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सारण में दो बार चला वामपंथ का जादू

सारण में वामपंथ का इतिहास पुराना है। 1939 में बिहार के मुंगेर में पहली बार वामपंथ का उदय हुआ। दूसरे ही साल 1940 में सारण में वामपंथी संगठन खड़ा हो गया। स्वतंत्रता के बाद पहले चुनाव से ही यहां...

सारण में दो बार चला वामपंथ का जादू
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 03 Jul 2015 04:20 PM
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सारण में वामपंथ का इतिहास पुराना है। 1939 में बिहार के मुंगेर में पहली बार वामपंथ का उदय हुआ। दूसरे ही साल 1940 में सारण में वामपंथी संगठन खड़ा हो गया। स्वतंत्रता के बाद पहले चुनाव से ही यहां वामपंथियों का संघर्ष शुरू हो गया, लेकिन सफलता तीसरे विधानसभा चुनाव में मिली। 1962 के चुनाव में पहली बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार शिवबचन सिंह सोनपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। इसके बाद यहां के वामपंथियों को लंबा इंतजार करना पड़ा और उन्हें 1995 में सफलता मिली। उस विस चुनाव में जलालपुर विस क्षेत्र से सीपीआई प्रत्याशी अभय राजकिशोर विधायक निर्वाचित हो विस में पहुंचे थे।

हालांकि जिला विभाजन के पूर्व एकीकृत सारण में तीन वामपंथी विधायक निर्वाचित हो विधानसभा पहुंचे थे। 1967 में सीवान के मैरवा से गिरधारी राम, 1969 में गोपालगंज के बरौली से बिगुल सिंह और 1972 में सीवान के बड़हरिया से अब्दुल जलील विधायक बने। लेकिन विभाजित सारण जिले की बात करें तो वामपंथी विधायक दो ही बार यहां से विधानसभा की दहलीज तक पहुंचे।

वामपंथियों का रहा संघर्ष
विधानसभा के चुनावों में भले वामपंथियों को जिले में दो ही बार सफलता मिली है, लेकिन उनका संघर्ष अनवरत चलता रहा है। 1969 के विधानसभा चुनाव में मांझी से अखिलानंद सिंह, जलालपुर से डॉं. हीरालाल राय, मढ़ौरा से जयबहादुर सिंह और मशरक से रामेश्वर बागी चुनावी अखाड़े में उतरे थे। मढ़ौरा विस क्षेत्र में 1990 के चुनाव में रामबाबू सिंह और 2005 में चुल्हन सिंह चुनाव मैदान में उतरे। रामनाथ विद्यार्थी ने परसा विस क्षेत्र में लंबा संघर्ष किया। उन्हें सफलता भले न मिली लेकिन वे चुनाव में रनर रहे। उन्होंने जेपी आंदोलन के बाद शुरुआत की। वे 1990 तक सीपीआई के सिंबल पर परसा विस क्षेत्र में चुनावी रणभूमि में उतरते रहे। आगामी विस चुनावों में भी भाकपा, माकपा व भाकपा माले के बीच जिले की दस सीटों में बंटवारा होना है। तीनों दल मिलकर विस में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।   

विधान परिषद में वामपंथियों की लंबी पारी
विधानसभा में सारण के वामपंथी नेताओं को प्रतिनिधित्व करने का भले कम मौका मिला हो लेकिन विधान परिषद में उन्होंने लंबी पारी खेली है। सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र पर 1970 से एक टर्म को छोड़ वामपंथियों का लगातार कब्जा रहा है। शुरुआत 1970 के विधान परिषद चुनाव में जयमंगल सिंह ने की और वे लगातार चार चुनावों तक अपने विजय रथ को दौड़ाते रहे। 1976, 1984 व 1990 के चुनाव में विजयी हो उन्होंने विधान परिषद में सारण के शिक्षकों का नेतृत्व किया। 1996 में कांग्रेस के डॉं. चंद्रमा सिंह ने वामपंथियों से यह सीट छीन ली थी। लेकिन उसके बाद 2002 के चुनाव में सीपीआई के केदार पांडेय ने उन्हें शिकस्त देकर सीट वापस ले ली थी। इसके बाद वे लगातार 2008 व 2014 के चुनाव में विजेता रहे और अब भी इस सीट पर काबिज हैं।

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