उत्तराखंड में आपदाओं की आशंकाओं से विशेषज्ञ चिंतित
उत्तराखंड में मानसून जिस हिसाब से बरस रहा है, उसी हिसाब में भूस्खलन से पहाडियां भी दरक रही हैं। इसको लेकर विशेषज्ञ काफी चिंतित हैं। वैसे तो भूस्खलन प्राकृतिक आपदा है, लेकिन विकास के नाम पर सड़क और सड़क...
उत्तराखंड में मानसून जिस हिसाब से बरस रहा है, उसी हिसाब में भूस्खलन से पहाडियां भी दरक रही हैं। इसको लेकर विशेषज्ञ काफी चिंतित हैं। वैसे तो भूस्खलन प्राकृतिक आपदा है, लेकिन विकास के नाम पर सड़क और सड़क के नाम पर कटान भी इन आपदाओं के लिए कम जिम्मेदार नहीं है।
जाने-माने मौसम विज्ञानी एवं राज्य मौसम विभाग के निदेशक आंनद कुमार शर्मा का कहना है कि विकास कार्य से पहले समुचित योजना बनानी चाहिए और विशेषकर पहाड़ के कटान एवं ढलान पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन के नियमों की भी विकास कार्यों के समय कड़ाई से पालन होना चाहिए। पानी निकासी की समुचित व्यवस्था के साथ-साथ मजबूत पुस्तों पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि पानी के बहाव को सुरक्षित दिशा में मोड़ा जा सके।
शर्मा ने कहा कि आज मौसम विभाग और आपदा प्रबंधन विभाग को मिलकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन के लोग स्थानीय एवं जागरूक लोगों को उचित प्रशिक्षण दें। उनका कहना है कि आपदा प्रबंधन के नियमों का पालन करते हुए स्कूल, कालेज व अस्पताल सहित सामुदायिक भवनों का निमार्ण मजबूत होना चाहिए, ताकि आपदा होने पर लोग यहां शरण ले सकें।
वहीं देहरादून स्थित डीबीएस कालेज के भूगोल विभाग के अध्यक्ष डा. डी.सी. पाण्डे का कहना है कि समस्या के निवारण के लिए विकास और प्राकृति के मध्य संतुलन जरूरी है। उन्होंने कहा कि वैसे तो भूस्खलन जैसी आपदाओं के पीछे प्राकृतिक कारण है, लेकिन सुविधाओं के लिए इसमें मानव का दखल भी कम जिम्मेदार नहीं है।
गौरतलब है कि गढ़वाल क्षेत्र के पहाड़ काफी कच्चे माने जाते हैं और इनमें वनस्पतिओं का भी अभाव है जो मिट्टी को जकड़ कर रख सकें। यहां पक्के और मजबूत मकानों की भी कमी है। देखा जा रहा है कि हादसे का शिकार हो रहे अधिकतर मकान नए हैं।
वहीं हर गांव तक विकास के नाम पर सड़कें बन रही हैं, जिनके कारण मिट्टी का कटाव बढ़ता है। यदि किसी जगह सड़क चौड़ीकरण के लिए 10 फुट तक कटाव होता है तो इस कारण 20 फुट तक जमीन दरक जाती है। साथ ही पेड़ों की भी कटाई जोरों पर है और दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में नाली एवं पानी निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है।