चार अप्रैल को ही मनेगी श्रीराम नवमी
रामनवमी का व्रत कब रखना ठीक होगा। इसे लेकर ज्योतिषाचार्यों ने अपनी राय दी है। तिथियों को लेकर भ्रम को देखते हुए ज्योतिषाचार्यों ने राय दी है। उनकी नजर में चार अप्रैल को ही रामनवमी का व्रत रखना शुभ...
रामनवमी का व्रत कब रखना ठीक होगा। इसे लेकर ज्योतिषाचार्यों ने अपनी राय दी है। तिथियों को लेकर भ्रम को देखते हुए ज्योतिषाचार्यों ने राय दी है। उनकी नजर में चार अप्रैल को ही रामनवमी का व्रत रखना शुभ होगा।
दरअसल इस रामनवमी को चार अप्रैल को नवमी मध्याह्न व्यापिनी है। अत: रामनवमी व्रत चार अप्रैल को ही शुभ होगा। वामन पुराण में मध्याह्न नवमी को ही श्री राम नवमी व्रत करने का निर्देश है। इस साल पुनर्वसु नश्रत्र युक्त होने से इसका विशेष महात्म्य होगा। श्री राम का जन्म पुनर्वसु नश्रत्र मध्याह्न व्यापिनी शुक्ल चैत्र नवमी तिथि में हुआ था। चार अप्रैल को सुबह 11 बजकर दस मिनट पर नवमी प्रारंभ होगी, जो पांच अप्रैल को सुबह नौ बजकर 54 मिनट तक रहेगी। पुनर्वसु नश्रत्र चार अप्रैल को रात 11 बजे तक रहेगा। आचार्य भरत राम तिवारी के अनुसार इसलिए चार को ही श्री राम नवमी का व्रत रखना श्रेयस्कर है। कालिका मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य चंद्रप्रकाश ममगांई के अनुसार रामनवमी के व्रत से सुफल की प्राप्ति होती है।
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28 से चैत्र नवरात्र
चैत्र नवरात्र 28 मार्च से प्रारंभ हो रहा है। संवतत्सर 2074 व बासंत नवरात्रों का प्रारंभ इसी दिन से होगा। ये साल साधारण नामक नया संवतत्सर है। नवरात्र की घट स्थापना सुबह 9:18 से 1:56 मिनट के बीच की जा सकती है।
साधारण संवत का प्रवेश 28 मार्च मंगलवार सुबह आठ बजकर बीस मिनट पर मेष लग्न में होगा। उत्तरा भाद्रपद नश्रत्र व ब्रह्म योग कालीन इस साल राजा मंगल व मंत्री गुरु होंगे। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के स्वामी ग्रह मंगल को ही संवत का राजा माना जाएगा। क्योंकि प्रतिपदा तिथि दोनों दिन सूर्योदय को स्पर्श नहीं करेगी। वह मंगलवार को ही समाप्त हो जाएगी। 28 मार्च को सुबह 8:20 से शाम 5:40 मिनट तक प्रतिपदा रहेगी। घट स्थापना के लिए द्विस्वभाव लग्न विशेष शुभ हैं। इनमें मिथुन लग्न सुबह 8:26 से 10:40 मिनट तक व कन्या लग्न अपराह्न 3:25 से 5:40 मिनट शाम तक रहेगा। कन्या लग्न के समय राहुकाल भी रहेगा। अभिजित मुहुर्त 11:58 से 12:45 तक मध्याह्न विशेष शुभ है। राहुकाल 3:28 से 5 बजे तक है। आचार्य भरतराम तिवारी के अनुसार, ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय के समय ही ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी।