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बिहार: सरकार सो रही, रो रहे हैं बुजुर्ग

मैं अपने बेटे से परेशान हूं...। 60 हजार रुपए किराया मिलता है और 60 रुपए भी मुझे नहीं देता है...। हम पति-पत्नी कभी रिश्तेदारों का दिया खाना खा लेते हैं, तो कभी रो कर रात बिता लेते हैं...। अपने ही घर...

बिहार: सरकार सो रही, रो रहे हैं बुजुर्ग
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 02 Jun 2015 11:41 AM
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मैं अपने बेटे से परेशान हूं...। 60 हजार रुपए किराया मिलता है और 60 रुपए भी मुझे नहीं देता है...। हम पति-पत्नी कभी रिश्तेदारों का दिया खाना खा लेते हैं, तो कभी रो कर रात बिता लेते हैं...। अपने ही घर में बेगाने हो कर रहे गए हैं हम...। अधिकारियों के पास भी हम लोग गए, मगर हुआ कुछ नहीं...। अब किसके पास जाएं, नहीं सूझ रहा है। इतना कहते-कहते पटना सिटी के जयप्रकाश जी का गला रुंध गया।

अब जरा मीठापुर के लोकमान्य तिलक की कहानी सुन लीजिए। उम्र 81 साल है। पहले फोटोग्राफी करते थे। 1977 से 2007 तक वार्ड काउंसलर रहे। सीवरेज में खुद उतर जाते थे। घरवाले इन्हें पागल समझने लगे और धीरे-धीरे किनारे होने लगे। ये भी अपने में मस्त रहने लगे। अखबार में वृद्धाश्रम की खबर पढ़कर डीएम के पास पहुंचे। आवेदन दिए, मगर अब तक आवेदन पर साइन नहीं हुआ है। अब जिले के एक मात्र सरकारी वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। जी हां, राजधानी के ये दो उदाहरण हैं। एक तरफ  एक बुजुर्ग को न्याय के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है, दूसरी तरफ एक बुजुर्ग नियमों की पेचीदगियों से परेशान हैं। उसे वृद्धाश्रम मे रहने का आदेश नहीं मिल रहा है, लेकिन वृद्धाश्रम के अफसरों की रहम पर किसी तरह रह रहे हैं।

एक्ट का बुरा हाल
2007 में भारत सरकार ने सीनियर सिटीजन एक्ट बनाया था। बिहार सरकार ने भी ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण नियमावली 2012 बनायी। तय हुआ कि बुजुर्गों को न्याय दिलाने के लिए सभी सब डिवीजनों में एसडीओ के नेतृत्व में ट्रिब्यूनल बनाया जाएगा। लेकिन हाल यह है कि बिहार के कुल 101 सब डिवीजनों में से सिर्फ 8 में ही ट्रिब्यूनल बन पाए हैं। वहीं दूसरी तरफ समाज कल्याण विभाग की गंभीरता यह है कि इसके लिए बनी राज्य परिषद की अभी तक सिर्फ एक बैठक हुई है, जबकि हर छह महीने में बैठक करनी है।
दूसरी तरफ बुजुर्गों के लिए सभी जिलों में वृद्धाश्रम खोलना था, लेकिन अभी तक पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, पूर्णिया और गया यानी पांच जिलों में ही वृद्धाश्रम खुल पाए हैं।

कहीं सुनवाई, तो कहीं है ढिलाई
पटना जिले के सभी छह सब डिवीजनों में एसडीओ के नेतृत्व में ट्रिब्यूनल का गठन हो गया है, लेकिन सुनवाई की रफ्तार सिर्फ पटना सदर में ही ठीक-ठाक है। हर शनिवार को दोपहर तीन बजे से शाम छह बजे तक एसडीओ की उपस्थिति में सुनवाई हो रही है। इससे जुड़े हेल्पेज इंडिया के धर्मेद्र जी कहते हैं कि पिछले छह महीने में 20 मामले का निपटारा हो गया है, करीब 10-12 पर तेजी से सुनवाई भी हो रही है। दानापुर सब डिवीजन में भी सुनवाई की स्थिति ठीक है, लेकिन बाकी पटना सिटी, बाढ़, मसौढ़ी और पाली में ट्रिब्यूनल सिर्फ कहने के लिए है। पटना सिटी में ही जयप्रकाश जैसे बुजुर्ग का मामला है, जो करीब सालभर से न्याय के लिए दौड़ लगा रहे हैं। दूसरी तरफ जिन लोगों को ट्रिब्यूनल से न्याय नहीं मिल रहा है। वे जिलाधिकारी सहित हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं।

50 बेड पर सिर्फ दो बुजुर्ग रहते हैं
एक्ट के तहत सभी जिलों में वृद्धाश्रम बनाना था, लेकिन अब तक सिर्फ पांच जिलों में ही वृद्धाश्रम चल रहा है। पटना के रूकनपुरा में सरकारी वृद्धाश्रम किराए के मकान में चल रहा है। नाम है सर्वागीण विकास समिति-वृद्धाश्रम सहारा। इसमें फिलहाल 50 बेड लगाए गए हैं। लेकिन जब लाइव टीम सोमवार को पहुंची तो सिर्फ दो ही बुजुर्ग मिले। प्रोजेक्ट मैनेजर अनिल सिंह कहते हैं कि यहां सात बुजुर्ग रह रहे हैं। कुछ लोग अपने रिश्तेदारों के घर गए हैं। लेकिन इन सात में भी सिर्फ एक का ही कागज पूरी तरह पूर्ण है। बाकी लोग जिला कार्यालय के फोन के आधार पर रखे गए हैं। दरअसल नियम इतना जटिल है कि बुजुर्ग आ ही नहीं पा रहे हैं। कई बुजुर्ग तो लगातार हमारे पास आते हैं, लेकिन हम चाहकर भी उन्हें नहीं रख पाते हैं। नियम में बदलाव करना बहुत जरूरी है।

थाने में बुजुर्गों के लिए रजिस्टर नहीं
एक्ट कहता है कि थाने में बुजुर्गो से जुड़े मामलों के लिए एक रजिस्टर होना चाहिए। बुजुर्गों पर काम करने वाली संस्था हेल्पेज इंडिया की ओर से पिछले दिनों सीनियर सिटीजन एक्ट को लेकर एक सर्वे कराया गया। 10 जिलों के 50 थाने में सर्वे हुआ। इसमें जो निकल कर आया वह चौंकाने वाला था। 50 फीसदी थाने को इस एक्ट व रजिस्टर के बारे में जानकारी ही नहीं थी। सिर्फ पांच थाने में बुजुर्गों के लिए अलग से रजिस्टर रखने की बात सामने आयी। दूसरी तरफ समाज कल्याण विभाग के सचिव ने सभी जिला डीपीओ को आदेश दिया था कि आंगनबाड़ी के जरिए सभी बुजुर्गों का सर्वेक्षण कराया जाए, जो अकेले रह रहे हैं। लेकिन आज तक यह काम नहीं हो पाया। ये दो ऐसे उदाहरण हैं, जिससे सीनियर सिटीजन एक्ट की वस्तुस्थिति समझ में आ जाती है।

राज्य नहीं बना सका कोई नीति
बुजुर्गों के लिए कोई राज्यनीति ही नहीं बन पायी है। केंद्र की ओर से सरकार 1999 में ही नीति बनाई, फिर 2011 में उसे पुनरीक्षित किया गया। महाराष्ट्र, दिल्ली, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड और केरल सहित कई राज्यों में बुजुर्गों की बेहतरी के लिए नीति बनाई गई है। आंध्रप्रदेश में तो जिले स्तर पर बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन चलाई जा रही है। लेकिन हमारे बिहार में आज तक हेल्पलाइन तक नहीं खुल सकी।

सरकार ने तमाम जातीय और पेशागत आयोग बनाए, पर बुजुर्गों के लिए आयोग नहीं बना। जो ढांचा खड़ा किया गया है, वह भी कारगर नहीं हो रहा। समाज कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में राज्य परिषद बनी है। प्रत्येक छह माह में एक बार इसकी बैठक होनी तय है। मगर वास्तविकता यह है कि जून 2015 तक सिर्फ एक बार भी इसकी बैठक नहीं हो पाई है। जनगणना के अनुसार बिहार में करीब 77 लाख 70 हजार बुजुर्ग हैं। इसमें 89 फीसदी बुजुर्ग ग्रामीण जबकि 11 फीसदी ही शहरी इलाके में रहते हैं। मगर बुजुर्गो को लेकर समाज कल्याण विभाग कितना जागरूक है, इसका अंदाजा इससे लगाइए कि इसके निदेशालय की वेबसाइट पर अभी भी तीन सौ रुपए पेंशन दी जा रही है, जबकि तीन सौ रुपए पेंशन कभी थी ही नहीं।

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