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साहित्य की विधाओं से सम्पूर्ण होता है लेखन

दून लिटरेचर फेस्टीवल में आखिरी दिन लोक साहित्य, बाल साहित्य, कथेत्तर साहित्य, आंचलिक साहित्य जैसी विभिन्न विधाओं पर चर्चा हुई। आखिरी सत्र में कई पुस्तकों की समीक्षा व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए...

साहित्य की विधाओं से सम्पूर्ण होता है लेखन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 25 Dec 2016 07:10 PM
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दून लिटरेचर फेस्टीवल में आखिरी दिन लोक साहित्य, बाल साहित्य, कथेत्तर साहित्य, आंचलिक साहित्य जैसी विभिन्न विधाओं पर चर्चा हुई। आखिरी सत्र में कई पुस्तकों की समीक्षा व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए।

राजपुर स्थित क्रिश्चियन रिट्रीट एंड स्टडी सेंटर में समय साक्ष्य, दून लाइब्रेरी व संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित फेस्टीवल के सुबह के सत्र में लोकसाहित्य:अतीत, वर्तमान और भविष्य पर प्रभा पंत ने बीज वक्तव्य रखते हुए कहा कि आधुनिक संचार माध्यमों का अधिक से अधिक प्रयोग कर लोकसाहित्य को सहेजने का प्रयास किया जाना चाहिए। अध्यक्षता करते हुए संस्कृति विशेषज्ञ डा. नंद किशोर हटवाल ने कहा कि लोकसाहित्य में जो कुछ भी है वह मौखिक है। न तो उसे लिपिबद्ध किया जा सका है न ही उसे दृश्य रूप में सहेजा जा रहा है। कई जीबी की मेमोरी चिप वाले स्मार्टफोन ने काम तो आसान किया है मगर जुनुनियत के साथ काम करने वालों का अभाव है। प्रभात उप्रेती, महावीर रवांल्टा, प्रीतम अपच्छ्याण, उमेश चमोला ने लोकगीत, गाथा, पहेलियां, मुहावरें, आणे-पखाणे, बाल गीत, लौरी आदि पर चर्चा की। एक अन्य सत्र में बाजार, मीडिया और लोकतंत्र पर भी व्यापक चर्चा हुई। आंचलिक साहित्य:चुनौतियां और संभावनाएं विषयक सत्र में अचलानंद जखमोला, मदन मोहन डुकलाण, भारती पांडे, वीणापाणि जोशी, हयात सिंह रावत, गिरीश सुंद्रियाल ने गढ़वाली-कुमाऊंनी लेखन पर चर्चा की। बीज वक्तव्य रमाकांत बेंजवाल ने दिया। मौके पर समय साक्ष्य की रानू बिष्ट, प्रवीन भट्ट, महेश जोशी, सुरेन्द्र पुंडीर, कल्याण सिंह रावत मैती, अरूण कुकशाल, इंद्र सिंह नेगी भी मौजूद रहे।

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अलग नहीं होता बाल साहित्यकार

बाल साहित्य:चुनौतियां व संभावनाएं पर चर्चा में उदय किरौला, राजेश उत्साही, दिनेश चमोला, मुकेश नौटियाल, शीशपाल, उमेश सिरतवारी, मनोहर चमोली मनु ने बाल साहित्य लेखन को कमतर मानने वालों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि बाल साहित्यकार कोई अलग नहीं होता। प्रेमचंद्र की ईदगाह बाल साहित्य नहीं है लेकिन उसे हर कोई चाव से पढ़ता है। बाल साहित्य की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए इसे बच्चों को उपहार के रूप में देने के चलन को बढ़ावा देने की वकालत की गई।

आत्मकथाओं ने समृद्ध किया साहित्य

कथेत्तर साहित्य:समय और समाज विषय पर बीज वक्तव्य देते हुए शेखर पाठक ने जीवनी, रिपोतार्ज, आत्मकथा, यात्रा वृतांत जैसे समृद्ध साहित्य के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि इस लेखन ने कई नए लेखक साहित्य जगत को दिए। इस विद्या से साहित्य तेजी से समृद्ध हुआ है। देवेन मेवाड़ी ने कहा कि एक समय विज्ञान लेखन को हिंदी में लिखे जाने को असंभव माना गया। लेकिन अब हिंदी में विज्ञान लेखन से इसके पाठकों की संख्या कई गुना बढ़ी है। इस सत्र में डा.सुशील उपाध्याय, नवीन नैथानी, एसपी सेमवाल ने भी विचार रखे।

पुस्तकों पर हुई चर्चा-

आखिरी सत्र में सरला देवी की व्यवहारिक वेदांत पुस्तक की समीक्षा राजेश सकलानी, सुनील भट्ट की साहिर लुधियानवी:मेरे गीत तुम्हारे की समीक्षा मुकेश नौटियाल, दिनेश कनार्टक की मैकाले का जिन्न व अन्य कहानियों की समीक्षा भास्कर उप्रेती, अनिल कार्की की पुस्तक धार का गिदार की समीक्षा शशिभूषण बडोनी ने प्रस्तुत की।

बी मोहन नेगी की प्रदर्शनी ने खींचा ध्यान

साहित्यकारों के बीच चित्रकार बी मोहन नेगी की पोस्टर-चित्र प्रदर्शनी बरबस अपनी ओर ध्यान खींच रही थी। पिछले तीन दशक से लगातार कविताओं को शब्दचित्रों में पिरो रहे बी मोहन के प्रयास की सभी ने दिल खोलकर प्रशंसा की। इसके अलावा कमल जोशी की फोटो प्रदर्शनी व पुस्तक प्रदर्शनी भी आर्कषण का केन्द्र रही।

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