बिहार चुनाव: गठबंधन पक्का, बदले सुर, सजा जंग का अखाड़ा
राजद, जदयू और कांग्रेस में गठबंधन की गुत्थी सुलझने के साथ बिहार में राजनीतिक अखाड़ा सज गया है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने अतीत का हवाला देकर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के गठबंधन पर तीखे प्रहार शुरू...
राजद, जदयू और कांग्रेस में गठबंधन की गुत्थी सुलझने के साथ बिहार में राजनीतिक अखाड़ा सज गया है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने अतीत का हवाला देकर नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के गठबंधन पर तीखे प्रहार शुरू कर दिए हैं। वहीं जदयू, राजद और कांग्रेस के नेताओं ने जवाबी हमले तेज कर दिए हैं। जुबानी जंग में भारी पड़ने की होड़ सी मच गई है। इसमें राजनीतिक मर्यादा की अनदेखी भी शुरू हो गई है। जदयू, राजद और कांग्रेस गठबंधन और भाजपा, लोजपा व रालोसपा गठबंधन आमने-सामने हैं।
गठबंधन पक्का होते ही सुर बदले
बिहार में राजद और जदयू में गठबंधन पक्का होते ही राजनीतिक दलों के सुर बदल गए। जदयू और राजद नेताओं के भी सुर बदले। राजद ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने पर अपनी सहमति दी तो जदयू की बांछें खिल उठीं।
बशिष्ठ नारायण
प्रदेश अध्यक्ष, जदयू
4 जून: जदयू ने सभी 243 सीटों पर तैयारी शुरू कर दी है। विलय या गठबंधन के भरोसे हम बैठे नहीं रह सकते। राजद से बात बनी तो ठीक नहीं बनी तो भी ठीक।
8 जून: अब किसी मुद्दे पर कोई जिच नहीं होगी। सारे मामले आपसी सहमति से हल कर लिए जाएंगे।
रामविलास पासवान
राष्ट्रीय अध्यक्ष, लोजपा
6 जून: जनता परिवार का विलय तो नहीं ही हुआ, अब राजद-जदयू में गठबंधन भी नहीं होगा। यह बात हम शुरू से कह रहे हैं। हमारी बात प्रमाणित होने लगी है। लालू भस्मासुर हैं। नीतीश कुमार भी किसी के नहीं हैं।
8 जून: नीम से करैले की दोस्ती हो गई है। यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चलने वाला है।
उपेंद्र कुशवाहा
राष्ट्रीय अध्यक्ष, रालोसपा
6 जून: गठबंधन व महाविलय के नाम पर लखनऊ से दिल्ली तक पिकनिक मना रहे नेताओं को बिहार के विकास से कोई लेना नहीं है। एक मात्र लक्ष्य बिहार की सत्ता पर काबिज होना है। कभी महाविलय कर अध्यक्ष तक का नाम घोषित कर चुके इन नेताओं से बिहार की जनता वाकिफ है।
8 जून: नीतीश मुखौटा होंगे व लालू इसके असली सूत्रधार होंगे। इसका साफ अर्थ है कि बिहार में एक बार फिर जंगलराज की गुंजाइश होगी जो जनता कभी नहीं चाहेगी। एनडीए पर इसका कोई असर नहीं होगा। पर, चुनाव को लेकर एनडीए को भी अपनी रणनीति जल्द ही बना लेनी चाहिए। मसलन नेता का चयन चुनाव के बाद हो या पहले। वरना एनडीए को नुकसान हो सकता है।
रघुवंश प्रसाद
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राजद
02 जून: नीतीश कुमार जदयू के नेता हैं। वे गठबंधन के नेता नहीं हैं। जब दोनों दल आपस में बैठकर बातचीत करेंगे तभी गठबंधन का नेता तय होगा। सिर्फ जदयू के खूंटा ठोकने से गठबंधन का कोई नेता तय नहीं होगा। जदयू नेताओं द्वारा दिए जा रहे बयान सिर्फ अड़गा डालने वाले हैं। इस प्रकार के बयानों से समस्या होगी।
8 जून: मेलजोल तो हो गया, अब गठबंधन से आगे की बात होनी चाहिए। न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार हो। यह तय करने में आठ महीना लग गया कि नेता कौन होगा तो अब जनता को बताना होगा कि जनता का क्या होगा। गरीब, अल्पसंख्यक, नौजवानों के लिए क्या किया जाएगा। बिहार कैसे विकसित राज्यों में शामिल होगा, केंद्र से संघर्ष कर कैसे सड़क, अस्पताल व शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
सुशील मोदी
नेता, भाजपा विधान मंडल दल
2 जून: ‘नीतीश कुमार जंगलराज में पांच साल सहयोग करने वाली कांग्रेस को साथ लेकर लालू प्रसाद को डरा रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की दोस्ती हरहाल में होगी, क्योंकि दोनों के पास कोई विकल्प नहीं है। लेकिन दोनों एक-दूसरे की पीठ में छुरा घोंपने को तैयार रहेंगे।’
8 जून: लंबी सौदेबाजी और दबाव की राजनीति के बाद लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। नीतीश कुमार तो अब भी लालू प्रसाद और सोनिया गांधी की रजामंदी से ही मुख्यमंत्री हैं। जनता उन्हें फिर मौका देने वाली नहीं है। भाजपा चुनाव में हर तरह से नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और सोनिया गांधी का सामना करने के लिए तैयार है।
गठबंधन -घटनाक्रम
रविवार
दोपहर 11 बजे नीतीश कुमार राहुल गांधी के निवास 12 तुगलक लेन पहुंचे। दोनों नेताओं में करीब डेढ़ बातचीत हुई।
शाम तीन बजे सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह के घर लालू यादव व नीतीश कुमार की बैठक हुई। शरद यादव भी मौजूद थे।
पांच बजे शाम सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने ऐलान किया कि जदयू-राजद मिलकर चुनाव लड़ेंगे। कुछ देर बाद नीतीश, शरद निकल गए।
शाम साढ़े छह बजे शरद यादव फिर मुलायम सिंह के घर पहुंचे। वहां लालू यादव पहले से ही मौजूद थे। तीनों नेताओं में फिर एक घंटे तक चर्चा हुई।
सोमवार
सुबह 11 बजे लालू यादव सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह के घर गए व इस मुद्दे पर करीब एक घंटे विचार-विमर्श किया।
दोपहर करीब डेढ़ बजे शरद यादव सपा अध्यक्ष के घर पहुंचे। इसके बाद लालू यादव आए। बाद में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में नीतीश की अगुआई में चुनाव लड़ने का ऐलान किया।
राजद की मजबूरी
दोनों पार्टियों में गठबंधन नहीं होता तो भाजपा के खिलाफ सेकुलर वोट बंट जाते। लालू यादव कहते रहे हैं कि लोकसभा में भाजपा को वोट बंटवारे का फायदा मिला है।
जद(यू) की मजबूरी
मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर गठबंधन नहीं होता तो इससे नीतीश कुमार की छवि को धक्का लगता। भाजपा चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर उन पर निशाना साध सकती थी।
कांग्रेस की भूमिका
कांग्रेस ने दोनों पार्टियों पर दबाव बनाकर गठबंधन के लिए तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। क्योंकि, कांग्रेस भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प चाहती थी।
भाजपा की चिंता
राजग के खिलाफ विरोधी गठबंधन का एक उम्मीदवार होने से धुव्रीकरण से नुकसान की आशंका है।