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बंदरों संग रहने का राज नहीं खोल पाएगी जंगल गर्ल, जांच में मूक-बधिर होने की पुष्टि

जिला अस्पताल में घायल अवस्था में पहुंची जंगल गर्ल अब अपने पैरों पर खड़ी हो रही है। जानवरों की भाषा छोड़ इंसानी भाषा समझने लगी है। प्यास और भूख लगने पर इशारा करती है, पर वह बंदरों के बीच बीते बचपन के...

बंदरों संग रहने का राज नहीं खोल पाएगी जंगल गर्ल, जांच में मूक-बधिर होने की पुष्टि
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 06 Apr 2017 07:22 PM
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जिला अस्पताल में घायल अवस्था में पहुंची जंगल गर्ल अब अपने पैरों पर खड़ी हो रही है। जानवरों की भाषा छोड़ इंसानी भाषा समझने लगी है। प्यास और भूख लगने पर इशारा करती है, पर वह बंदरों के बीच बीते बचपन के राज बयां नहीं कर पाएगी। जंगल गर्ल की जांच में मूक-बधिर होने की पुष्टि हुई है।

संरक्षित वन्य क्षेत्र कतर्नियाघाट के मोतीपुर रेंज में बंदरों के बीच घिरी मिली जंगल गर्ल कौतूहल का विषय बनी हुई है। उसके चलने, आवाज व खाने की आदतें भले ही बंदरों जैसी दिख रही हों, लेकिन शारीरिक बनावट आम बालिका की तरह ही है। बालरोग विशेषज्ञ डॉ. केके वर्मा के मुताबिक उसकी सेहत में सुधार हो रहा है। पहले से कई गुना एक्टिव ही नहीं हुई है, बल्कि इंसानी भाषा भी समझने लगी है। पुचकारने पर नजरें उठा कर देखती है। पैरों के बल चल सकती है। प्यास व भूख लगने पर इशारा करती है। लघु शंका महसूस होने पर वार्ड से बाहर निकल जाती है, लेकिन वह मानसिक रूप से कमजोर जरूर है। सेहत में सुधार होने से जहां डॉक्टर व कर्मी गदगद हैं। वहीं जंगल गर्ल के बंदरों के बीच बीते बचपन से परदा न उठ पाने को लेकर चिकित्सक मायूस भी हैं।

सीएमएस डॉ. डीके सिंह ने बताते हैं कि धीरे-धीरे उसके क्रियाकलाप बदल जाएंगे। उसकी हरकतें इंसान की तरह हो सकती हैं। जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि वह मूक-बधिर है। इससे उसके बचपन का राज हमेशा के लिए राज बनकर रह जाएगा।

घाव के निशान बयां कर रहे संघर्ष की गाथा

उसके शरीर पर जख्मों के निशान अभी नहीं मिटे हैं। उसकी देखभाल करने वाली माया व रेनू की मानें तो निशान जंगल में वन्यजीवों व बंदरों के बीच जिंदगी बचाने के संघर्ष को बया कर रहे हैं। हाथों व पैरों पर नाखूनों के गहरे निशान बने हुए हैं, तो सिर के बाल भी नोंचे जाने के दाग हैं।

एक्सरे जांच में 12 वर्ष की जंगल गर्ल

जिला अस्पताल में भर्ती जंगल गर्ल के इलाज के साथ ही उसकी उम्र निर्धारण को लेकर एक्सरे कराया गया। जिसमें उसके 12 वर्ष की होने का अनमुान लगाया गया है। सीएमएस का कहना है कि उम्र के अनुसार अन्य क्रिया-कलापों में भी बदलाव हो रहा है। उसका कोई अंग बन्दर जैसा नहीं है। अस्पताल में रहने से उसकी आदतों में बदलाव जरूर देखा गया है।

माया की ममता, रेनू का मिला दुलार

बहराइच जिला अस्पताल में बीती 25 जनवरी को उसको भर्ती कराया गया था। शुरुआत में चिकित्सक व कर्मियों को देख कर बंदरों जैसी आवाज करने लगती थी। स्वीपर माया व रेनू के मुताबिक वह बंदरों जैसी हरकतें करती थी। लोगों को देख कर बंदर सी आवाज निकालती थी। भीड़ लगने पर चादरों को लपेट छिप जाती थी। वार्ड में कुछ भी मिल जाता तो खा जाती थी। शुरुआत में खाने को फर्श पर पलट कर मुंह से खाती थी। इन विपरीत हालात में तब उसकी देखभाल की जिम्मेदारी रेनू व माया ने उठायी। अपने बच्चों की तरह रोज नहलाने व हाथों से खाना खिलाने लगीं। समय बीतता गया। बंदरों के बीच रहने व बंदरों की आदत वाली जंगल गर्ल अब सेहतमंद हो चुकी है। दोनों महिला कर्मियों के दुलार व ममता के छांव उसे आम इंसान की राह पर ले आई।

या अल्लाह,वो कैसी मां होगी, जिसने...

जिला अस्पताल में दो माह से भी अधिक समय से भर्ती जंगल गर्ल के अचानक सुर्खियों में आने से हड़कंप मच गया है। जिला अस्पताल में देखने वालों का तांता लगा हुआ है। इनमें महिलाओं व लड़कियां बढ़-चढ़कर पहुंच रही हैं। महिलाओं का कहना है कि बंदरों के बीच जंगल में रहना अतिश्योक्ति लगती है। कैसे मां-बाप होंगे, जिन्होंने उसे आंचल में छिपाने के बजाए घने जंगलों में छोड़ दिया।

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