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आठ से दस लाख खर्च कर बन रहे एसएम, गार्ड, बैंक पीओ!

रेलवे में 18 हजार पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू होते ही नौकरी का ठेका लेनेवाले माफिया सक्रिय हो गए हैं। कई युवा खुद से इनकी तलाश में कोचिंग संस्थानों और लॉज में भटक रहे हैं। दलाल भी मोटी रकम देने...

आठ से दस लाख खर्च कर बन रहे एसएम, गार्ड, बैंक पीओ!
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 06 Feb 2016 01:30 PM
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रेलवे में 18 हजार पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू होते ही नौकरी का ठेका लेनेवाले माफिया सक्रिय हो गए हैं। कई युवा खुद से इनकी तलाश में कोचिंग संस्थानों और लॉज में भटक रहे हैं। दलाल भी मोटी रकम देने वाले युवाओं को फंसाने में जुटे हैं। एक छात्र ने मुसल्लहपुर क्षेत्र के एक दलाल से संपर्क साधा। बातचीत में पहले तो दलाल ने कुछ बताने से इंकार किया। लेकिन जब उसे कहा गया कि खेत बेचकर पैसा देंगे। घरवालों को सबकुछ बताना होगा तभी हमें पैसा मिल पाएगा। तब दलाल ने जो प्रक्रिया बताई, वह चौंकाने वाली थी।

बढ़ता-घटता है रेट
माफियाओं ने प्रत्येक पद के लिए अलग-अलग रेट तय कर रखा है। यह रकम अभ्यर्थी के बैकग्रांउड और आर्थिक स्थिति देखने के बाद बढ़ायी-घटायी भी जाती है। दलाल से बातचीत में पता चला कि वर्तमान में माफियाओं ने स्टेशन मास्टर में नौकरी दिलवाने के लिए सात से आठ लाख रुपये रेट खोल रखा है। ये लोग बैंक पीओ बनाने के लिए नौ से दस लाख रुपये में ठेका लेते हैं। दलाल ने बताया कि बेरोजगारी के दौर में बहुत लोग संपर्क करते हैं। सबको नौकरी दिलाना आसान नहीं। यहां तक कि अच्छे-अच्छे लोग भी अपने बच्चों को सेट करवाने में हमारी मदद लेते हैं।

सौदेबाजी पब्लिक प्लेस पर
गिरोह के सदस्य शुरू में अपना अड्डा किसी भी अभ्यर्थी को नहीं बताते। यहां तक कि किस प्रकार से उन्हें नौकरी मिलेगी यह भी नहीं। बस जो भी करना है अभ्यर्थी को इसकी सूचना 10-12 घंटे पहले दी जाती है। दलाल ने उक्त छात्र को मुसल्लहपुर आने से मना किया। उसने कहा कि जब जरूरत होगी हम खुद ही संपर्क कर लेंगे। यानी ठेकेदारी की सौदेबाजी पब्लिक प्लेस पर होती है, ताकि कोई शक की निगाह से न देखे। दलाल सबसे पहले अभ्यर्थी को स्टेशन, बस अड्डा, गांधी मैदान आदि जगहों पर मिलने के लिए बुलाते हैं। यहीं पर अभ्यर्थी की परख की जाती है। सकारात्मक बात होने पर आगे की रणनीति तैयार की जाती है।

गिरोह तक पहुंचने के हैं तीन रास्ते
ये लोग लॉज में तैयारी करने वाले वैसे युवाओं के संपर्क में रहते हैं, जो काफी दिनों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हों।
इनके दूसरे सोर्स वैसे युवा होते हैं, जिनकी हाल-फिलहाल में नौकरी लगी है।
माफियाओं का तीसरा और सबसे बड़ा सोर्स होता है प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करानेवाले कोचिंग संस्थान।  
राजधानी में कई ऐसे कोचिंग सेंटर हैं, जो इन्हीं माफियाओं के भरोसे खुद नौकरी दिलाने का ठेका ले लेते।

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