अपने साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख-हड़ताल कर दी। क्रांतिकारियों की सेहत इतनी गिर गई कि वे अदालत में पेश करनेे लायक नहीं रहे। नियमों के अनुसार उनकी पेशी के बगैर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था।
सरकार ने सेंट्रल असेंबली में एक संशोधन प्रस्ताव पेश किया, जिससे उसे कैदियों की गैर-हाजिरी में भी मुकदमा चलाने का अख्तियार मिल जाए। जिन्ना ने अपने धारदार भाषण से इस प्रस्ताव की धज्जियां उड़ा दीं। उनका भाषण तर्कों, प्रमाणों के अलावा बारीक व्यंग्यों से चुना हुआ था। उन्होंने सदन व सत्ता को मजबूर कर दिया कि वे देखें कि भगत सिंह साधारण अपराधी नहीं, बल्कि कुचले जा रहे करोड़ों हिन्दुस्तानियों की बगावत की आवाज हैं।
सरकारी प्रस्ताव नामंजूर हो गया। सरकार ने अध्यादेश के जरिये एक ट्रिब्यूनल बनाया। इस ट्रिब्यूनल की उम्र केवल चार महीने थी। खत्म होने के महज छह दिन पहले इस ट्रिब्यूनल ने सुनवाई शुरू की- जाहिर है, उसने फांसी की जो सजा सुनाई, वह नैतिक व विधिक, दोनों आधार पर खोखली थी। पिछले साल इम्तियाज रशीद कुरैशी नाम के एक पाकिस्तानी ने लाहौर हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया कि भगत सिंह व उनके साथियों को सुनाई गई वह अवैध सजा निरस्त की जाए और उन्हें निर्दोष घोषित किया जाए।
आशुतोष कुमार की फेसबुक वॉल से