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विहिप नेता गिरिराज किशोर का निधन

विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता गिरिराज किशोर का रविवार को 96 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने विहिप के आरके पुरम स्थित मुख्यालय में रात 9:15 बजे अंतिम सांस ली। विहिप पदाधिकारियों ने बताया कि...

विहिप नेता गिरिराज किशोर का निधन
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 14 Jul 2014 11:17 AM
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विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता गिरिराज किशोर का रविवार को 96 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने विहिप के आरके पुरम स्थित मुख्यालय में रात 9:15 बजे अंतिम सांस ली। विहिप पदाधिकारियों ने बताया कि वे आरके पुरम में संकटमोचन मंदिर स्थित परिषद के कार्यालय में रहते थे।

विहिप में वरिष्ठ उपाध्यक्ष के तौर पर उन्होंने लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी थी। गिरिराज किशोर का जन्म 4 फरवरी 1920 को उत्तर प्रदेश के एटा जिले में हुआ था। वे विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक सदस्यों में से थे। वे पिछले कई सालों से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन पर विहिप और भाजपा नेताओं ने शोक जताया है।

शरीर दान का लिया था संकल्प
अविवाहित गिरिराज किशोर बीते कई सालों से व्हीलचेयर के सहारे चल रहे थे। उन्होंने हाल ही में अपने शरीर को सामाजिक कार्य के लिए दान करने का संकल्प लिया था। मुरैना में उन्होंने अपनी सेवाएं स्कूल शिक्षक के तौर पर शुरू की थी। बाद में वे भाजपा नेता राजमाता विजय राजे सिंधिया के संपर्क में आए। गिरिराज रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान भी काफी सक्रिय रहे।

-  4 फरवरी, 1920 को आचार्य गिरिराज किशोर का जन्म उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मिसौली गांव में श्यामलाल एवं श्रीमती अयोध्यादेवी के घर में मंझले पुत्र के रूप में हुआ।

हाथरस और अलीगढ़ के बाद उन्होंने आगरा से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगरा में दीनदयाल जी और भव जुगादे के संपर्क मे आकर वे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के स्वयंसेवक बने उसके बाद उन्होंने संघ के लिए ही जीवन समर्पित कर दिया।

प्रचारक के तौर पर वे मैनपुरी, आगरा, भरतपुर, धौलपुर में रहे। 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर वे मैनपुरी, आगरा, बरेली और वाराणसी के जेल में 13 महीने तक बंद रहे। वहां से छूटने के बाद संघ कार्य के साथ बी.ए तथा इतिहास, हिंदी व राजनीति शास्त्र में एमए किया। साहित्य रत्न और संस्कृत की प्रथमा परीक्षा भी उन्होंने उत्तीर्ण कर ली। 1949 से 58 तक वे उन्नाव, आगरा, जालौन ओडिशा में प्रचारक रहे। उन्होंने मध्य प्रदेश के भिंड में अड़ोखर कॉलेज में प्राचार्य के तौर पर भी अपनी सेवाएं दी।

आचार्य जी की रुचि सार्वजनिक जीवन में देखकर उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर संगठन मंत्री बनाया गया। नौकरी छोड़कर वे विद्यार्थी परिषद को सुदृढ़ करने लगे। उनका केंद्र दिल्ली था। उसी समय दिल्ली विश्वविद्यालय में पहली बार विद्यार्थी परिषद ने अध्यक्ष पद जीता। फिर उन्हें जनसंघ का संगठन मंत्री बनाकर राजस्थान भेजा गया। आपातकाल में वे 15 माह भरतपुर, जोधपुर और जयपुर जेल में रहे।

1979 में मीनाक्षीपुरम कांड ने पूरे देश में हलचल मचा दी। वहां गांव के सभी 3,000 हिंदू एक साथ मुसलमान बने। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इससे चिंतित होकर डॉक्टर कर्णसिंह को कुछ करने को कहा। उन्होंने संघ से मिलकर ‘विराट हिंदू सम्मेलन’ संस्था बनाई। संघ की ओर से अशोक सिंहल और आचार्य गिरिराज किशोर इसमें काम में लगे। दिल्ली,पटना और देश के कई भागों में विशाल कार्यक्रम हुए; पर धीरे-धीरे संघ के ध्यान में आया कि कर्णसिंह और इंदिरा गांधी इससे अपनी राजनीति साधना चाहते हैं।

इसलिए संघ ने हाथ खींच लिया। ऐसा होते ही वह संस्था ठप्प हो गयी। इसके बाद अशोक सिंघल और गिरिराज किशोर को विश्व हिन्दू परिषद के काम में लगा दिया गया। 1980 के बाद इन दोनों के नेतृत्व में विहिप ने कई अभियान चलाए। संस्कृति रक्षा योजना, एकात्मता यज्ञ यात्रा, राम जानकी यात्रा, रामशिला पूजन, राम ज्योति अभियान, राममंदिर का शिलान्यास जैसे अभियान चलाए।

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